Friday, 01 August 2025

इंदौर

indoremeripehchan : इंदौर में हेलमेट अनिवार्य वाले आदेश का जनता कर रही है, खुलकर विरोध... कलेक्टर के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती

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indoremeripehchan : इंदौर में हेलमेट अनिवार्य वाले आदेश का जनता कर रही है, खुलकर विरोध... कलेक्टर के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती
indoremeripehchan : इंदौर में हेलमेट अनिवार्य वाले आदेश का जनता कर रही है, खुलकर विरोध... कलेक्टर के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती

हेलमेट ना पहनने वालों को पेट्रोल

ना देने के कलेक्टर के आदेश को हाईकोर्ट मे चुनौती

इंदौर.

शहर में हेलमेट न पहनने वालों को पेट्रोल न देने के आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है। यह याचिका हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष एडवोकेट श्री रितेश ईनाणी के माध्यम से लगाई गई है। इसमें कहा गया है कि हेलमेट की अनिवार्यता का नियम शहर के बाहरी क्षेत्रों में लागू किया जा सकता है, लेकिन शहर के मध्य क्षेत्र में दो पहिया

वाहन चालकों के लिए हेलमेट की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वाहनों के अत्यधिक दबाव के कारण यहां ट्रैफिक रेंगते हुए चलता है। याचिका पर शहर के अनेकों  सामाजिक संगठनों ने हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के यशस्वी अध्यक्ष एडवोकेट श्री रितेश ईनाणी को समर्थन देकर इस हेतु उनका साधुवाद व्यक्त किया है। इस मामले की सोमवार को सुनवाई होगी।

इंदौर में जब भी यातायात समस्या सुलझाने की बात सामने आती हैं, जिम्मेदारों को हेलमेट ही नजर आता है..! इंदौर में 1 अगस्त 2025 से हेलमेट अनिवार्य करते हुए पम्प संचालकों को आदेश दिया है कि वे बिना हेलमेट पहने किसी भी व्यक्ति को पेट्रोल ना दे. 

हालांकि इसमें मेडिकल इमरजेंसी वालों को छूट रहेगी. इस तरह का आदेश तत्कालीन कलेक्टर पी. नरहरि के कार्यकाल में भी जारी हुआ था, लेकिन कुछ दिनों बाद ही स्थिति पहले जैसी हो गई.

अब मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट सड़क सुरक्षा समिति के अध्यक्ष अभय मनोहर सप्रे ने अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि सरकारी कर्मचारियों और विद्यार्थियों के लिए हेलमेट जरूरी किया जाए और आज कलेक्टर आशीष सिंह ने ’’हेलमेट नहीं तो पेट्रोल नहीं’’ वाला आदेश जारी कर दिया. इस आदेश के जारी होने के बाद सोशल मीडिया पर विरोध भी शुरू हो गया. 

शहरवासियों का कहना है कि शहर के अंदर रेंगते वाहनों पर हेलमेट थोपने से कौन-सी यातायात व्यवस्था सुधर जाएगी..? हेलमेट शहर के बाहर ही लागू हो तो अच्छा. वैसे भी ’’प्रयोगशाला’’ में तब्दील हुए इंदौर में जगह-जगह सड़कें खुदी पड़ी हैं. सरकारें और प्रशासनिक जिम्मेदार पहले शहर की सड़कें ठीक करते हुए बिगड़ैल यातायात व्यवस्था को दुरुस्त करे. 

यातायात कर्मी केवल चालान बनाने और जबरिया वसूली में ही जुटे रहते हैं और जगह-जगह सड़कों पर ’’यहां खुदा... वहां खुदा...’’ का सिद्धांत लागू है ही..! कुछ शहरवासी यह भी कहने से नहीं चूक रहे कि अधिकारी केवल एसी रूम में बैठकर प्लानिंग करते हुए तुगलकी फरमान जनता पर थोप देते हैं, उन्हें जमीनी हकीकत नहीं पता होती. 

जनता का दो टूक कहना है ’’अगर हमें यातायात से संबंधित सारी व्यवस्थाएं सुचारू मिलेंगी तो भी हम हेलमेट लगाने को राजी हैं..!

क्या हेलमेट लगाने से ट्रैफिक सुधर जाएगा..

इंदौर के माई-बापों ने फिर आदेश जारी किया है, जिसमें 1 अगस्त से दो पहिया वालों को हेलमेट पहनना जरुरी है। फरमान सुनाया गया है, हेलमेट नहीं पहना तो चालान तो कटेगा साथ ही पेट्रोल भी नहीं मिलेगा। शहर के अब्बा हुजूरों का कहना है ये नियम इसलिए क्योंकि एक्सीडेंट में मौत का खतरा रहता है। इंदौर जैसा शहर जहां आमतौर पर हर 200 मीटर की दूरी पर ट्रैफिक सिग्नल है या फिर रास्ता कट रहा है। ऐसा शहर जिसकी हर सडक़ पर हर समय जाम लगा रहता है।

गाडिय़ां एक दूसरे से सटकर चल रही होती हैं। आम तौर पर इंदौर की सडक़ों पर गाडिय़ों की स्पीड 20 से ज्यादा नहीं होती है। 20 की स्पीड जिसे रेंगना भी कहते हैं उसमें पर एक्सीडेंट और उसमें मौत... सुनकर ही डर लगने लगता है, हाथ-पैर कांपने लगते हैं। इंदौर के ट्रैफिक को लेकर हाईकोर्ट में 22 जुलाई को अफसरों से सवाल जवाब हुए थे, उसके बाद से भाई लोगों को ट्रैफिक की समस्या दिखने लगी।

शहर में जाम का हल भाई लोगों ने आम जनता के हेलमेट नहीं पहनने के कारण निकाला, इसे ही कहते हैं कुशाग्र बुद्धि। लेकिन क्या इस शहर में जाम वाकई हेलमेट नहीं पहनने के कारण लगता है, जवाब है बड़ा सा नहीं..। शहर में एक सडक़ ऐसी नहीं है जिस पर यदि 300 मीटर आप गाड़ी लेकर निकलें और उसमें गाड़ी न उचके। क्योंकि या तो सडक़ पर गड्ढ़े बने हुए हैं या फिर पेंचवर्क और चेंबर के नाम पर सडक़ पर कुबड़ निकाल दिए गए हैं। और तो और जो सीमेंट की सडक़ें हैं उसमें ज्वाईंट उपर नीचे हैं। जिससे गाड़ी उचकती ही है।

लोग इससे गिरते हैं उनके हाथ-पैर टूटते हैं। फरमान जारी करने वाले इस गड़़बड़ी के खिलाफ कभी फरमान जारी नहीं करते क्यों, क्योंकि वो उनकी ही बिरादरी या सत्ता साकेत के पसंदीदा लोग हैं। हेलमेट नहीं होने से ट्रैफिक बिगडऩे की बात करने वालों ने कभी सिटी बसों को सडक़ पर चलते देखा है..? ये बसें तो आप लोगों की देखरेख में ही चलती हैं। इनके स्टॉप के नाम पर फूटपाथ जरूर गायब हैं, लेकिन ये कभी स्टॉप पर नहीं रुकती, जहां ड्रायवर को सवारी दिखती है वहां ये रुक जाती हैं। चाहे फिर पीछे गाडिय़ां अटकी रहें। इनकी टाइमिंग क्यों तय नहीं होती, क्यों इनके ड्रायवरों पर कार्रवाई नहीं होती, क्योंकि ये आपके मैनेजमेंट की गड़बड़ी का नतीजा है।

जनता के लिए हेलमेट का आदेश तो आपने आदेश जारी कर दिया लेकिन क्या कुछ समय पहले उपनगरीय बसों को लेकर जो आदेश जारी किया था, उसका कितना पालन हुआ है वो देखा है..? सॉरी आपने कहां से देखा होगा, क्योंकि ये तो सत्ताधीशों और उनके सगे-संबंधियों की देखरेख में ही चल रही हैं। साहब लोगों कृपया कर एक बार जरा रीगल से मधुमिलन और शास्त्री पुल से लेकर पटेल ब्रिज के बीच के हिस्से में 40 की स्पीड में आपकी गाड़ी घूमाकर दिखा दो। कभी 7 बजे के बाद राजेंद्रनगर थाने के पास जाकर देखिएगा, या फिर रिंग रोड पर ही चले जाइएगा। आपके आदेश का पालन कितना हो रहा है दिख जाएगा।

साहब ऐसा क्यों है कि गरीब जनता को पेट्रोल नहीं मिलेगा, लेकिन शहर के ट्रैफिक को बर्बाद करने वाली इन गाडिय़ों को डीजल जरुर मिलेगा। हाईकोर्ट में बताया गया है कि इंदौर में गाडिय़ां और इंसान बराबर हैं। जितने इंसान उतनी गाडिय़ां...। लेकिन इन गाडिय़ों को खड़ा करने की जगह क्या सरकार, प्रशासन, नगर निगम, आइडीए, आरटीओ ने तय की है। इंदौर में गाडिय़ों के लिए पार्किंग कहां और कितनी हैं? हर बार 20 साल पहले बनीं 11-12 पार्किंग को गिनाते रहते हो, कभी नई पार्किंग की बात किसी ने की है।

आप लोगों के पास शहर की प्लानिंग की जिम्मेदारी है, इसीकी आड़ में जनता पर कायदे थोपे जाते हैं लेकिन क्या कभी ये देखा है कि शहर में जो नए निर्माण हो रहे हैं उनका नक्शा किस काम के लिए पास हुआ है और मौके पर क्या बना है। कभी इसकी फूर्सत ही नहीं मिली होगी। इसका क्या नतीजा होता है वो उदाहरण सहित बता देता हूं, रामप्याऊ से लेकर उषाफाटक तक की सडक़ जिस पर मध्यक्षेत्र का ट्रैफिक गुजरता है। यहां पर पिछले दो सालों में कई नए भवन बने।

15 बाय 50, 20 बाय 50 के इन मकानों के नक्शों में ये खुद के रहने के लिए बनाए गए हैं लेकिन मौके पर मार्केट बने हुए हैं। जिसमें एक दो नहीं बल्कि 20-20 दुकानें हैं, लेकिन इनमें गाडिय़ां खड़ी करने की जगह नहीं छोड़ी गई है। ऐसी ही एक सडक़ है पाटनीपुरा से एलआईजी चौराहा, हाउसिंग बोर्ड ने आवासीय प्लॉट काटे थे, लेकिन यहां पर पूरा मार्केट बन चुका है। जिनकी गाडिय़ां सडक़ पर रहती है। ये बिल्डिंगें एक दिन में तो बनी नहीं, और जब गलत बनीं तो उन पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई।

क्या साहब लोग इन्हें बनाने और बनते समय आंख मुंदने वाले अफसरों पर भी प्रतिबंधात्मक आदेश जारी करेंगे। इंदौर में ट्रैफिक की समस्या का नया कारण है सडक़ों पर खड़े होने वाले ठेले और रिक्शा वाले, कभी खडखडिय़ा पुल (नगर निगम के पीछे रामबाग पुल) से गुजरने वालों से बात करिए वो बताएंगे कि यहां लेफ्ट टर्न बनाया ही इन लोगों की सुविधा के लिए गया है। इन सबसे बड़े हैं इंदौर में चलने वाले ई-रिक्शा। ये ई-रिक्शा इंदौर के ट्रैफिक को खराब नहीं बल्कि उसका बलात्कार करते हैं।

सूर्यास्त के बाद बगैर हेडलाइट चलना इनका प्रियशगल है। बगैर लाइसेंस के ही इन्हें चलाने की छूट ने इंदौर के ट्रैफिक को मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा है ये कहीं भी खड़े हो जाते हैं कहीं भी और कैसे भी चलते हैं, जैसे सडक़ केवल इनके चलने के लिए बनी हैं। और इन सबसे बढकऱ वो व्यापारी जो सडक़ और फूटपाथ को को अपनी दुकान का हिस्सा बनाकर उस पर सामान रख लेते हैं। अफसरों का जोर हमेशा गरीब दो पहियावाहन वालों पर चलता है क्या कभी लोहारपट्टी, राजबाड़ा, पाटनीपुरा, अन्नपूर्णा रोड, एमजी रोड, जवाहरमार्ग के दुकानदारों को लेकर भी ऐसे ही आदेश जारी होंगे।

लोकतंत्र में किसी भी सार्वजनिक परेशानी का हल होता है मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ती से। लेकिन इंदौर राजनेता इस मामले में नपुंसक ही साबित हुए हैं। ऐसे में शहर के लिए फैसला लेने के बजाए अपने और अपने वालों को फायदा पहुंचाने में ही ये लोग लगे रहते हैं। इंदौर में शहर से लेकर दिल्ली तक एक ही पार्टी का राज है। यहां का विपक्ष लगभग मर चुका है। ये शहर बीते चार सालों से जाम को लेकर चिल्ला रहा है, लेकिन मजाल है पक्ष-विपक्ष किसी के नेता का पुरुषार्थ जागा हो।

एक नेता सामने नहीं आया जिसने इस बिगड़ते हालात के मूल कारण पर काम किया हो। हां नेताओं ने चिंता जरुर दिखाई, लेकिन चिंता के मूल की चिता बनाने में किसी ने आगे बढकऱ काम नहीं किया। जब शहर की जनता और उनका नेतृत्व करने का दावा करने वाले नेता सोए हैं तो मनमानी तो चलेगी। हेलमेट जरुरी होने का समर्थन करने वाले क्या शहर के ट्रैफिक को बदहाली तक पहुंचाने वालों से भी जवाब मांगेगे, शायद नहीं, क्योंकि वो मुंह खोलेंगे तो शायद साहब की नजर में गलत हो जाएंगे।

वैसे भी बुर्जुग कह गए हैं सोए को जगा सकते हैं लेकिन मुर्दे और सोने का नाटक करने वाले को नहीं जगा सकते।

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