उदयपुर

मेनारिया ब्राह्मण समाज की गौरवशाली युवा साहित्यकार श्रीमती रीना मेनारिया की खुली किताब

Rajesh Joshi-Sangeeta Joshi
मेनारिया ब्राह्मण समाज की गौरवशाली युवा साहित्यकार श्रीमती रीना मेनारिया की खुली किताब
मेनारिया ब्राह्मण समाज की गौरवशाली युवा साहित्यकार श्रीमती रीना मेनारिया की खुली किताब

लगाव का रिश्ताउधार के कौर बनास पारघी रो दिवलोतकदीर रा आंक ● पोतीवाड़

उदयपुर। (श्री राजेन्द्र कुमार जी पानेरी...) मेनारिया ब्राह्मण समाज की गौरवशाली युवा साहित्यकार श्रीमती रीना मेनारिया का परिचय किसी की मोहताज नही है। आपका व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों आदर्श महान ओर भावी पीढ़ी के लिए अनुकरणीय है। आप अत्यंत ही मृदुभाषी, स्पष्ट वक्ता, मिलनसार व सादगी की एक मिशाल है। आप हिन्दी और राजस्थानी को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विशिष्ट ख्याति दिलाकर भारतीय साहित्य में उत्कृष्ट योगदान देने के कारण आप नई लेखक पीढ़ी के लिए आदर्श प्रेरणा-स्त्रोत के रूप सर्वदा जानी जाएगी। अपने आपको हम गौरवान्वित अनुभव कर रहे है। साहित्य-सर्जन का यहा संस्थागत काम इतना सरल व सहज नहीं होता है। उसके लिए अगर आवश्यकता होती है तो किसी अंत : प्रेरणा, त्याग और साथ ही साथ अपने व्यक्तित्व में छिपे व्यक्तित्व की। शहर में जब कोई सितारा महकता है, तो उसके आस-पास तारे दिखाई देने लग जाते है, ठीक उसी तरहा मेनारिया ब्राह्मण समाज उदयपुर की सितारा के मन कुछ ख्याल ऐसे आ जाते जैसे पौ फटने के बाद सूरज देवता धीरे-धीरे क्षितिज की सीढियां चढ़ते ऊपर आ रहे...हर तरफ़ सुनसान सन्‍नाटा-सा छाया हुआ था...हवा में उमस भरी ठंडक थी और वह निःशब्द पेड़ों के पत्‍ते सहलाती हुई...बहे जा रही थी हवाएं...कभी-कभी चहकती चिड़ियों के कलरव में...जैसे एक सवाल था कि कैसी सुबह लेकर आया है, आज का सूरज। सूरज तो ख़ैर क्‍या जवाब देता, लेकिन चिड़ियों के सवाल अपनी जगह थे और वे ऐसे ही किसी दृश्‍य को तलाश कर रहे थे...पंछियों के कलरव से पेड़ों की पत्तियों पर जमी ओस की बूंदें...आंसुओं की तरह इकट्ठा हुईं और धरती के बदन पर टपकने लगीं...अतीत की यादों से निकल कर...वह उसी लंबे आदमी के कमरे के आस-पास नज़रें दौड़ाने लगी...यहां अभी-भी सन्नाटा पसरा हुआ था। पंछियों का कलरव जैसे उसी के दर्द के गीत गा रहा था...उसे याद आया, यहीं तो वह उलझी थी उससे...मिट्टी, घास और खरपतवार के बीच कलम किसी कोने में शनै...शनै...कुछ लिखने की धीमी...धीमी...आवाज के बीच लच्छे में बंधी कलम महफूज पड़ी थी। वही महफूज की कलम आज चारों तरफा सुंगधित महक से महकती हुई हमारे समाज में सहज हर तरफ नजर आ जाती है। आपकी साहित्यिक सेवाओं के कारण समय-समय पर विविध पुरूस्कारों से आपको सम्मानित किया जा चुका है। पालीवाल वाणी समूह गौरवान्वित हो रहा है, आपका व्यकित्व की चमक देखकर। हिंदी प्रेमियों ने आपकी प्रमुख लिखी गई किताबों को साहित्कारों ने काफी सराहा। आपका परिचय मेनारिया ब्राह्मण समाज उदयपुर के धनी श्री राजेन्द्र कुमार जी पानेरी करा रहे है। 

संप्रति-स्वतंत्र लेखन

जन्म-16-2-1982

शिक्षा-हिंदी एवं राजस्थानी   

प्रकाशित पुस्तकें-

हिंदी के तीन कहानी संग्रह-

लगाव का रिश्ता तथा अन्य स्त्री विमर्श कहानियां

● उधार के कौर और अन्य कहानियां

● बनास पार

राजस्थानी पुस्तकें

  घी रो दिवलो ( राजस्थानी कहानी संग्रह)

  तकदीर रा आंक( राजस्थानी कहानी संग्रह)

  पोतीवाड़ (राजस्थानी उपन्यास)

  रेडियो एवं दूरदर्शन से कविता,कहानियां एवं वार्ताएं प्रसारित। 

हिंदी एवं राजस्थानी की कई पत्र-पत्रिकाओं में कहानियां प्रकाशित।

●  पुरस्कार एवं सम्मान प्रेम जी प्रेम युवा लेखन पुरस्कार( राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति बीकानेर) 2012 

  कमला गोइंका फाउंडेशन(मुंबई) की ओर से किशोर कल्पनाकांत युवा पुरस्कार।

  प्रयास संस्थान चूरू की ओर से दुर्गेश युवा पुरस्कार।

  साकेत साहित्य संस्थान आमेट की ओर से मनोहर मेवाड़ साहित्य सम्मान।

  नेम प्रकाशन नागौर की ओर से मैनादेवी पांड्या पुरस्कार।

  अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन की ओर से सृजन श्री सम्मान।

  नाथद्वारा साहित्य मंडल की ओर से महादेवी वर्मा की उपाधि ।

  उत्कृष्ट साहित्य सेवा हेतु जिला स्तरीय सम्मान।

  मेनारिया समाज की पहली महिला लेखिका होने का गौरव प्रदान।

आदि कई इनाम इकराम।  

●  जयपुर लिट्रेचर फेस्टिवल में दो बार भागीदारी।

●  चेनल आजतक से राजस्थानी भाषा में पर लम्बी चर्चा।

  केंद्रीय साहित्य अकादमी के कार्यक्रमो में राजस्थान से राजस्थानी का प्रतिनिधित्व ।

●  राजस्थानी भाषा की मान्यता को लेकर विगत दस वर्षो से संघर्षरत।

paliwalwani

reenamenariya1982@gmail.com

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