उत्तर प्रदेश
रेप पीड़िता से ये क्या बोल गए इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज?
paliwalwani
इलाहाबाद.
संवेदनशीलता एक छोटा सा शब्द है, मगर इसकी अहमियता बहुत ज्यादा है. सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में संवेदन शीलता पर बेहद जोर दिया है. कई बार हाईकोर्ट के जजों को इस बारे में नसीहत भी दी है.
दरअसल, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रेप के एक आरोपी की जमानत मंजूर करते हुए कहा कि भले ही पीड़िता का आरोप सही मान लिया जाए, तो भी यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उसने खुद ही मुसीबत मोल ली और इसके लिए वह खुद जिम्मेदार है. जस्टिस संजय कुमार ने पिछले महीने पारित इस आदेश में कहा कि युवती की मेडिकल जांच में उसका शील भंग पाया गया, लेकिन डाक्टर ने यौन हमले के बारे में कोई ‘एक्सपर्ट ओपिनियन’ नहीं दी.
जज ने इसके साथ ही आरोपी को जमानत दे दी. ऐसी टिप्पणी को लेकर घमासान मच गया है. जानते हैं फैसला सुनाने में संवेदनशीलता क्या चीज है? सुप्रीम कोर्ट बार-बार किस संवेदनशीलता की बात करता है? लीगल एक्सपर्ट से समझते हैं. याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि यह पीड़िता ने स्वीकार किया है कि वह बालिग है और पीजी छात्रावास में रहती है. वकील ने कहा कि वह (पीड़िता) नियम तोड़कर अपनी सहेलियों और पुरुष मित्रों के साथ एक रेस्तरां बार में गई, जहां उसने सबके साथ शराब पी.
उन्होंने कहा कि लड़की अपने साथियों के साथ उस बार में तड़के तीन बजे तक रही. इसके बाद छात्रा ने अपने पुरुष मित्र पर रेप का आरोप लगाया था. यह मामला सितंबर 2024 का है. जस्टिस संजय कुमार ने इस मामले में अभियुक्त की याचिका पर सुनवाई करते हुए जमानत दे दी.
एक फैसले में कहा-जज में संवेदनशीलता की कमी
बीते महीने 26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज के फैसले पर कहा था कि हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि यह निर्णय जज की ओर से संवेदनशीलता की कमी को दर्शाता है. सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा-निर्णय तत्काल नहीं लिया गया था, बल्कि इसे सुरक्षित रखने के चार महीने बाद फैसला सुनाया गया. इसलिए इसमें विवेक का प्रयोग नहीं किया गया.