आपकी कलम
बारी मु झाँकती बाई : राजेन्द्र सनाढ्य राजन
paliwalwani
बारी मु झाँकती बाई
टेको लेई न ऊबी वी,
पड़ती- दड़ती बाई,
लटूर्या वकर्या लका,
बारी मु झाँकती बाई।
कोई नी हुणें बाने,
गेरा निसास नाकती बाई,
तरस्यां मरता होठ हूका,
बारी मु झाँकती बाई।
रोटी रो टेम वैई ग्यों,
बाकों फाड़ टूंगती बाई,
पेट मा हळ पड़वां लागा,
बारी मु झाँकती बाई।
जगा-जगाऊँ गाबा फाट्या,
देख-देख हरमाती बाई,
हाथ इज्जत वंचावां लागा,
बारी मु झाँकती बाई।
आ मरे क्यूँ नी डोकरी,
राजन कानाऊं हुणती बाई,
मीने तीर लागवां लागा,
बारी मु झाँकती बाई।
ऊपरे मुंडों कर न,
धणी ने आद करती बाई,
टप-टप आँसू आवां लागा,
बारी मु झाँकती बाई।
अणा ने दुख दे मती,
परभु रे हाथ जोड़ती बाई,
म्हारा दन तो आवां लागा,
बारी मु झाँकती बाई।
बारी मु झाँकती बाई।।
● राजेन्द्र सनाढ्य राजन : व्याख्याता- रा उ मा वि नमाना
नि-कोठारिया, जि-राजसमंद (राजस्थान) M. 9982980777