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पहली बार कसेरूआ खेरा में मिले इंसानी अंगुली के छाप, महाभारत काल से है संबंध, ASI ने कहा- दुर्लभ खोज

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पहली बार कसेरूआ खेरा में मिले इंसानी अंगुली के छाप, महाभारत काल से है संबंध, ASI ने कहा- दुर्लभ खोज
पहली बार कसेरूआ खेरा में मिले इंसानी अंगुली के छाप, महाभारत काल से है संबंध, ASI ने कहा- दुर्लभ खोज

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के उत्खनन विभाग को पलवल जिले के कसेरूआ खेरा में पुरातात्विक उत्खनन के दूसरे चरण के दौरान चित्रित धूसर मृदभांड (पीजीडब्लू) पर अंगुली के छाप (फिंगर प्रिंट) मिले हैं। ऐसा पहली बार हुआ है जब एएसआइ को 30 के लगभग अंगुली के छाप एक ही उत्खनन स्थल से प्राप्त हुए हैं। इसके साथ ही पीजीडब्लू पर श्वेत रंग में कमल के फूल की आकृति भी मिली है।

पुरातात्विक अवशेष तकरीबन 3000 साल पुराने हैं

अभी तक जितने भी हड़प्पा पीजीडब्लू से संबंधित स्थलों पर उत्खनन किया गया है, वहां श्वेत की जगह काले रंग से ज्यामितीय आकृति बनाए जाने का प्रमाण मिला है। एएसआइ का कहना है कि यहां मिले पुरातात्विक अवशेष तकरीबन 3000 साल पुराने हैं यानी ये महाभारत काल के समकालीन हैं।

कसेरूआ खेरा में उत्खनन का नेतृत्व कर रहे अधीक्षण पुरातत्वविद् गुंजन कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि उन्हें यहां करीब 25 टुकड़ों पर अंगुली के छाप मिले हैं। कुछ पर एक से ज्यादा यानी कुल मिलाकर 30-35 अंगुली के छाप मिल चुके हैं। वहीं सिर्फ एक लाल मृदुभांड पर भी अंगुली के निशान प्राप्त हुए हैं। जिन्हें शारदा विश्वविद्यालय के फोरेंसिक साइंस विभाग से अध्ययन करवाया जा रहा है।

इसमें शारदा विश्वविद्यालय का इतिहास विभाग व फोरेंसिक विभाग दोनों सहयोग कर रहे हैं। इसके अलावा यहां पीजीडब्लू पर कमल, जानवर व ‘आइ गोडेस’ की आकृति मिली है। यहां मिले पीजीडब्लू की कुल जमाव मोटाई 3.60 मीटर से ज्यादा है जोकि दुर्लभ है। ज्यादातर प्राप्त पीजीडब्लू स्थलों से आधे से एक मीटर के साक्ष्य मिले हैं।

मालूम हो कि पांच चरणों में पुराना किला में उत्खनन का काम चला था, लेकिन वहां सिर्फ गिनती में पीजीडब्लू मिला है। विशेष बात यह कि अभी तक प्राप्त पीजीडब्लू में काले व ग्रे रंग से ज्यामितीय चित्र बनाए जाने का प्रमाण मिला है लेकिन यहां पहली बार सफेद रंग से कमल का चित्र बनाए जाने का प्रमाण प्राप्त हुआ है।

‘अंगुली के छाप का मिलना शोध का विषय’

इतिहासकार भगवान सिंह ने कहा कि हड़प्पा सभ्यता को ऋग्वेद का काल भी कहा जाता है, जब सभ्यता बेहद विकसित थी। इस दौरान पीजीडब्लू बहुत उत्कृष्ट कला थी जो बहुत बड़े इलाके में फैला हुआ है। यह कालखंड 1000-1200 ईसा पूर्व है, जिसे महाभारतकालीन भी कहते हैं। एक स्थान पर इतनी बड़ी मात्रा में पीजीडब्लू के कई प्रकार मिलना निरंतर सभ्यता के विकासक्रम को दर्शाता है। इस काल को महाभारतकालीन भी कहा जाता है। ऐसे में अंगुली के छाप का मिलना शोध का विषय है। क्योंकि आज से पहले उत्खनन के दौरान अंगुली के छाप नहीं मिले हैं।

अभी तक कहीं नहीं मिले अंगुली के छाप : पुरातत्त्वविद्

एएसआइ के पूर्व महानिदेशक व वरिष्ठ पुरातत्वविद् आरएस बिष्ट ने कहा कि कसेरूआ खेरा में खुदाई के दौरान मिले पीजीडब्लू पर सफेद रंग से चित्रकारी व उसका रूप तो दुर्लभ है ही जो अभी तक कहीं उत्खनन के दौरान नहीं मिला है। इसके अलावा सबसे बड़ा विषय शोध का अंगुली की छाप है। इससे यह भी जाना जा सकता है कि क्या आज के कुम्हारों से उनका कोई लेना-देना है यानि वंशानुगत परंपरा तो नहीं।

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