आपकी कलम

टी-शर्ट का रंग बादल लिया है ! रणनीति भी बदल डालें राहुल !

श्रवण गर्ग
टी-शर्ट का रंग बादल लिया है ! रणनीति भी बदल डालें राहुल !
टी-शर्ट का रंग बादल लिया है ! रणनीति भी बदल डालें राहुल !

श्रवण गर्ग 

संसद का शीतकालीन सत्र समाप्त हो गया है और लड़ाई के मैदान अब बदलने वाले हैं ! क्या मोदी-शाह के ख़िलाफ़ लड़ाई में राहुल को अपनी रणनीति बदलने की सलाह देने के लिए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से कहलवाया जा सकता है ?

विपक्षी दलों के तमाम नेताओं के बीच स्टालिन ही नज़र आते हैं जिनकी राहुल इज्जत करते रहे हैं और उनके कहे पर कान दे सकते हैं ! राहुल की दूसरी ‘भारत जोड़ो यात्रा ‘ की मुंबई में समाप्ति पर हुई ‘इंडिया ब्लॉक’ की बड़ी जनसभा में स्टालिन ने कहा था :’राहुल भाई की तरह है। मैं उनके लिए ही यहाँ आया हूँ।’ स्टालिन सभा में ज़्यादा देर रुके भी नहीं थे।

राहुल को सलाह यह देनी है कि मोदी-शाह की राजनीति से हकीकत में मुक़ाबला करना है तो उनकी मौजूदा रणनीति काम नहीं कर पाएगी। विपक्ष को कुचलने में महारथ हासिल कर चुके नेताओं के ख़िलाफ़ राहुल उसी तरह से लड़ना चाह रहे हैं जिस तरह आज़ादी-प्राप्ति के पहले कांग्रेस महात्मा गांधी के नेतृत्व में अंग्रेजों के ख़िलाफ़ लड़ती थी। वह रणनीति इसलिए कारगर साबित नहीं होगी कि अंग्रेज़ प्रजातांत्रिक थे, भाजपा अधिनायकवाद की दिशा में जा रही है। 

राहुल को सही सलाह देने का काम कांग्रेस में कोई नहीं कर सकता। कारण यह कि कांग्रेस में अधिकांश नेता या तो राहुल से डरते हैं या उनकी चापलूसी के अवसर तलाशते रहते हैं। पार्टी में एक वर्ग भाजपा के मुखबिरों का भी सक्रिय बताया जाता है। इसलिए राहुल को सलाह देने का काम कोई थर्ड पार्टी ही कर सकती है। स्टालिन, सोरेन आदि को छोड़ दें तो ‘इंडिया ब्लॉक’ के कई नेता काफ़ी पहले अपनी विश्वसनीयता भाजपा के मुद्दों के हवाले कर चुके हैं। 

संसद-परिसर में 19 दिसंबर को हुई अप्रिय घटना के बाद राहुल के ख़िलाफ़ दर्ज प्रकरणों की संख्या भी बढ़कर उन्नीस हो गई बताई जाती है। इनमें पंद्रह प्रकरणों का संबंध ‘मानहानि’ से और एक का वित्तीय अनियमितता से है। ताज़ा घटना में शिकायत के आधार पर पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता की जिन धाराओं में राहुल के ख़िलाफ़ प्रकरण दर्ज किया है वे धमकाने, चोट पहुँचाने, बल प्रयोग करने, आदि से संबंधित हैं। इनमें एक धारा ग़ैर-ज़मानती है। सजा सात साल से उम्र क़ैद तक की हो सकती है।

दलाल मीडिया के पत्रकार खोज करके बता सकते हैं कि साल 1999 से 2004 के बीच जब अटलजी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार केंद्र में थी विपक्ष के कितने नेताओं के ख़िलाफ़ मुक़दमे दर्ज हुए ? इसी तरह, 2004 से 2014 के बीच के दस सालों में यूपीए की सरकार द्वारा भाजपा सहित कितने विपक्षी नेताओं को मुक़दमों के निशानों पर लिया गया ? मनमोहन सिंह की सरकार के ख़िलाफ़ भाजपाइयों ने कोई तो आंदोलन किया होगा ! संसद में भी हल्ला मचाया होगा। मोदी और शाह भी गिना सकते हैं कि चार दशकों के राजनीतिक जीवन में ‘आपातकाल’ के विरोध सहित कितने नागरिक आंदोलनों में उन्होंने भाग लेकर मुक़दमों का सामना किया ? 

सत्ता-विरोध की जिस रणनीति पर राहुल चल रहे हैं उसे वर्तमान का शासक समूह बिना सांस लिए निगल जाएगा। अतः रणनीति को बदलना पड़ेगा। बाबा साहेब आंबेडकर पर की गई अमित शाह की ‘अपमानजनक’ टिप्पणी का ‘इंडिया ब्लॉक’ के अन्य दल राहुल की तरह ही विरोध नहीं कर रहे थे। वे चतुराई दिखा रहे थे। संसद के ‘मकर द्वार’ पर राहुल-प्रियंका के झुंड के साथ कांग्रेस के अलावा द्रमुक, उद्धव की शिव सेना और ‘आप’ के ही सांसद थे। सावरकर मुद्दे पर उद्धव राहुल से नाराज़ हैं और केजरीवाल राहुल के स्थायी विरोधी हैं ! केजरीवाल दिल्ली में अकेले चुनाव लड़ रहे हैं। उद्धव भी आगे-पीछे यही करेंगे !

सपा के सांसद संसद-परिसर में ही रामगोपाल यादव के नेतृत्व में एक अलग स्थान पर विरोध कर रहे थे। तृणमूल कांग्रेस शाह की टिप्पणी के ख़िलाफ़ सिर्फ़ विशेषाधिकार नोटिस देकर खुश हो रही थी। वह राहुल के साथ खड़ी नहीं दिखना चाहती थी। अदाणी और ईवीएम मुद्दों पर इंडिया ब्लॉक में दरार पड़ चुकी है। 

इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया जाना चाहिये कि सत्तारूढ़ दल द्वारा जितना ग़ुस्सा राहुल के ख़िलाफ़ व्यक्त किया जाता है उतना किसी दूसरे विपक्षी दल या नेता के ख़िलाफ़ नहीं किया जाता !

भाजपा की रणनीति राहुल को अन्य विपक्षी दलों से ‘आयसोलेट’ करने की भी है और मुक़दमों के ज़रिये उन्हें मैदान से हटाकर कांग्रेस को नेतृत्व-विहीन करने की भी। एक घबराई हुई सत्ता अपने उद्देश्य की पूर्ति में किसी भी हद तक जा सकती है, सारे विकल्पों को खुला रखना चाहती है। उसे 2047 के अगस्त में विभाजन की विभीषिका का सौवाँ ‘शोक दिवस’ और उस स्वतंत्रता-प्राप्ति का शताब्दी-पर्व अपने नेतृत्व में मनाना है जिसके संग्राम में वह शामिल नहीं थी। 

राहुल के नागरिक-संघर्ष का संस्कार स्वतंत्रता संग्राम से निकला है जबकि सत्तारूढ़ दल का उसके पितृ-संगठनों के उन नायकों की वैचारिक कोखों से जिन पर कांग्रेस के ख़िलाफ़ षड्यंत्र करने और गांधी-हत्याकांड में शामिल होने के आरोप लगते रहे हैं। 

सावरकर द्वारा प्रारंभ किया गया हिंदू राष्ट्र की स्थापना का काम अगर संघ-भाजपा द्वारा किसी भी क़ीमत पर पूरा किया जाना है तो सत्तारूढ़ संगठनों की वैचारिक प्रतिबद्धता राहुल की सक्रियता को भी उतनी ही बाधक मानेगी जितना महात्मा गांधी की सक्रियता को माना जाता था। वक्त का तक़ाज़ा है जिस तरह राहुल ने अपनी टी-शर्ट का रंग बदल लिया है अब अपनी रणनीति भी बदल डालें !

whatsapp share facebook share twitter share telegram share linkedin share
Related News
Latest News
Trending News