आपकी कलम

मुस्कुराइए और कत्ल कर दीजिए...

Paliwalwani
मुस्कुराइए और कत्ल कर दीजिए...
मुस्कुराइए और कत्ल कर दीजिए...

अगर विचार करें तो पाएंगे कि जिस तरह आदमी अलग अलग तरह से रोता है, उसी तरह अलग अलग प्रकार से हंसता भी है। कोई खुलकर ठहाके लगाता है तो कोई खिसियानी हंसी हंसता है। और भी भिन्न रूप देखे जा सकते हैं हंसी के, लेकिन जो बात ‘मुस्कुराहट’ में है वह भला और कहां! मुस्कुराहट को किसी ने मनमोहक मीठी छुरी भी कहा है, खून भी नहीं बहता और सामने वाला कत्ल हो जाता है।

बहरहाल, इन दिनों मैं उनकी मुस्कुराहट का कायल हो गया हूँ । वे अक्सर टीवी पर होने वाली बहसों में दिखाई देते हैं। बहस का मुद्दा कुछ भी रहा हो, चाहे जो दलीलें दी जा रहीं हों , मुझे कोई फर्क नही पडता, मैं तो बस उनकी मुस्कुराहट में डूबा रहता हूँ। विपक्षी वक्ता के वक्तव्य पर वे मुस्कुराहट की ऐसी छुरी चलाते हैं कि सामनेवाला लहुलुहान हो जाता है।

निसन्देह उनकी मुस्कुराहट उनके व्यक्तित्व और आचरण पर कोई विपरीत प्रभाव नही छोडती लेकिन वह एक ऐसी ढाल जरूर बन जाती है जो विपक्षी प्रवक्ता के तीखे शब्द बाणों की मारक क्षमता को भोंथरा कर देती है बहरहाल, बात मुस्कुराहट की निकली है तो मुझे चीन की वह लोकप्रिय कहावत याद आ रही है जिसमें कहा गया है कि ‘मुस्कुराएँ और सभ्य नागरिक बनें।’ चीन और हमारे देश की संस्कृति में बहुत सी समानता होने के बावजूद मुझे नही लगता कि हमारे यहाँ मुस्कुराहट और सभ्यता के बीच ऐसा कोई रिश्ता सही बैठता होगा।

यह सही है कि मुस्कुराहट एक संक्रामक क्रिया है,अगर आप मुस्कुरा रहे हैं तो सामनेवाला भी मुस्कुराने लगता है, लेकिन यह कतई जरूरी नही है कि हर मुस्कुराते व्यक्ति के भीतर सभ्यता या मूल्यों की मधुरता के सोते फूट रहे होंगे। किसी व्यक्ति का जनाजा उठ रहा है और आप मुस्कुरा रहे हैं, पडोसी की बिटिया को मुहल्ले का गुंडा परेशान कर रहा है और आप गुंडे की हरकत पर उसके सम्मान में मुस्कुराहट के फूल बरसा देते हैं।

आन्दोलनकारी किसानों और अपने हक के लिए प्रदर्शन करते मजदूरों पर पुलिस की लाठियों और पानी की बौछार से भागते गिरते लोगों को देखकर आपकी आंखों में पानी नही आता बल्कि आप खिलखिला उठते हैं। चीन की यह कहावत कोई गारटी नही देती कि जो मुस्कुरा रहा है वह सभ्य या सुसंस्कृत होगा ही। इसकी बजाय हमारे एक फिल्मी गीत का दर्शन शायद अधिक सटीक उत्तर देने की क्षमता रखता है। गीत में कहा गया है -‘मुस्कुराते हुए दिन बिताना..’ ।

गीत में आगे यह दावा नही किया गया है कि इससे आप सभ्य बन जाएँगे बल्कि समय की अनिश्चितता की आशंका व्यक्त करते हुए आगाह किया गया है कि-‘यहाँ कल क्या हो किसने जाना..’ आज तो जी भर कर मुस्कुरा लो ,कल का क्या भरोसा, मुस्कुराहट पर कल कोई नया नियम कानून लागू हो जाए या बुद्धिमत्ता और सहिष्णुता की तरह मुस्कुराने को भी हीनता के भाव से एक गलती की तरह देखा जान लगे।

तब शायद मुस्कुराना भी दूभर हो जाए। इसलिए जितना हो सके बस मुस्कुराते रहिए। चीन में मुस्कुराहट का कोई सम्बन्ध भले होता हो, हम तो अपनी सभ्यता खुद बनाते हैं। पेट्रोल के दाम बढ़ें या नींबू ,प्याज के। बकासुरों के आग उगलते बयान हों या बुलडोजरों से कुचले घरों से निकली सिसकारियां। हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। हम चुपचाप मुस्कुराते रहते हैं। जितना चाहते हैं, जब चाहते हैं,मुस्कुराते हैं। आप भी बेआवाज मुस्कुराइए। पर ध्यान रखें ठहाका मत लगाइए। वह लाउड होता है। महाभारत का कारण बनता है। अपने प्राकृतिक स्पीकर को लाउडस्पीकर न बनने दें। मुस्कुराहट में मोहकता है। मोहते रहिए। इसी में सबका कल्याण है। इति!

व्यंग्यकार- ब्रजेश कानूनगो 

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