मध्य प्रदेश
मध्यप्रदेश : मेले –झमेले छोड़िये, कुपोषण बड़ी समस्या
Paliwalwaniमध्यप्रदेश में हाल ही में “ महाकाल –लोक” लोकार्पण हुआ। सोशल मीडिया पर इस आयोजन के बाद की जो खबरें खुलासा करती है, वह प्रधानमन्त्री की यात्रा के निमित्त करोड़ो रूपये खर्च करके भीड़ जुटाने की बात है | इस समाचार के साथ एक सरकारी आदेश का भी जिक्र है। आदेश निकालने वाली भी सरकार है और जांच करने कराने वाली भी सरकार।
इसके विपरीत प्रदेश के भविष्य की ओर अनदेखी यानि “कुपोषण” के आंकड़े पत्थर पर लिखी इबारत की तरह है, जिसके लिए सरकार के पास पैसे नहीं है |भारत सरकार ने मानकों के मुताबिक बच्चों के पोषण आहार के लिए 8 रुपये, महिलाओं के लिए 9.50 रुपये और अति गंभीर तीव्र कुपोषित बच्चों के लिए 12 रुपये प्रतिदिन के मान से आवंटन किया जाना चाहिए। अगर यह मानक वास्तव में लागू किया जाए तो मध्यप्रदेश में पोषण आहार के लिए 2254.87 करोड़ रुपये का आवंटन किया जाना चाहिए, लेकिन वर्ष 2021 में इसके लिए केवल 1450 करोड़ रुपये का ही आवंटन किया गया । वर्ष 2022,2023 में न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम - विशेष पोषण आहार कार्यक्रम के लिए 1272.24 करोड़ रुपये का प्रावधान है।
मध्यप्रदेश में बीते 22 सालों में लगभग 3.96 करोड़ जीवित जन्म हुए हैं, और अगर औसतन और बाल मृत्यु दर लगभग 70 प्रति हजार जीवित जन्म रही है। इस मान से २७.७२ लाख बच्चों की मृत्यु पांच साल से कम उम्र में हुई है, जिनमें से लगभग 10 प्रतिशत में अतिगंभीर तीव्र कुपोषण मृत्यु का एक प्रत्यक्ष कारण रहा है|
गुजरात, मध्यप्रदेश का पडौसी राज्य है, वहां भी भाजपा की सरकार है । मध्यप्रदेश सरकार उससे ही कुछ सबक ले | वहां एक योजना चलती है जिसका नाम “पूर्णा योजना” है। पूरे देश में अपनी तरह की यह एक अनूठी योजना है, जिसमें बच्चों के पोषण और किशोरावस्था की लड़कियों के स्वास्थ्य पर काम चल रहा है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता इसके लिए वहां उग रही साग-सब्जी का सहारा ले रहे हैं। हर आंगनवाड़ी के किचन गार्डन में ऐसी सब्जियां उगाई जा रही हैं जिनमें पोषण बहुत है, मसलन पत्ता गोभी, अरबी, भिंडी, करेले और जमीन में उगने वाले कुछ कंद। इनके अलावा स्थानीय स्तर पर उगने वाली दालों के उपयोग पर यहां काफी ज़ोर दिया जाता है।
गुजरात में सरकार तथा सहकारी संस्था अमूल की ओर से ऐसे खाद्य पदार्थों के पैकेट बनाये जा रहे हैं जिनमें न केवल सूखा दूध है बल्कि चने का आटा, मकई का आटा, सोया वगैरह जैसे कई और तरह के पौष्टिक तत्व भी हैं। सभी आंगनवाड़ियों में सोमवार से शनिवार तक ये बच्चों को पानी में डालकर उबालकर पिलाये जाते हैं। बढ़ती उम्र के बच्चों को यह खुराक काफी मददगार साबित हो रही है। इसका नाम है पूर्ण शक्ति और इसे मुफ्त बांटा जा रहा है। मध्यप्रदेश में पोषणाहार वितरण की कहानी जाहिर है।
गुजरात के 82 आदिवासी ब्लॉक में केन्द्र बनाये गये है मकसद यह भी है कि पोषण सुधा कार्यक्रम के तहत पोषण सामग्री लाभार्थी सामने बैठकर खाये। इसके अलावा गर्भवती माताओं और वो माताएं जो शिशुओं को दूध पिलाती हैं उनके लिए मातृशक्ति स्कीम है। इसके तहत उन्हें एक-एक किलो के चार पैकेट दिये जाते हैं जिनमें दालें और डबल फोर्टिफाइड मूंगफली तेल भी होता है। इन्हें गेहूं की बजाय ज्वार, बाजरा वगैरह खाने को प्रोत्साहित किया जाता है। आंगनवाड़ियों में एक और प्रशिक्षण कार्यक्रम चलता है और वह है सासू मां के लिए जिनकी परिवार चलाने में भूमिका महत्वपूर्ण होती है। उन्हें बहू के खान-पान के बारे में वैज्ञानिक तरीके से समझाया जाता है ताकि वे पूर्वाग्रहों से निकलें।
जिस तरह के कुपोषण की स्थिति मध्यप्रदेश में रही है, उसका बहुत सीधा जुड़ाव राज्य में शिशु और बाल मृत्यु दर के साथ भी स्थापित होता है | इसके मूल कारणों का विश्लेषण करके बच्चों के गरिमामय जीवन के मूल अधिकार को सुनिश्चित करने के बजाये, कुपोषण को प्रचार के एक अवसर के रूप में बदल दिया गया है । अगर राज्य में उत्सवों, भीड़ जुटाने वाले कार्यक्रमों और राज्य के बजट से राजनीतिक कार्यक्रमों के आयोजनों का मोह त्यागा जा सके, तो बहुत कुछ हो सकता है।