आपकी कलम
प्रेरणादायक कहानी : सीख जो जीवन बदल दे
paliwalwaniप्रेरणादायक कहानी : सीख जो जीवन बदल दे
एक राजा था जिसका नाम रामधन था उनके जीवन में सभी सुख थे. राज्य का काम काज भी ऐशो आराम से चल रहे था. राजा के नैतिक गुणों के कारण प्रजा भी बहुत प्रसन्न थी और जिस राज्य में प्रजा खुश रहती हैं, वहाँ की आर्थिक व्यवस्था भी दुरुस्त होती हैं. इस प्रकार हर क्षेत्र में राज्य का प्रवाह अच्छा था.
तने सुखों के बाद भी राजा दुखी था क्यूंकि उसकी कोई संतान नहीं थी यह गम राजा को अंदर ही अंदर सताता रहता था. प्रजा को भी इस बात का बहुत दुःख था. वर्षों के बाद राजा की यह मुराद पूरी हुई और उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई. पुरे नगर में कई दिनों तक जश्न मना. नागरिको को राज महल में दावत दी गई. राजा की इस ख़ुशी में प्रजा भी झूम रही थी.
समय बितता जा रहा था राज कुमार का नाम नंदनसिंह रखा गया. पूजा पाठ एवम इन्तजार के बाद राजा को सन्तान प्राप्त हुई थी. इसलिये उसे बड़े लाड़ प्यार से रखा जाता था, लेकिन अति किसी बात की अच्छी नहीं होती अधिक लाड़ ने नंदन सिंह को बहुत बिगाड़ दिया था.
बचपन में तो नंदन की सभी बाते दिल को लुभाती थी पर बड़े होते होते यही बाते बत्तमीजी लगने लगती हैं. नंदन बहुत ज्यादा जिद्दी हो गया था. उसके मन में अहंकार आ गया था. वो चाहता था कि प्रजा सदैव उसकी जय जयकार करे उसकी प्रशंसा करें. उसकी बात ना सुनने पर वो कोलाहल मचा देता था.
बैचारे सैनिको को तो वो पैर की जुती ही समझता था. आये दिन उसका प्रकोप प्रजा पर उतरने लगा था. वो खुद को भगवान के समान पूजता देखना चाहता था. आयु तो बहुत कम थी लेकिन अहम् कई गुना बढ़ चूका था.
नन्दन के इस व्यवहार से सभी बहुत दुखी थे. प्रजा आये दिन दरबार में नन्दन की शिकायत लेकर आती थी जिसके कारण राजा का सिर लज्जा से झुक जाता था. यह एक गंभीर विषय बन चूका था.
एक दिन राजा ने सभी खास दरबारियों एवम मंत्रियों की सभा बुलवाई और उनसे अपने दिल की बात कही कि वे राज कुमार के इस व्यवहार से अत्यंत दुखी हैं, राज कुमार इस राज्य का भविष्य हैं, अगर उनका व्यवहार यही रहा तो राज्य की खुशहाली चंद दिनों में ही जाती रहेगी.
दरबारी राजा को सांत्वना देते हैं और कहते हैं कि आप हिम्मत रखे वरना प्रजा निसहाय हो जायेगी. मंत्री ने सुझाव दिया कि राजकुमार को एक उचित मार्गदर्शन एवम सामान्य जीवन के अनुभव की जरुरत हैं. आप उन्हें गुरु राधागुप्त के आश्रम भेज दीजिये सुना हैं,वहाँ से जानवर भी इंसान बनकर निकलता हैं. यह बात राजा को पसंद आई और उसने नन्दन को गुरु जी के आश्रम भेजा.
अगले दिन राजा अपने पुत्र के साथ गुरु जी के आश्रम पहुँचे. राजा ने गुरु राधा गुप्त के साथ अकेले में बात की और नन्दन के विषय में सारी बाते कही. गुरु जी ने राजा को आश्वस्त किया कि वे जब अपने पुत्र से मिलेंगे तब उन्हें गर्व महसूस होगा. गुरु जी के ऐसे शब्द सुनकर राजा को शांति महसूस हुई और वे सहर्ष अपने पुत्र को आश्रम में छोड़ कर राज महल लौट गये.
अगले दिन सुबह गुरु के खास चेले द्वारा नंदन को भिक्षा मांग कर खाने को कहा गया जिसे सुनकर नंदन ने साफ़ इनकार कर दिया. चेले ने उसे कह दिया कि अगर पेट भरना हैं तो भिक्षा मांगनी होगी और भिक्षा का समय शाम तक ही हैं अन्यथा भूखा रहना पड़ेगा. नंदन ने अपनी अकड़ में चेले की बात नहीं मानी और शाम होते होते उसे भूख लगने लगी. लेकिन उसे खाने को नहीं मिला.
दुसरे दिन उसने भिक्षा मांगना शुरू किया. शुरुवात में उसके बोल के कारण उसे कोई भिक्षा नहीं देता था लेकिन गुरुकुल में सभी के साथ बैठने पर उसे आधा पेट भोजन मिल जाता था. धीरे-धीरे उसे मीठे बोल का महत्व समझ आने लगा और करीब एक महीने बाद नंदन को भर पेट भोजन मिला जिसके बाद उसके व्यवहार में बहुत से परिवर्तन आये.
इसी तरह गुरुकुल के सभी नियमों ने राजकुमार में बहुत से परिवर्तन किये जिसे राधा गुप्त जी भी समझ रहे थे, एक दिन राधा गुप्त जी ने नंदन को अपने साथ सुबह सवेरे सैर पर चलने कहा. दोनों सैर पर निकल गये रास्ते भर बहुत बाते की. गुरु जी ने नंदन से कहा कि तुम बहुत बुद्धिमान हो और तुममे बहुत अधिक उर्जा हैं, जिसका तुम्हे सही दिशा मे उपयोग करना आना चाहिये.
दोनों चलते-चलते एक सुंदर बाग़ में पहुँच गये. जहाँ बहुत सुंदर-सुंदर फूल थे जिनसे बाग़ महक रहा था. गुरु जी ने नंदन को बाग़ से पूजा के लिये गुलाब के फुल तोड़ने कहा. नंदन झट से सुंदर-सुंदर गुलाब तोड़ लाया और अपने गुरु के सामने रख दिये. अब गुरु जी ने उसे नीम के पत्ते तोड़कर लाने कहा. नंदन वो भी ले आया.
अब गुरु जी ने उसे एक गुलाब सूंघने दिया और कहा बताओ कैसा लगता हैं, नंदन ने गुलाब सुंघा और गुलाब की बहुत तारीफ की. फिर गुरु जी उसे नीम के पत्ते चखकर उसके बारे में कहने को कहा. जैसे ही नंदन ने नीम के पत्ते खाये उसका मुंह कड़वा हो गया और उसने उसकी बहुत निंदा की. और जतर क़तर पीने का पानी ढूंढने लगा.
नन्दन की यह दशा देख गुरु जी मुस्कुरा रहे थे. पानी पिने के बाद नंदन को राहत मिली फिर उसने गुरु जी से हँसने का कारण पूछा. तब गुरु जी ने उससे कहा कि जब तुमने गुलाब का फुल सुंघा तो तुम्हे उसकी खुशबू बहुत अच्छी लगी और तुमने उसकी तारीफ की लेकिन जब तुमने नीम की पत्तियाँ खाई तो तुम्हे वो कड़वी लगी और तुमने उसे थूक दिया और उसकी निंदा भी की.
गुरु जी से नन्दन को समझाया जिस प्रकार तुम्हे जो अच्छा लगता हैं तुम उसकी तारीफ करते हो उसी प्रकार प्रजा भी जिसमे गुण होते हैं, उसकी प्रशंसा करती हैं. अगर तुम उनके साथ दुर्व्यवहार करोगे और उनसे प्रशंसा की उम्मीद करोगे तो वे यह कभी दिल से नही कर पायेंगे. इस प्रकार जहाँ गुण होते हैं वहाँ प्रशंसा होती हैं.
नंदन को सभी बाते विस्तार से समझ आ जाती हैं और वो अपने महल लौट जाता हैं . नंदन में बहुत परिवर्तन आता हैं और वो बाद में एक सफल राजा बनता हैं .
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कहानी की शिक्षा : गुरु की सीख ने नंदन का जीवन ही बदल दिया वो एक क्रूर राज कुमार से एक न्याय प्रिय दयालु राजा बन गया. इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती हैं कि हममे गुण होंगे तो लोग हमें हमेशा पसंद करेंगे लेकिन अगर हम अवगुणी हैं तो हमें प्रशंसा कभी नहीं मिल सकती
कर्णिका दीपावली की एडिटर हैं इनकी रूचि हिंदी भाषा में हैं| यह दीपावली के लिए बहुत से विषयों पर लिखती हैं | यह दीपावली की SEO एक्सपर्ट हैं.