धर्मशास्त्र

भंवाल माता मंदिर में लगता है ढाई प्याला शराब का भोग, होते हैं चमत्कार

Pulkit Purohit-Ayush Paliwal
भंवाल माता मंदिर में लगता है ढाई प्याला शराब का भोग, होते हैं चमत्कार
भंवाल माता मंदिर में लगता है ढाई प्याला शराब का भोग, होते हैं चमत्कार

● भंवाल माता के इस मंदिर का निर्माण डाकुओं ने कराया था, माता ने बचाई थी डाकुओं की जान

नागौर। (तिलक माथुर, केकड़ी...) भंवाल माता, बैंगानी, झांबड, तोडरवाल (ओसवाल, जैन), राजपूत, गौड़ ब्राह्मण आदि समुदायों की कुलदेवी हैं। भंवाल माता का मंदिर राजस्थान के नागौर जिले की मेड़ता तहसील में भंवालगढ़ ग्राम में स्थित है। यहाँ माता काली व ब्राह्मणी दो स्वरूप में पूजी जाती है। यह शक्तिपीठ राजस्थान के जोधपुर के निकट बिरामी गाँव स्थित भुवाल माता मंदिर से अलग है, इसको लेकर बहुत बार भ्रम बन जाता है।

नवरात्र चल रहे हैं और हर घर में माता की पूजा और जयकारे लग रहे हैं। इस पावन पर्व पर भक्तजन मां के दर्शन के लिए मंदिर में जाते हैं और प्रसाद चढ़ाकर घर परिवार में सुख समृद्धि की मनोकामना करते हैं। हम आपको माता के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताते हैं, जहां माता के दो स्वरूप हैं। माता के ब्राह्मणी रूप को मिठाई का भोग लगाया जाता है वहीं दूसरे रूप काली मां को शराब का। दरअसल, यह मंदिर राजस्थान के नागौर जिले की मेड़ता तहसील के भंवाल गांव में स्थित है। यहां माता काली व ब्राह्मणी दो स्वरूप में पूजी जाती हैं। मंदिर में आने वाले भक्तजन ब्रह्माणी देवी को मिठाई और काली को शराब का भोग चढ़ाते हैं। माता काली के यहां ढाई प्याला शराब चढ़ाई जाती है। इस मंदिर की मान्यता है कि यहां माता ढाई प्याला शराब ग्रहण करती हैं। साथ ही बचे हुए प्याले की शराब को भैरव पर चढ़ाया जाता है। माता काली को चढ़ाने वाली ढाई प्याला शराब कहां जाती है इसका रहस्य अभी तक कोई नहीं जान पाया है। इस चमत्कार की वजह से यह मंदिर आसपास के क्षेत्र सहित राज्य व देश में भंवाल माता के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। दूर दराज से लोग मन्नत लेकर आते हैं, कहा जाता है कि मंदिर में सच्चे मन से आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती है। यह भी बताया गया है कि काली मां ढाई प्याला शराब का भोग भी उन्हीं श्रद्धालुओं का ग्रहण करती है जो सच्चे मन से यहां आता है। भक्त मंदिर में मदिरा लेकर आता है तो पुजारी उससे चांदी का ढाई प्याला भरता है। इसके बाद वह देवी के होठों तक प्याला लेकर जाता है। इस समय देवी के मुख की ओर देखना वर्जित होता है। माता अपने भक्त से प्रसन्न होकर तुरंत ही वह मदिरा स्वीकार कर लेती हैं। माता को मदिरा चढ़ाने का एक नियम भी है। यहां के लोग बताते हैं कि श्रद्धालु ने जितना प्रसाद चढ़ाने की मन्नत मांगी है, मां को उतने ही मूल्य का प्रसाद चढ़ाना होता है। न उससे कम और न उससे अधिक। माता के ढाई प्याला मदिरा का भोग लगाने के बाद शेष बची शराब को भक्तों में प्रसाद के रूप में वितरित कर दिया जाता है। नवरात्र में इस दौरान यहां देश-विदेश से कई लोग आते हैं और माता को मदिरा का भोग लगते देख हैरान रह जाते हैं। इस मंदिर में चमड़े की कोई भी चीज ले जाना सख्त मना है, अगर कोई गलती से ले जाता है तो माता प्रसाद ग्रहण नहीं करती बल्कि रुष्ठ हो जाती है। वैसे तो आये दिन श्रद्धालू यहां माता के दर्शनों के लिए आते है मगर नवरात्र के मौके पर यहां भक्तों का भारी जमावड़ा लगता है। लोग दूर-दराज से इस चमत्कारिक मंदिर के दर्शन करने व अपने मन की मुराद पूरी करने आते हैं। बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण डाकूओं ने करवाया था। माता की मूर्ति एक खेजड़ी के पेड़ के नीचे पृथ्वी से स्वयं प्रकट हुई थीं। इस स्थान पर डाकुओं के एक दल को राजा की फौज ने घेर लिया था। मृत्यु को निकट देखकर डाकुओं ने मां की शरण ली व उन्हें सच्चे मन से याद किया। मां ने अपनी शक्ति से डाकूओं को भेड़-बकरी के झुंड में बदल दिया। इस प्रकार डाकूओं के प्राण बच गए और उन्होंने बाद में मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर परिसर में लगे शिलालेख से पता चलता है कि मंदिर का निर्माण विक्रम संवत् 1380 को हुआ था। मंदिर के चारों और देवी-देवताओं की सुंदर प्रतिमाएं व कारीगरी की गई है। मंदिर के ऊपरी भाग में गुप्त कक्ष बनाया गया था जिसे गुफा भी कहा जाता है। स्‍थानीय निवासी बताते हैं कि यह मंदिर काफी चमत्कारिक भी है, यहां से कोई भी भक्त कभी खाली हाथ नहीं जाता।

● पूजन विधि : मंदिर में दो प्रतिमाएँ स्थापित हैं, बांयी ओर कालका माता तथा दायीं ओर ब्रह्माणी माता। ब्रह्माणी देवी को यहाँ फल या मिठाई आदि का प्रसाद अर्पित किया जाता है लेकिन माँ काली को उनके भक्त ढाई प्याला मदिरा चढ़ाते हैं।

●  कैसे पहुंचे :  भंवाल अथवा भुवाल जैतारण- मेड़ता मार्ग पर स्थित है। निकट का रेलवे स्टेशन मेड़तारोड़ है। यहाँ से किराए के वाहन उपलब्ध रहते है।

●  ठहरने की व्यवस्था : यात्रियों के विश्राम, भोजन व ठहरने हेतु बैंगाणी समुदाय द्वारा निर्मित धर्मशाला मंदिर के निकट ही स्थित है।

भंवाल माता मंदिर में लगता है ढाई प्याला शराब का भोग, होते हैं चमत्कार

भंवाल माता मंदिर में लगता है ढाई प्याला शराब का भोग, होते हैं चमत्कार

● पालीवाल वाणी ब्यूरो-Pulkit Purohit-Ayush Paliwal...✍️

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