आपकी कलम

अलविदा प्रिय रंग : बसंत में आये, फ़ागुन में छाए, चैत्र में अगले बरस फिर लौटकर आने का वादा कर लौट गए रंग

नितिनमोहन शर्मा
अलविदा प्रिय रंग : बसंत में आये, फ़ागुन में छाए, चैत्र में अगले बरस फिर लौटकर आने का वादा कर लौट गए रंग
अलविदा प्रिय रंग : बसंत में आये, फ़ागुन में छाए, चैत्र में अगले बरस फिर लौटकर आने का वादा कर लौट गए रंग

तन मन जीवन को रंगीन कर बिदा भये रंग 

बेरंग दुनियां, नीरस जीवन में रंग भर गये सतरंगी रंग 

चौक-चौबारों, गली-मोहल्लों, ओटलों-अटारियों पर अक्स छोड़ गए रंग 

ललाट पर दमके, गाल पर महके, भाल पर चमके रंग, रोम रोम पुलकित कर गए रंग 

मन आंगन-घर आंगन को तरबतर कर गए रंग, धरती-अंबर के बीच बिछा गए रंग बिछोना 

 नितिनमोहन शर्मा...✍️

 ...प्रिय रंग अलविदा कह गए। हम सबके जीवन मे रंग घोलकर वे अपनी राह चल दिये। वादा कर गए अगले बरस फिर जल्द लौटकर आने का ओर एक बार फिर सब तरफ छा जाने का। बसंत में बासंती बयारों के संग आये थे रंग। बसन्त में आये, फ़ागुन में हर तरफ छाए औऱ चैत्र में अलविदा कह गए रंग। तन, मन और जीवन को रंगीन बनाकर लौट गए रंग। इस बेरंग दुनियां को रंगों की अहमियत बता गए रंग और नीरस जीवन मे रंग-रस घोल गए रंग। नीले, पीले, हरे, गुलाबी, लाल, कच्चे, पक्के रंग हर जगह अपना अक्स छोड़ गए। ताकि अगले बरस तक रंग हम आपको याद रहे..!! 

रंग दबे पांव नही आये। प्रकृति ने उनके आगमन की दुंदुभी बजाई थी। भँवरों ने रणभेरी भी गुंजाई थी। ऋतुराज ने दस्तक दे बताया कि बस रंग पीछे पीछे आ रहे हैं। रंगों की अगवानी कुदरत ने की। उसने नूतन श्रंगार किया। पेड़-पौधों की फगुनियो पर फूल खिल उठे। वृक्षो ने अपने पीत पुष्प-पत्र झटक दिए औऱ नूतन हरित पुष्प-पत्र धारण कर लिए। ताल, नदी सरोवरों ने भी ताल से ताल मिलाई और बेमौसम ही रंग की अगवानी में हिलोरे मारने लगे। कोयल ने कुहुक के मंगलगान गाया। मोर, खग, चकोर ने सुर छेड़े। मलयानिल पर्वत से चली शीतल-मन्द-सुगन्ध हवाओ ने संगत दी। मन मयूर में एक मादकता घोलने वाली इन बयारों ने समूची प्रकृति को झूमने को मजबूर कर दिया। जैसे कुदरत स्वयम नाच, गा कर रंग पर्व मनाने में जुट गई। मानव मन से पहले कुदरत के ह्रदय में रंग समाए।* 

यू तो बसन्त पंचमी से रंग गुलाल के ग़ुबार उड़ना शुरू हो गए लेकिन ये बासंती रंग हर किसी के भाग्य में नही। वे बड़े बड़भागी थे जिन्हें बासंती रंग मिले। अन्यथा रंग आगमन की धमक तो होरी के डांडे के साथ हुई। पूर्णिमा पर डांडा गढ़ा, होली पर्व परवान चढ़ा। मठ मंदिरों व देवालयों में इष्ट देवताओं को रंग आने लगे। रसिया गान गूंजने लगे। चंग ढप करताल की ताल सुनाई देने लगी। झालरी, पखावज, किन्नरी, झांझ की झंकार के बीच होरी के गीत गूंजने लगें। फ़ाग उत्सव शुरू हो गए। भजन संध्याओं के जरिये रंगों की अगवानी शुरू हो गईं। देखते ही देखते रंगों की मस्ती परवान चढ़ गई। पहले मन मे, फिर मन आंगन में, फिर घर आंगन में। 

रंग फिर गूंजने लगे फ़ाग गीतों में। होरी की गारी में। ताने-उलाहने में। शोख-मस्ती में। हंसी-ठिठोली में। रंग छाने भी लगे। गोरी के गालों पर। शरमाती सकुचाती नवल नार की देह पर समाने लगे। भौजाइयों के संग गलबहियां करने लगे रंग। तरुणियों से खेलने लगे रंग। बड़ो-बुढो के गले मिलने लग गए रंग। बाल गोपालों के कुर्राटो में खिलखिलाने लगे रंग। सामाजिक सरोकारों का हिस्सा बने रंग तो ग़मगीन परिवारों में रंग भी बिखेर गए रंग। होली के गानों, परस्पर तानों, उलाहनों में समाए रहे रंग। फ़ाग में फूल बन बरसते रहे रंग। प्रेयसी के संग, अंग अंग भिगोते रहे रंग। 

चौक-चौबारों, गली-मोहल्लों, ओटलों अटारियों, बस्ती-कालोनियों में अब सब तरफ अपना अक्स छोड़ गए रंग। बाजारो में भी रंग बिखेर गए रंग और सड़कों को भी रंगीन बना गए रंग। मन आंगन के साथ साथ घर आंगन को भी तरबतर कर गए रंग। दरों-दीवार और दहलीज पर ऐसे बिखरे रंग कि महीनों याद आएंगे रंग। धरती अंबर के बीच रंग बिछोना बिछा गए रंग अब अलविदा कह गए। किसी के ललाट पर दमककर बिदा हुए रंग तो किसी के गुलाबी गाल पर महक छोड़ गए रंग। किसी के भाल पर चमके तो किसी के समक्ष अकस्मात जा धमके रंग। रोम रोम पुलकित कर गए रंग। 

प्रिय रंग, जल्द लौटकर आने का वादा कर बिदा हुए हैं। जब तक वे नही लोटे, मन आंगन में रंग कम न हो। घर आंगन भी रंगमय हो। जीवन बेरंग न रहें। खुशियों के रंग सबके जीवन मे यू ही बरसते रहें...जैसे होली पर बरसे, धुलेंडी पर झूमे और रंगपंचमी पर इठलाये-इतराये। रंगोत्सव सबके जीवन मे कायम रहें। बरस दर बरस। पक्का इन्दौरी ख़ुलासा फर्स्ट की सबके लिए ये ही रंगभरी शुभकामनाएं। 

 अलविदा...प्रिय रंग

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