इंदौर
इंदौर में पहली बार होगा मेवाड़ रा गरबा...13 अक्टूबर को मेवाड़ी परंपरा और पहनावे का होगा संगम
Sunil Paliwal...✍● मेवाड़ और मालवा की संस्कृति को जोडऩे के लिए मेवाड़़ा रा गरबा-युवाओं का मेवाड़ी जोश
▪ शेखर बागोरा की कलम से...✍️
इंदौर। नवरात्रि शुरू होने के साथ ही गली-मोहल्लों से लेकर बड़े पांडाल रोशन हो गए हैं। इसमें चार चांद लगाने के लिए पहली बार शहर में मेवाड़ी परंपरा और पहनावे के साथ मेवाड़ रा गरबा 13 अक्टूबर 2019 रविवार शाम 6 बजे से मथुरा महल, चोइथराम हॉस्पिटल के पास माणिक बाग रोड़ इंदौर होने जा रहा है। इसके लिए मेवाड़ से मेहमान आ रहे हैं। मेवाड़ सांस्कृतिक मंच ने डांडिया रास से मेवाड़ी संस्कृति को शहर से रूबरू कराने के लिए एक दिनी महफिल सजाई है। शरद पूर्णिमा पर चांद की रोशनी में मेवाड़ी पहनावे के साथ बागियां और महिलाएं रास करती नजर आएगी।
इंदौर में पचास हजार से ज्यादा मेवाड़ी रहते हैं। महाराणा प्रताप की वीर भूमि उदयपुर और चित्तौडग़ढ़ से आकर बसे इन परिवारों ने पहली बार एक दिनी मेवाड़ रा गरबा रखा है। मथुरा महल में किलो के शहर से भी मेवाड़ी आ रहे हैं। मेवाड़ गुजरात से लगा है। यहां की संस्कृति और पहनावा गुजरातियों से अलग नहीं है। गुजरात से मेवाड़ के गांव तक गरबा बरसों पहले पहुंच चुका है। फर्क इतना है कि मेवाड़ में जोशीले अंदाज में डांडिया किया जाता है। यहां डांडिये की बजाए हाथ से गरबा ज्यादा होता है और अंदाज घूमर की तरह रहता है। मेवाड़ी लोकगीतों पर गरबा किया जाएगा।
चारभुजा, सांवरिया सेठ और श्रीनाथजी में होने वाले डांडिया रास की झलक अब अहल्या की नगरी में दिखेगी। सांस्कृतिक मंच से जुड़े लोग बताते हैं, आयोजन के लिए मेवाड़ से जुड़े जानकारों की मदद ली जा रही है। वे जिस तरह कार्यक्रम तैयार करवा रहे हैं, हो रहा है। तीन दिन लड़कियों और महिलाओं को मेवाड़ी डांडिया सिखाने के लिए मेवाड़ से टीम आ रही है। आयोजन की कमान महिलाओं के पास रहेगी। इसमें शहर की उन महिलाओं को बुलाया जा रहा, जिन्होंने शहर का नाम रोशन किया है। पहली बार हो रहे आयोजन को लेकर बैठकों का दौर जारी है। गंगानगर, गोविंद कालोनी, द्वारकाधीश, जनता कालोनी, राजनगर, मरीमाता, कैलाशपुरी, मूसाखेड़ी सहित दो दर्जन से ज्यादा कालोनियों में महिला मंडल की बैठक हो चुकी है। महिला मंडल ने बताया कि मेवाड़ी संस्कृति से नई उम्र को जोड़े रखने के लिए मेवाड़ रा गरबा कराया जा रहा है। गरबों के बदलते स्वरूप में मूलरूप तो छुपता जा रहा है। पढ़ाई-लिखाई और कमाने के चक्कर में संस्कृति विलुप्त न हो, इसके लिए मेवाड़ नहीं अहल्या नगरी में ही मेवाड़ी गरबा होगा तो हमारे बो तो सीखेंगे ही, शहर भी हमारी संस्कृत से रूबरू होगा। बरसों से यहां बसे हैं, अब तो ये शहर भी हमारा हो चुका है। मेवाड़ और मालवा की संस्कृति को जोडऩे के लिए मेवाड़ा रा गरबा खास होगा। यह आयोजन संपूर्ण पालीवाल समाज के लिए रहेगा...जिसको लेकर अभी से एक ही चर्चा हो रही है कि युवाओं की टीम ने इंदौर में मेवाड़ी रंग जमा ही दिया। आयोजन तो बहुत होते है, लेकिन अपने देश की संस्कृति को दुसरे प्रदेश में बताना अपने आप में एक कला ही है। मेवाड़ की रंगत मध्यप्रदेश में पहली बार एक मंच पर दिखाई देगी तो उसे समय अदभूत नजारा देखने को मिलेगा।
!! आओ चले बांध खुशियों की डोर...नही चाहिए अपनी तारीफो के शोर...बस आपका साथ चाहिए...समाज विकास की ओर !!
● पालीवाल वाणी ब्यूरो-Sunil paliwal ...✍️
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