आपकी कलम

इंदौर के साथ उज्जैन से भी अब तक रूठी हुई है झम-झमाझम बारिश : मकर बरसे मेघराज तो धुले शहर में पसरा " कीचड़-कादा"

नितिनमोहन शर्मा
इंदौर के साथ उज्जैन से भी अब तक रूठी हुई है झम-झमाझम बारिश  : मकर बरसे मेघराज तो धुले शहर में पसरा " कीचड़-कादा"
इंदौर के साथ उज्जैन से भी अब तक रूठी हुई है झम-झमाझम बारिश : मकर बरसे मेघराज तो धुले शहर में पसरा " कीचड़-कादा"

 हैं, दिगा..

तबियत की झड़ी के सब तलबगा 

पावस ऋतु पूरे शबाब पर लेकिन रिमझिम से आगे बढ़ नही रही बात, झमाझम की आस 

मौसम विभाग के रेड, आरेंज अलर्ट अहिल्या नगरी में साबित हो रहे बेमानी 

इंदौर के साथ उज्जैन से भी अब तक रूठी हुई है झम-झमाझम बारिश 

जुलाई भी बीता रीता, अगस्त से अब आस, बीते बरस से 7 इंच पीछे चल रहा इंदौर 

सुनी लो हो " इंदर राजा".! इतरी कितरी मान मनुहार करवाओगा? इनी बार तो तम घणा ही इतरई रियो हो। बरसी तो रिया हो, पन हम सब तरसी भी रिया है। असो कसो बरसो? अई -वई तो खूब लाड़ लड़ई रिया हो न हमसे बेर पाली रखियो हैं? अबे कितरी बार तमारा हाथ जोड़े? पग भी पढ़ लिया तमारे, न कि अबे तमारो माथो भी पूजा कई? मत इतराओ हो इंदर राजा। अबे तो झड़ी लगई दो। देखो नि, सारा नद्दी-नाला रिता पड्या हैं। उनमें पूर ही ज नि अई अब तक। न इंदौर को कोटो पूरो हुई रियो। झड़ी बिन कई बारिश को मौसम? तम समझी ही ज नि रिया। तमारा कितरा नखरा अई रिया इना साल। बुरो मत मानजो इंदर राजा। अब तमारे नि बोलांगा तो किके बोला? लगाई दो हो झड़ी। फिर देखजो हूं तमारा कसा लाड़ लड़ाऊंगो, मजो आई जायगो। 

नितिनमोहन शर्मा ● 

है, परवरदिगार... अब हम सब तबियत से एक मौसम की पहली झड़ी के तलबगार हैं। पावस ऋतु पूरे शबाब पर हैं। हवा है, बादल है, हरियाली है, बिजुरी है, गरजन है लेकिन झम-झमाझम नदारद हैं। बरस तो रहा है जल लेकिन बीते बरस सा नही। रिमझिम से बात आगे नही बढ़ रही। जुलाई रीति बीत गई। बीते साल की तुलना में अभी 7 इंच पीछे है हम सब। अब अगस्त से आस है लेकिन ये भी कही बकवास न हो।

क्योंकि मौसम विभाग के तमाम रेड, आरेंज अलर्ट इस बार बेमानी साबित हो रहे हैं। खासकर अहिल्यानगरी व अवन्तिकापुरी में। इस बार जैसे मेघराज इंदौर-उज्जैन को जैसे बिसरा दिए हो। रूठते तो ये रिमझिम भी नही देते। लिहाज़ा या तो इंदर राजा इंदौर को भूल गए या फ़िर इस बार बरसाने से पहले तरसा रहे हैं। जो भी हो लेकिन अब एक तबियत से झड़ी का इंतजार हैं। जमकर झड़ी लगे तो शहर में पसरा " कीचड़-कादा" धुले। 

पूरे देश में मानसूनी बादल कहर बरसा रहे है लेकिन मालवा अंचल को तरसा रहे हैं। दृश्य-श्रव्य माध्यमों से प्रतिदिन बारिश की मेहरबानी सुन-देख रहे है लेकिन इंदौर में इसकी शुरुआत कब होगी, कुछ पता नही। हर दिन की भोर बादलो की घटाटोप से हो रही है। स्याह-घुसर रंग के बादल रोज आस जगाते है कि आज तो बस सब दिन की कसर निकाल ही लेंगे लेकिन इंच तो दूर बारिश का आंकड़ा मिमी में भी दर्ज नही हो रहा।

मौसम विभाग रोज अंचल में तेज बारिश का अलर्ट जारी कर रहा है लेकिन लगता है इस बार वो भी मौसम के हाथों रोज ठगा रहा है, जैसे हम सब। मौसम विभाग ने तो ये बात दबी जुबां से स्वीकार भी ली है कि इस बार का मानसून, मौसम विभाग की " कोनू फ़िरकी" ले रहा हैं। 

सावन भी तेजी से बीता जा रहा हैं। तीज-त्यौहारों का मौसम भी आ गया लेकिन झमाझम झड़ी का मौसम नही आ रहा। आज हरियाली अमावस भी आ गई। सब तरफ हरियाली तो छाई है लेकिन मन को हरा भरा करने वाली बारिश के अते पते नही हैं। ठकुरानी तीज भी मुहाने पर है औऱ धरती में समाने को बीज भी तैयार हैं। बस इंतजार है तो एक 5-7 इंच की ज़ोरदार झड़ी का। अभी धरती का कंठ तृप्त नही हुआ हैं।

नदियों का नीर, "पूर" चढ़ा हैं। ताल-तलैया-तालाबों ने भी अभी सिर्फ पेटभर पानी ही पिया हैं, बाहर उलीचा नही हैं। न यशवंत सागर के सायफन चले, न बड़े सिरपुर की " मोरी" खुली। " बड़े गांव" का "बनेडिया" भी अब तक उफ़ना नही है और न "पिपलियापाला" लबालब हुआ हैं। " लिम्बोदी" के छलकने का इंतजार भी अब तो लम्बा हो गया। 

 टुकर टुकर ताकता "मोरटक्का" 

है, परवरदिगार...सुन लो हम सबकी ये एक और गुहार। भटके हुए बादलो को ले आओ अहिल्या के आंगन में। भरचक पानी लिए ये बादल रोज इस पार से उस पार आ जा रहे है लेकिन इंदौर के हिस्से का पानी न जाने कहा कहा बरसा रहे है और हमे तरसा रहें है। भोपाल में 4 मर्तबा "कालियासेत" के दरवाज़े खोलना पड़ रहे है। मंदसौर में भगवती शिवना, भगवान शिव-पशुपतिनाथ से आलिंगन कर रही है लेकिन शिप्रा अवंतिकानाथ तक पहुँचने के लिए तरस रही है।

"मेकलसुता" भी " आन-गान" के नीर से फूली फूली है लेकिन निमाड़ का नीर से पूर होने की उसकी आस भी अब तक अधूरी हैं। नतीज़तन " मोरटक्का" भी टुकुर टुकुर आसमान को देख रहा है कि कब मान्धाता नगरी में झमझमझम हो और कब "मैय्या रेवा" का पुण्य स्पर्श उसे मिले। 

 "बारहमत्था" में कब डूबेंगे बारह माथे ?

हिल्या नगरी तो नदी से महरूम है लेकिन नदी से नाला बनी कान्ह, चंद्रभागा और सरस्वती भी अपने मे समाई गाद-गंदगी से मुक्त होने को छटपटा रही है। झड़ी लगे तो तीनों एक साथ उफान पर आए और शहर की गंदगी को बहा ले जाये। अब तक न "किशनपुरा" की छतरियों तक पानी आया, न हरिराव होळकर का गणगौर घाट डूबा है।

लालबाग के बगल के "बारह मत्था" में भी अब तक बारह माथे डूब जाए, इतना पानी नही आया है। न पंचकुइया की कुइया भराई है और न भूतनाथ सरकार भूतेश्वर तक सिरपुर का पानी अभिषेक करने पहुँचा है। हरसिद्धि मैया की बगल से चंद्राकार लपेटा लगाती "चंद्रभागा" भी रीति-रीति पड़ी है और शंकरबाग पर सरस्वती सुनी पड़ी है। जबकि मौसम मानसून की ज़ोरदार बारिश का है। इसलिए हम सब झड़ी के तलबगार है परवरदिगार। ये "मिमी" से कुछ नही होना।

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