आपकी कलम
दिल जीते...दिलजीत का..! हर बड़े आयोजन पर इंदौर में ये टोका-टोकी, रोका-रोकी का चलन क्यो?
नितिनमोहन शर्माबदल रहा है 'अपन का इंदौर', बड़ा हो गया शहर, थोड़ा दिल भी बड़ा कीजिये न?
नितिनमोहन शर्मा
दिल जीते न इंदौर, उस दिलजीत का जो देश ही नही विदेश में भी अब भारत का डंका बजा रहा हैं। जिसके गीतों को झूमने को देश विदेश के अनेकानेक शहर बेताब हैं, वह आपके इंदौर में आ रहा हैं। ये शहर का एक तरह से मेगा इवेंट-कंसर्ट हैं। देश-दुनिया में इंदौर की एक नई पहचान से जुड़ा हैं ये आयोजन। तो गाने बजाने औऱ झूमने दीजिये न दिलजीत औऱ उसके दीवानों को। शहर बड़ा हो गया हैं।
सेंट्रल इंडिया का सिरमौर हो रहा है शहर। राज्य ही नही अगल बगल के प्रान्त के युवाओं की तेजी से पसंद हो रही हैं देश की ये सबसे स्वच्छ स्मार्ट सिटी इंदौर। तो दिल भी बड़ा कीजिये न? ये क्या कि इस तरह के हर बड़े मनोरंजन से जुड़े इवेंट-कंसर्ट का विरोध? जो जायज है, उन सब सवालों का समाधान वक्त रहते हो लेक़िन सिर्फ विरोध के नाम पर किसी बड़े इवेंट्स के साथ ऐसा व्यवहार न करें। अन्यथा फिर कौन इंदौर आएगा? इस शहर की मेहमाननवाजी के मिज़ाज का क्या होगा?
दिलजीत के शो जब मुहाने पर आ गया तो एक एक कर सब याद आने लगा। एकाएक अब सँस्कृति को होने वाला कथित नुकसान नज़र आ गया। जीएसटी भी याद आ गई। टैक्स चोरी की चिंता अकस्मात सताने लगीं। मनोरंजन कर की वसूली के तगादे लगने लगे। कलाकार की कलाकारी की जगह उसका खालिस्तानी कनेक्शन तलाशे जाने लगा हैं। कलाकर की कमाई किसान आंदोलन में ख़फ़ाई की ख़ुदाई शुरू हो गई।
जबकि असली चिंता के विषय होना चाहिए सुरक्षा, शराबखोरी व हुड़दंग का। इस विषय पर तो सिर्फ विधायक रमेश मेंदोला ही मुखर हुए। जबकि वे आमतौर पर ऐसे किसी भी इवेंट्स व उसके समर्थन-विरोध से कोसो दूर रहते हैं। वे कलेक्टर कार्यालय तक पहुचे है तो उसके पीछे जायज सवाल है। उनके सवालों का समय रहते समाधन जरूरी भी है। उन्होंने शराब के उपयोग की इजाज़त नही देने और किसी भी प्रकार के हुड़दंग न हो, इसकी चिंता जताई है। लेक़िन शेष का विरोध किस बात को लेकर हैं?
टिकट की ब्लैक मार्केटिंग जरूर सवालों के घेरे में हैं। 5 हजार का टिकट 50 हजार में कैसे बेचा जा रहा हैं? इस पर न सिर्फ सवाल बल्कि इसका समाधान भी होना चाहिए। क्या आयोजक ही इस टिकट की कालाबाजारी के पीछे हैं? इसकी तो जांच ही नही, बल्कि इसके पीछे के लोगो का भी ख़ुलासा हो। ताकि भविष्य में कोई भी इंदौर में इवेंट-कंसर्ट के नाम पर इस तरह की ठगी प्रशंसकों के साथ न कर सके।
कार्यक्रम स्थल की सुरक्षा पर बात हो, कोई गुरेज़ नही। क्योंकि कोई भी होनी-अनहोनी इंदौर की साख को देशभर में दांव पर लगाएंगी। बड़ी संख्या में युवा जुटेंगे, जिसमे युवतियां भी होगी। इनकी सुरक्षा की चिंता हो। इस पर दो टूक आयोजको से हो कि किसी भी प्रकार का नशा वहां जगह नही पाए। शराब की परमिशन जैसे मामले से कंसर्ट को दूर रखना होगा। पहले ही इंदौर नशाखोरी के मामले में आये दिन कलंकित हो ही जाता हैं। ऐसे में इस मेगा कंसर्ट को नशे से दूर रखना प्राथमिकता में होना चाहिए।
अपन का इंदौर' बदल रहा हैं। बड़ा हो रहा है। दिल भी बड़ा करना होगा। ऐसे किसी गाने बजाने से कोई ' संस्कृति-संस्कार' पर वज्रपात नही होने वाला। इसकी चिंता करने वालो को पहले भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय से सवाल जवाब करना चाहिए, जो दृश्य श्रव्य माध्यमों में आज तक ' सांस्कृतिक राष्ट्रवाद' स्थापित नही कर पाए। एक अश्लील विज्ञापन तक बंद न करवा पाए और यहां इंदौर की सड़कों पर सांस्कृतिक प्रदूषण की चिंता प्रकट करने से क्या होना जाना? ऐसे ही आईफा अवार्ड को लेकर कमलनाथ सरकार से सवाल जवाब किये जाते है।
जबकि वो इवेंट हो जाता तो इंदौर का नाम दुनिया के नक़्शे पर रोशन होता। मजे की बात है कि नई पीढ़ी की पसंद का विरोध पुरानी पीढ़ी के लोग ही ज़्यादा कर रहें हैं। अब दिलजीत के गाने में क्या दोष? जब सरकार ही दोसांझ के गीत-अभिनय को फिल्मों में यू सर्टिफिकेट दे रही हैं। कलाकारों का अपना भी निजी जीवन, निष्ठाएं होती है। लिहाज़ा किस आंदोलन से उसका जुड़ाव हैं, ये कम से कम कंसर्ट के मुहाने पर आ जाने के बाद का अहम सवाल नही हो सकता।
दोसांझ तो वैसे भी पंजाब के है औऱ किसान परिवार की पृष्ठभूमि से हैं। नींचे से ऊपर आये है। बहुत संघर्ष के बाद उन्होंने ये मुकाम पाया है कि गोरे देश के ' गोरे-चिट्टे' भी अंग्रेजी धुन भूल उनकी पंजाबी धुन पर झूम रहें हैं। फ़िर ये इंदौर औऱ इन्दौरी क्यो न दिलजीत के सँग नाचे गाए औऱ झूमे। उसके तो दीवाने हर उम्र के हैं। यूथ ही नही, बड़े बूढे भी। बच्चो की दीवानगी भी पूछियेगा दिलजीत के प्रति। तो आने दीजिये दोसांझ को। गाने दीजिये। नाचने दीजिये। नचाने दीजिये एक रात हमारी सेंट्रल इंडिया की इस स्मार्ट सिटी को। यू जबरिया किसी कार्यक्रम का विरोध कर हम इंदौर के उत्सवी मिजाज को क्यो दांव पर लगाये। हैं कि नि भिया??
- ये अच्छी बात नही, न इंदौर का ऐसा मिज़ाज, स्मार्ट सिटी में हो रहे हर बड़े आयोजन में विरोध की हरकतें क्यो?
- अब जीएसटी भी याद आ गई, खालिस्तान कनेक्शन भी जोड़ दिए, शराब की भी हो गई चिंता
- नई पीढ़ी जिसकी दीवानी, पुरानी पीढ़ी क्यो लगा रही अड़ंगा, गाने बजाने झूमने दो न यूथ को?
- टिकट ब्लैक, शराबखोरी, सुरक्षा व टैक्स चोरी जैसी जायज बातों का हो समाधान, शेष कंसर्ट से किसी को क्या दिक़्क़त?