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SC ST reservation : एससी-एसटी को प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, जानिए
Paliwalwaniन्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बी आर गवई की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि राज्य सरकारें एससी/एसटी के प्रतिनिधित्व में कमी के आंकड़े एकत्र करने के लिए बाध्य हैं। पीठ ने कहा, ‘‘बहस के आधार पर हमने दलीलों को छह बिंदुओं में बांटा है। एक मानदंड का है। जरनैल सिंह और नागराज मामले के आलोक में हमने कहा है कि हम कोई मानदंड निर्धारित नहीं कर सकते।’’ पीठ ने कहा, ‘‘परिमाणात्मक आंकड़ों को एकत्रित करने के लिहाज से हमने कहा है कि राज्य इन आंकड़ो को एकत्रित करने के लिए बाध्य हैं।’’
कोर्ट का फैसला
शीर्ष अदालत ने कहा कि एससी/एसटी के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के संबंध में सूचनाओं को एकत्रित करने को पूरी सेवा या श्रेणी से जोड़कर नहीं देखा जा सकता बल्कि इसे उन पदों की श्रेणी या ग्रेड के संदर्भ में देखा जाना चाहिए जिन पर प्रोन्नति मांगी गयी है। पीठ ने कहा, ‘‘यदि एससी/एसटी के प्रतिनिधित्व से संबंधित आंकड़े पूरी सेवा के संदर्भ में होते हैं तो पदोन्नति वाले पदों के संबंध में परिमाणात्मक आंकड़ो को एकत्रित करने की इकाई, जो कैडर होनी चाहिए, निरर्थक हो जाएगी।’’ सही अनुपात में प्रतिनिधित्व के संदर्भ में शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने इस पहलू को नहीं देखा है और संबंधित कारकों को ध्यान में रखते हुए पदोन्नति में एससी/एसटी के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का पता लगाने का काम राज्यों पर छोड़ दिया है। न्यायालय ने 26 अक्टूबर, 2021 को अपना फैसला सुरक्षित रखा था।
केंद्र की मांग
इससे पहले, केंद्र ने पीठ से कहा था कि सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को पदोन्नति में आरक्षण लागू करने के लिए केंद्र सरकार तथा राज्यों के लिहाज से एक निश्चित और निर्धायक आधार तैयार किया जाए।
अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने दलील
केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने दलील दी थी कि एससी/एसटी को सालों तक मुख्यधारा से अलग रखा गया है और ‘‘हमें उन्हें समान अवसर देने के लिए देश के हित में समानता (आरक्षण के संदर्भ में) लानी होगी।’’ अटॉर्नी जनरल ने कहा था, ‘‘अगर आप राज्यों और केंद्र के लिए निश्चित निर्णायक आधार निर्धारित नहीं करते तो बड़ी संख्या में याचिकाएं आएंगी। इस मुद्दे का कभी अंत नहीं होगा कि किस सिद्धांत पर आरक्षण देना है।’
इंदिरा साहनी मामला
वेणुगोपाल ने शीर्ष अदालत के 1992 के इंदिरा साहनी मामले से लेकर 2018 के जरनैल सिंह मामले तक का जिक्र किया। इंदिरा साहनी मामले को मंडल आयोग मामले के नाम से जाना जाता है। मंडल आयोग के फैसले में पदोन्नति में आरक्षण की संभावना को खारिज कर दिया गया था।