राजसमन्द

चारभुजा को लोग बदरीनाथ का रुप मानते हैं

paliwal wani
चारभुजा को लोग बदरीनाथ का रुप मानते हैं
चारभुजा को लोग बदरीनाथ का रुप मानते हैं

चारभुजा । राजसमंद स्थित चारभुजा गढ़बोर का मन्दिर अपने आप में बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है और मेवाड के चार धाम में से एक माना जाता है । मेवाड़ के चार धामों में श्रीनाथ जी (नाथद्वारा), एकलिंग (कैलाशपुरी), द्वारकाधीश (कांकरोली) एवं चारभुजा (गढबोर) है. इनमे चारभुजा मंदिर, जो प्रभु बदरीनाथ को समर्पित है, राजसमन्द जिले की कुम्भलगढ़ तहसील के गद्बोर गांव में स्थित है. यह राजसमन्द जिला मुख्यालय से दस मील की दुरी पर है. यहां की जलझुलनी एकादशी बहुत ही प्रसिद्ध है । महाराष्ट्र, गुजराज व राजस्थान के कई स्थानों से लोग इस दिन यहां दर्शनों का लाभ लेने हेतू यहां आते हैं ।

छोगाला नाथमेवाड़ और मारवाड के प्रमुख आराध्यों में से एक

राजसमन्द में पलायन का प्रतिशत काफी अधिक है. यहाँ के परिवार देश के कोने कोने में फैले हुए है. इस दिन वे सभी प्रभु चारभुजा नाथ के दर्शनों हेतु आते है. मेवाड़ और मारवाड के प्रमुख आराध्यों में से एक है प्रभु चारभुजा नाथ. यहाँ इन्हें छोगाला नाथ भी कहा जाता है. मंदिर बहुत ही खूबसूरत बना हुआ है. बाहर वो विशाल हाथी पहरा देते हुए बने हुए है ।

जलझुलनी एकादशी

जलझुलनी एकादशी (देव उठनी एकादशी) को प्रभु चारभुजा नाथ के चलायमान स्वरुप लड्डू गोपाल को मंदिर से गांव के तालाब तक ले जाया जाता है. चारभुजा जी को मंदिर से पालकी, सवारी, जिसे बेवान या राम रेवाडी भी कहा जाता है, को गाजे बाजे के साथ, रंग गुलाल उडाते और गीत गाते हजारों की संख्या में लोग तालाब के किनारे स्थित खास स्थल पर ले कर जाते हैं जहां विधिवत स्नान व पूजा अर्चना आदि की जाती है । इस दिन चारों ओर उल्लास का माहौल होता है । औरतें गीत भजन आदि गाती हैं और नृत्य करती है और हजारो लोग भगवान चारभुजा की जय जयकार करते हुए एक विशेष तरह की सवारी निकलते हैं । इस बार यह 26 सितम्बर को है ।

चारभुजा का मंदिर किसने बनवाया यह ज्ञात नहीं

उदयपुर राज्य का इतिहास (गौरीशंकर ओझा) पुस्तक के अनुसार चारभुजा का लेख 1444 ई.- राजनगर से अनुमानतः 10 मील पश्चिम के गड़वोर गाँव में चारभुजा का प्रसिद्ध विष्णु-मंदिर है। मेवाड़ तथा मारवाड़ आदि के बहुत से लोग यात्रार्थ यहाँ आते हैं और भाद्रपद सुदि 11 को यहाँ बड़ा मेला होता है। चारभुजा का मंदिर किसने बनवाया यह ज्ञात नहीं हुआ, परन्तु प्राचीन देवालय का जीर्णोद्धार कराकर वर्तमान मंदिर वि. सं. 1501 (ई. सं. 1444) में खर्वाद जाती के रा. (रावत या राव) महीपाल, उसके पुत्र लखमण (लक्ष्मण), उस लखमण (लक्ष्मण) की स्री क्षीमिणी तथा उसके पुत्र, इन चारों ने मिलकर बनवाया, ऐसा वहाँ के शिलालेख से पाया जाता है। उक्त लेख में इस गाँव का नाम बदरी लिखा है और लोग चारभुजा को बदरीनाथ का रुप मानते हैं। 

श्री चारभुजा जी यात्रा संघ paliwalwan
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