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फ्रेडरिक इरिना ब्रूनिंग भारतीय गौसंस्कृति से गहरा जुड़ाव महसूस करती हैं : रविंद्र आर्य
रविंद्र आर्यमथुरा : जर्मन महिला फ्रेडरिक इरिना ब्रूनिंग, जिन्हें सुदेवी दासी के नाम से भी जाना जाता है, भारत में विरंदावन मे राधा सुरभि गौशाला की संस्थापक हैं। उन्होंने गोसेवा को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया है और भारतीय गौसंस्कृति से गहरा जुड़ाव महसूस करती हैं। गोबर और गोमूत्र के महत्व को समझते हुए, सुदेवी दासी का मानना है कि यह भारतीय जीवनशैली का अहम हिस्सा है और पर्यावरण के अनुकूल होता है।
उनका विचार है कि गोबर और गोमूत्र का उपयोग जैविक खेती, उर्वरक और प्राकृतिक कीटनाशक के रूप में करना चाहिए। गोबर से बने उत्पाद, जैसे बायोगैस और कम्पोस्ट, न केवल रसायनों पर निर्भरता कम करते हैं, बल्कि यह मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरण के संरक्षण में भी सहायक होते हैं। सुदेवी दासी का मानना है कि यदि ग्रामीण समुदाय गोबर और अन्य गौ-उत्पादों का अधिकाधिक उपयोग करें तो यह भारत के कृषि और पर्यावरण के लिए लाभकारी होगा।
उनके विचार में, गोबर धन का सही उपयोग करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती दी जा सकती है और स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर उत्पन्न किए जा सकते हैं। सुदेवी दासी का मानना है कि आधुनिक समाज में गोबर और गौसेवा के प्रति जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है ताकि लोग इस परंपरागत संसाधन के महत्व को समझ सकें।
गोवर्धन पूजा, धर्म, प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने, पारंपरिक मूल्यों को सहेजने का पर्व है। गोवर्धन पूजा का भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में विशेष महत्व है। यह दिवाली के अगले दिन मनाई जाती है और इसे अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को उठाकर गोकुलवासियों की रक्षा के पौराणिक कथा को याद करना है।
गोवर्धन पूजा में भगवान कृष्ण के प्रति आस्था और प्रकृति के प्रति सम्मान का भाव जुड़ा है। इस दिन लोग गोवर्धन पर्वत और गोमाता की पूजा करते हैं, जो पर्यावरण और पशुधन के संरक्षण का प्रतीक है। इस पर्व के माध्यम से यह संदेश दिया जाता है कि हमें प्रकृति का संरक्षण करना चाहिए और अपने प्राकृतिक संसाधनों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।
भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर लोगों को यह सिखाया कि हमें अहंकार से बचना चाहिए और एकजुट होकर विपरीत परिस्थितियों का सामना करना चाहिए। गोवर्धन पूजा से यह संदेश मिलता है कि प्रकृति, पशु और मानव का आपसी संबंध संतुलित होना चाहिए, क्योंकि सभी एक-दूसरे पर निर्भर हैं। इस दिन लोग घरों में अन्नकूट, यानी विभिन्न प्रकार के भोजन बनाकर भगवान को अर्पित करते हैं, जो धन-धान्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
अतः गोवर्धन पूजा, धर्म, प्रकृति और समाज के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और पारंपरिक मूल्यों को सहेजने का पर्व है।
लेखक : रविंद्र आर्य
M. 9953510133