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सेवड़ो का संक्षिप्त विवरण : मारवाड़ पाली में पल्लीवाल ब्राह्मणो का राज शासन
paliwalwani.comजब कन्नौज में राजा श्वेतराज जी का शासन था उस समय मारवाड़ पाली में पल्लीवाल ब्राह्मणो का राज शासन था. एक बार महान पंडित जसराज पल्लीवाल जी अपनी तीर्थयात्रा के दौरान अपने भतीज जो कन्नोज राज घराने का धर्मगुरु था. उनके यहां रात्रि विश्राम किया. सवेरे यात्रा शुरू करने से पहले महल से थाली बजने की आवाज व दासी द्वारादी गई सूचना का समय दोनो चाचा भतीजा ने लिख लिया था. सुबह वे तीर्थयात्रा पर रवाना हो गये, तीर्थाटन से वापिस आकर अपने कार्य में लग गये. कुछ समय बाद पाली पर लूट पाट के हमलों से व्यथित तथा अपने वृद्धावस्था को ध्यान में रखते हुए जसाजी के मन में किसी योग्य वीर पुरुष को राज्यभार देने संभलवाने का ख्याल हुआ. इस चिंतन में कन्नौज के राजकुमार की कुण्डली बनाने हेतु पूर्व में लिखित समय के आधार पर उन्होंने गृह नक्षत्र को देख कर जन्म कुंडली बनायी जिससे ज्ञात होता है कि ये बालक नए राज्य का संस्थापक होगा ओर पूरी आयु पाकर के अर्थात् अभयदान प्राप्त बालक है. उसी समय उनके विचार में पाली के लिए उपयुक्त राजकुमार की आश के साथ कन्नौज गंतव्य स्थान के लिये चले गए.
समय के पंख होते है : इधर दूसरे दिन महल के भीतर पंडितो को बुलाया ओर बच्चे की जन्म कुण्डली बनवाई ओर जानकारी की गयी पंडितो ने बताया इस बालक का मुँह देखने से राजा मर जाता है ओर राज्य भी चला जाता है. अत : इस पीड़ा से व्यथित होकर के राज परिवार ने इस बालक को अपने सैनिकों व जल्लादों के साथ मारने के लिये भेज दिया. होनी को कौन टाल सके जल्लाद जब बच्चे को जंगल में लेके गये तो बालक के तेज चंचल मुख को देख कर मारने का मन नहीं किया ओर उस बालक को जंगल में शेर की गुफा के बाहर छोड़ कर आ गये थे. जब जसाजी श्वेतराजजी से उस बालक के बारे में जानकारी प्राप्त की तो तो जसाजी ने कुण्डली निकाल कर राजा को दी तथा खोजबीन कर पता लगाया तो बालक सिंह के बच्चों के साथ खेलता मिल गया. राज परिवार सहर्ष पंडित जसराज जी की बात मानकर नामकरण श्री सिंहाजी किया तथा समय आने पर पाली भेजने के आग्रह को स्वीकार किया. वयस्क होने पर द्वारिका यात्रा के दौरान राव सिंहाजी अपने राजपुरोहित श्री देवपालदेव जी के साथ मारवाड़ में राठौर राज्य की नींव रखी थी. राव सिंहाजी राठौड़ो के आदि पुरुष तथा देवपालजी श्रीगौड़ भी उन्हीं के साथ मारवाड़ में आगमन पर सेंवड राजपुरोहितो के आदि पुरुष कहलाते हैं. 1212 श्री देवपाल जी के दो पुत्र हुए देवपसाव जी और पनपसाव जी, (पाली में सवामण जनेऊ उतरने पर) सभी वहा से चले गए थे. देवपसाव जी के फूलजी हुए, उनके विसपाल जी, उनके बोमण जी, उनके विशोजी, उनके बसंत जी, उनके दो वीरपुत्र विजड जी और बाहेड जी (ईन दोनों भाइयो ने राव सलखा जी को बादशाह अब्दुल खा से छुडवा कर लाये थे) विजड जी के हरपाल जी उनके दामोजी (आप राव जोधा के समय उनके पुरोहित थे तथा जोधपुर किले की नीव के मुहरत पर पंडित गणपत लाल जी को बुलाया था, उनसे किले की नीव का मुहरत निकलवाकर उनको अपना पंडित स्वीकार किया तबसे पुष्करना पुरोहित हमारे पंडित है) दामोजी जी के विशोजी और उनके मूलराज जी हुए.