इंदौर
प्रवासी भारतीय सम्मेलन अव्यवस्था: जवाबदेही तय होगी? : इंदौर की बदनामी, आरएसएस नाराज
नितिनमोहन शर्मासंघ ने चेताया था, स्थान छोटा पड़ेगा
- आईडीए अध्यक्ष चावड़ा नही माने, आखिर हो गई फ़ज़ीहत
- महापौर को दरकिनार करने के लिए चावड़ा के हाथ मे थी पूरी कमान, फेल हुआ मैनेजमेंट
- अगली पंक्तियों में बेशर्मी से डटे थे स्थानीय नेता, मेहमान बाहर खड़े रह गए
- अफ़सरो में भी तालमेल का अभाव, कलेक्टर को भी नीचा दिखाने के हुए प्रयास
बदनामी महापौर के माथे मढ़ने की भी थी तेयारी, भाजपा में भी गुस्सा
'गांव' को ज्ञान दे दिया कि सम्मेलन स्थल के आसपास फटके भी नही। यहां सिर्फ मेहमानों का काम है, मेज़बान का क्या काम? ये 'गुरु ज्ञान' स्थानीय भाजपा नेताओं को खासकर दिया गया था। फिर वो कौन नेता थे जो सभागृह की मेहमानों वाली कुर्सियों पर कब्जा जमाए बेशर्मी से डटे हुए थे? बाहर मेहमानों की परेशानियों ओर हंगामे के बाद भी इन नेताओ ने कुर्सियाँ क्यो नही छोड़ी? पीएम के सामने नेताओ को झांकी जमाना जरूरी था कि मेहमानों को पीएम मोदी को सुनवाना आवश्यक था?
इस सब सवालों के जवाब योजनाबद्ध रूप से दफन कर दिए गए लेकिन इस पूरे मामले में इंदौर की हुई बदनामी का क्या? इंदोरियो का क्या दोष? नेताओ ने अपनी झांकी जमा ली और शहर की साख मिट्टी में मिला दी। इसका कौन जवाबदार? किसकी जवाबदेही? कुछ तो तय होना ही चाहिए न? आखिर प्रदेश के मुखिया को दो दो बार माफी क्यो मांगना पड़ी? इंदौर की बदनामी से संघ भी नाराज है। जवाब तो इस सवाल का भी सामने आना चाहिए कि जब आरएसएस में चेता दिया था कि सभागृह छोटा पड़ जायेगा, कार्यक्रम सुपर कॉरीडोर पर होना चाहिए तो किसने संघ के आगाह को दरकिनार किया?
नितिनमोहन शर्मा...✍️
3500 पंजीयन के बाद भी 2200 की क्षमता वाला हाल कैसे हुआ? ख़ुलासा के इस सवाल का जवाब सामने आया है और वो बड़ा हैरत भरा है। इस मूददे पर 'सरकार ' की मातृसंस्था आरएसएस ने समय रहते चेता दिया था कि सभागृह छोटा पड़ जायेगा। आरएसएस ने ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर की जगह पूरा आयोजन सुपर कॉरिडोर पर करने का सुझाव दिया था। लेकिन सूत्र बताते है कि इस मामले में आईडीए अध्यक्ष जयपाल सिंह चावड़ा नही माने। 'भौपाल ' ने चावड़ा के हाथों में ही इस अहम आयोजन की कमान समय से पहले सोप दी थी।
सूत्रों की माने तो इस काम को भी महज इसलिए अंजाम दिया गया कि कही महापौर पुष्यमित्र भार्गव के खाते में इस अहम आयोजन की सफलता दर्ज न हो जाये। रणनीति तो ये भी थी कि अगर गड़बड़ी होती है तो वह अपयश महापौर पुष्यमित्र भार्गव के खाते में जमा किया जा सके। ख़ुलासा को ये जानकारी भी मिली है कि आला अफसरों के बीच भी बेहतर तालमेल ओर समन्वय नही था। यहाँ तक कि शहर के सौम्य कलेक्टर को भी नीचा दिखाने के प्रयास हुए।
उधर सभागृह के कुछ फोटो भी सामने आए है जिसमे साफ नजर आ रहा है कि स्थानीय भाजपा नेता अग्रिम पंक्तियों में बेशर्मी से डटे हुए हैं। ये हिमाकत उन्ही नेताओं ने की जो 'सरकार' के मुंह लगे हुए है। उन्हें 'सरकार' के नाराज होने का कोई भय नही था। शेष नेता 'सरकार' का भय दिखाकर रोक दिए गए थे लेकिन सरकार के कृपा पात्र नेता अपने खास लोगो के साथ मेहमानों की कुर्सियों पर समय से पहले काबिज़ हो गए। इसका खामियाजा प्रवासी मेहमानो ने उठाया और वे बाहर ही खड़े रह गए।
इस सबसे एक बड़ा नुकसान हमारी आपकी अहिल्या नगरी इन्दौर का हुआ। इस शहर की मेहमाननवाजी की बरसो पुरानी रिवायत पर मेहमान सवालिया निशान लगा गए। दुःख की बात ये है कि शहर के आतिथ्य की परंपरा को कोसते मेहमानों के 'वीडियो देश-दुनिया' तक पहुँची। इसकी भरपाई कैसे होगी ये तो पता नही लेकिन जवाबदेही तो तय होना ही चाहिए कि आखिर किसके कारण ये हालत बने? शहर ये जानना चाहता है कि जब पूरा इन्दौर पलक पाँवडे बिछाए मेहमानों के लिए गदगद हुआ जा रहा था, तब ऐसे कौन नेता थे जो अपनी 'दुकान' चमकाने में लगे हुए थे जिससे शहर के साथ साथ सीएम शिवराज सिंह चौहान को भी शर्मसार होना पड़ा।
फोटो फाईल