Sunday, 27 July 2025

आपकी कलम

जंगल ने तुम्हें सलाम भेजा है : मुकेश चंद्राकर के लिए पूनम वासम की चिट्ठी

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जंगल ने तुम्हें सलाम भेजा है : मुकेश चंद्राकर के लिए पूनम वासम  की चिट्ठी
जंगल ने तुम्हें सलाम भेजा है : मुकेश चंद्राकर के लिए पूनम वासम की चिट्ठी

प्रिय मुकेश,

तुम्हारे रास्ते के सारे फूल मुरझा गए, तुम्हारे हिस्से की सारी नदियां सूख गईं, सारे पहाड़ भरभराकर गिर गए, तुम्हारे हिस्से का सारा दुःख बादल बनकर उड़ गया। सरई के वृक्ष झुककर तुम्हें जोहार कर रहे हैं, चिड़ियों का एक झुंड उड़कर अभी-अभी तुम्हारे घर की मुंडेर पर आया है, उनके हाथों जंगल ने तुम्हें सलाम भेजा है।

एक हिरन दूर खड़ा तुम्हें पुकार रहा है, उसकी रुदन से मेरा कलेजा फटा जा रहा है। बालीफूल जैसी कितनी ही वन कन्याएं तुम्हारे लिए रास्ते में लाल हजारी के फूल लिए खड़ी हैं। तुम्हारे घर पर यह जो अपराजिता की बेल तुमने लगा रखी है, जाने कब से तुम्हारी राह देख रही है, तुमने जाने कितने गुलाब के पौधे गमलों में लगा रखें हैं, देखो उनकी सारी पत्तियां सूख गई हैं।

तुम्हारे कपड़े अभी भी हैंगर पर लटके हुए हैं, किचन में चाय का बर्तन चाय की खुशबू से अभी भी महक रहा है, तुम्हारे बिस्तर पर सलवटें अभी भी हैं, सामने के दरवाजे पर जो तुमने वॉल हैंगर लटकाया था, वह हवा में अभी भी लहरा रहा है, कविताओं का जो पोस्टर तुमने सामने की दीवार पर चिपकाया था, उसकी पंक्तियां अब धुंधली दिखाई दे रही हैं। तुमसे प्रेम करने वाले सारे लोग तुम्हें छूकर, चूमकर, देखकर तुम्हारी देह को महसूस कर रहे हैं।

तुम सिर्फ अब एक नाम नहीं, तुम अब एक भावना में बदल चुके हो, जो इस वक्त हम सबके भीतर उमड़-घुमड़ रही है। तुम जाने की जिद्द कर रहे हो और हम हैं कि तुम्हें कसकर पकड़े हुए हैं, तुम्हें जाने भी दें तो कैसे जाने दें,भाई मेरे? तुम्हारे जाने से हमारे मन का कोना बाद में खाली होगा, पहले खाली होगा जंगल, फिर जंगल की स्त्रियों का मन, उनकी आंखों की चमक, जिनमें तुमने न्याय का रंग भरा है, उन बच्चों का मन, जिनके भीतर उम्मीद जागी है तुम्हें देखकर कि "तुम बनकर जीता जा सकता है जाने कितनों का मन"!

जंगल के बच्चे तुम्हारी तरह हाथ में हिम्मत, न्याय और एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के हक में अपनी कलम को धार देकर उसे बदल देना चाहते हैं, बोलती हुई, लड़ती हुई, सवाल उठाती हुई, किसी क्रांतिकारी धुन में।

जंगल की स्त्रियां रो रही हैं, वे जानती हैं कि तुम्हारे होने से उनके जीवन में बदलाव का, न्याय का, सम्मान का रंग था, उनकी आंखें तुम्हारी आंखों को ढूंढ रही हैं, ताकि वह दे सकें तुम्हें तुम्हारे अधूरे सपनों की वह पोटली जिसे तुमने उछाल दिया था उस ओर जिस ओर तलवार की नोक बिल्कुल सीधी थी, बिल्कुल दिल वाले हिस्से पर जिसे थोड़ा छूते ही तलवार दिल के आर-पार होता, पर तुम्हें इसकी परवाह कहां थी!

तुम्हें परवाह रही है हमेशा उनकी, जिनके हिस्से ना कभी सरकार आई, न कभी सरकार की कोई धमक, न सरकार की कोई योजना। तुम अकेले ही निकले थे उन पगडंडियों पर, जिन पर चलना तलवार की धार पर चलने जितना कठिन था, तुम्हारा साहस, तुम्हारी निश्छलता, तुम्हारा प्रेम, तुम्हारा जुनून देखकर तुम्हारे पीछे-पीछे दौड़ने लगा था पूरा का पूरा जंगल।

तुम्हारी निडरता, तुम्हारी सच्चाई, तुम्हारा नेक दिल मनुष्य होना ही तुम्हारी कमजोरी बन गई। तुमने सोचा भी नहीं कि यह दुनिया अब वैसी नहीं रही, जैसी तुम बनाना चाहते हो। तुम्हारी मनुष्यता, तुम्हारी संवेदनशीलता, तुम्हारी सच्चाई, तुम्हारी मासूमियत, तुम्हारी नीयत सब कुछ याद रखा जाएगा भाई मेरे। अब तुम्हारी याद की महक से यहां की हवाओं को बाहरी संक्रमण से बचाए रखने की हिम्मत हम सब जुटाते रहेंगे।

आंखें नम हैं, पर दिल गर्व से भरा है। तुमने अपनी जिंदगी में जो सच का अलख जगाया, उसकी लौ से बस्तर के आदिवासियों का जीवन, यहां के बच्चों का जीवन, स्त्रियों का जीवन मद्धम-मद्धम रोशन होता रहेगा।इतनी कम उम्र में जो तुमने किया, वह करने में शायद हम जैसे लोगों के लिए पूरी उम्र कम पड़ जाए, तुम्हारी हत्या उन कायरों की जीत नहीं है, यह उनके डर और कमजोरी का प्रमाण है। तुम्हारी बहन होने का गर्व हमेशा मेरे साथ रहेगा, तुम्हारी लेखनी, तुम्हारे विचार, तुम्हारे शब्द, तुम्हारी सोच को मैं हमेशा सहेजकर रखूंगी भईया मेरे।

तुम कहीं नहीं गए हो, तुम हर उस सच में हो, जिसे बोलने की हिम्मत हम तुमसे सीखते रहेंगे, तुम हर उस लड़ाई में हो, जिसे हम तुम्हारी याद में लड़ने की कोशिश में जारी रखेंगे। तुम्हारे बिना जीवन कठिन है मुकेश, हम सब आधे-अधूरे हैं। जहाँ भी रहो, बस अपनी आवाज में मुझे दिद्दु पुकारते रहना, भूलना मत भईया मेरे।

तुम्हारी दिद्दु  : पूनम वासम

(पूनम वासम प्रसिद्ध कवयित्री हैं, जिन्होंने मुकेश चंद्राकर की ओर से 'लोकजतन' सम्मान ग्रहण किया। मुकेश की कॉर्पोरेट ठेकेदारों ने इस वर्ष 1 जनवरी को हत्या कर दी थी।)

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