दिल्ली
जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से अचानक इस्तीफा देकर चौंकाया
paliwalwani
नई दिल्ली.
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संसद के मानसून सत्र के दौरान अचानक इस्तीफा दे दिया। इस अप्रत्याशित कदम के पीछे क्या वजह है? जानें राजनीतिक हलकों में क्यों मचा हड़कंप। जगदीप धनखड़ ने सोमवार को उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने इस्तीफे की वजह स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बताई गई हैं। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को अपना इस्तीफा भेज दिया है।
जगदीप धनखड़ ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर इस्तीफा पत्र पोस्ट करते हुए कहा, “आदरणीय राष्ट्रपति जी, स्वास्थ्य सेवा को प्राथमिकता देने और चिकित्सीय सलाह का पालन करने के लिए मैं संविधान के अनुच्छेद 67(ए) के अनुसार तत्काल प्रभाव से भारत के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देता हूं। मैं भारत की राष्ट्रपति के प्रति उनके अटूट समर्थन और मेरे कार्यकाल के दौरान हमारे बीच बने सुखद एवं अद्भुत कार्य संबंधों के लिए अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करता हूं।”
उन्होंने आगे कहा कि मैं प्रधानमंत्री और सम्मानित मंत्रिपरिषद के प्रति अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करता हूं। प्रधानमंत्री का सहयोग और समर्थन अमूल्य रहा है, और मैंने अपने कार्यकाल के दौरान बहुत कुछ सीखा है। संसद के सभी सदस्यों से मुझे जो गर्मजोशी, विश्वास और स्नेह मिला है, वह हमेशा मेरी स्मृति में रहेगा। मैं हमारे महान लोकतंत्र में उपराष्ट्रपति के रूप में प्राप्त अमूल्य अनुभवों और अंतर्दृष्टि के लिए तहे दिल से आभारी हूं।
जगदीप धनखड़ ने आगे कहा कि इस महत्वपूर्ण अवधि के दौरान भारत की उल्लेखनीय आर्थिक प्रगति एवं अभूतपूर्व विकास को देखना और उसमें भाग लेना मेरे लिए सौभाग्य एवं संतुष्टि की बात रही है। हमारे राष्ट्र के इतिहास के इस परिवर्तनकारी युग में सेवा करना मेरे लिए एक सच्चा सम्मान रहा है। इस प्रतिष्ठित पद से विदा लेते हुए मैं भारत के वैश्विक उत्थान और अभूतपूर्व उपलब्धियों पर गर्व महसूस कर रहा हूं और इसके उज्ज्वल भविष्य में अटूट विश्वास रखता हूं।
संसद के मानसून सत्र के पहले दिन हुई, जो पहले से ही विपक्ष और सत्तापक्ष के बीच तीखी बहस के लिए चर्चा में था। धनखड़ का इस्तीफा देश की राजनीति में एक अहम घटना के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि वह देश के दूसरे सबसे बड़े संवैधानिक पद पर आसीन थे। जगदीप धनखड़ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना इस्तीफा भेजते हुए कहा है, 'स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देने और चिकित्सकीय सलाह का पालन करने के लिए मैं भारत के उपराष्ट्रपति के पद से तत्काल प्रभाव से इस्तीफा देता हूँ।' उन्होंने अपने पत्र में राष्ट्रपति और देश की जनता के प्रति आभार व्यक्त किया और कहा कि वह अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते समय हमेशा देश के हित को सर्वोपरि रखने का प्रयास करते रहे।
संसद के मानसून सत्र का माहौल\ 21 जुलाई को शुरू हुआ मानसून सत्र 21 अगस्त तक चलेगा। सत्र में पहले से ही कई मुद्दों पर विपक्ष और सत्तापक्ष के बीच तनावपूर्ण माहौल रहने की संभावना थी। विपक्ष ने पहलगाम आतंकी हमले, ऑपरेशन सिंदूर, और बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन (SIR) जैसे मुद्दों को उठाने की योजना बनाई थी। धनखड़ ने सत्र शुरू होने से पहले सभी दलों से रचनात्मक राजनीति और आपसी सम्मान की अपील की थी।
उन्होंने कहा था, 'हमारे बीच मतभेद हो सकते हैं, असहमतियाँ हो सकती हैं, लेकिन हमारे दिलों में कड़वाहट क्यों हो?'</div></div> <h3>खड़गे ने सरकार को घेरा पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर पर मोदी सरकार सोमवार को बुरी तरह घिर गई। संसद के बाहर पीएम मोदी ने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर कई दावे किए। इसी मुद्दे पर राज्यसभा में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने जोरदार हमला बोला। खड़गे ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर कराने के दावे पर सवाल उठाए।
खड़गे ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के ज़िम्मेदार आतंकवादी अभी तक पकड़े नहीं गए हैं। उन्होंने सरकार से इस मामले में साफ़ जानकारी मांगी। खड़गे ने राज्यसभा में नियम 267 के तहत नोटिस देते हुए कहा, “मैंने पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर पर नोटिस दिया है। आज तक आतंकवादी पकड़े नहीं गए हैं। सभी दलों ने सरकार को बिना शर्त समर्थन दिया था। सरकार को हमें बताना चाहिए कि इस मामले में क्या हुआ। जगदीप धनखड़ का राजनीतिक सफर जगदीप धनखड़ का राजनीतिक और प्रशासनिक करियर लंबा रहा है।
18 मई 1951 को राजस्थान के झुंझुनू जिले के किठाना गाँव में जन्मे धनखड़ ने अपनी स्कूली शिक्षा सैनिक स्कूल, चित्तौड़गढ़ से पूरी की और राजस्थान विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातक और फिर एलएल.बी. की डिग्री हासिल की। उन्होंने 1989 से 1991 तक लोकसभा सांसद के रूप में कार्य किया और 1990-91 में चंद्रशेखर सरकार में संसदीय कार्य राज्य मंत्री रहे। इसके बाद वे 1993 से 1998 तक राजस्थान विधानसभा के सदस्य रहे।