धर्मशास्त्र
दान से होता है कल्याण, तुलादान का धार्मिक महत्व और नियम, जानें
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जीवन में तमाम तरह के कष्टों को दूर करने और मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए ज्योतिष (Astrology) के तमाम तरह के उपायों में दान (Daan) का बहुत महत्व बताया गया है. मान्यता है कि दान से न सिर्फ ग्रहों से संबंधित दोष दूर होते हैं बल्कि इससे पापों (Sin) से मुक्ति और पुण्य की प्राप्ति भी होती है.
सनातन परंपरा में जिन तीन प्रकार के दान का बहुत महत्व बताया गया है, उनमें नित्य दान, नैमित्तिक दान और काम्य दान शामिल है. नित्यदान बगैर किसी फल की इच्छा के परोपकार हेतु दिया जाता है, वहीं नैमित्तिक दान जाने-अंजाने में किए पापों से मुक्ति पाने के लिए और काम्यदान तमाम तरह की कामनाओं की पूर्ति के लिए किया जाता है. इन तीनों दान के अंतर्गत भी कई प्रकार के दान आते हैं, जैसे – कन्यादान, विद्यादान, अन्नदान, तुलादान आदि. आइए आज तुलादान (Tula Daan) के बारे में विस्तार से जानते हैं.
क्या होता है तुला दान
सनातन परंपरा में पुण्य फलों को दिलाने वाले तुलादान का बहुत ज्यादा महत्व है. इसमें किसी भी मनुष्य के भार के बराबर अनाज दान करने का महत्व है. इस दान का महत्व तब और बढ़ जाता है जब इसे किसी पर्व विशेष पर किसी पवित्र नदी में स्नान करने के बाद किसी तीर्थ पर किसी योग्य व्यक्ति को दान किया जाता है. तुला दान को हमेशा शुक्ल पक्ष में रविवार के दिन करना चाहिए. तुलादान में नवग्रह से जुड़ी सामग्री दान करने पर नवग्रहों से जुड़े दोष भी दूर हो जाते हैं. मान्यता है कि तुलादान को करने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और वह सभी सुखों को भोगता हुआ अंत समय में मोक्ष को प्राप्त होता है.
कैसे शुरु हुआ तुलादान
तुला दान बारे में मान्यता है कि कभी भगवान विष्णु के कहने पर ब्रह्मा जी ने तीर्थों का महत्व तय करने के लिए तुलादान करवाया था. हालांकि इसके पीछे भगवान कृष्ण की एक कथा भी आती है. कहते हैं कि एक बार भगवान सत्यभामा ने भगवान श्रीकृष्ण पर अपना एकाधिकार जमाने के लिए महर्षि नारद को दान में दे दिया. जब नारद मुनि भगवान कृष्ण को ले जाने लगे तो सत्यभामा को अपनी इस भूल का अहसास हुआ.
तब उन्होंने दोबार से भगवान कृष्ण को पाने का उपाय पूछा तो नारद मुनि ने उन्हें भगवान कृष्ण का तुलादान करने को कहा. इसके बाद तराजू में एक तरफ भगवान श्रीकृष्ण और दूसरी तरफ स्वर्णमुद्राएं, गहने, अन्न आदि रखा गया लेकिन भगवान कृष्ण का पलड़ा नहीं उठा. इसके बाद रुक्मणी ने सत्यभामा को दान वाले पलड़े में एक तुलसी पत्र रखने को कहा. सत्यभामा ने जैसा तुलसी का पत्ता रखा, दान वाला पलड़ा भगवान श्रीकृष्ण के पलड़े के बराबर हो गया. तब भगवान श्रीकृष्ण ने तुलादान को महादान बताया. जिसके करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति और पुण्य फल की प्राप्ति होती है.
कैसे करें तुला दान
तुलादान करने के लिए आप चाहें तो नवग्रह से जुड़े अनाज को या फिर सतनजा (गेहूं, चावल, दाल, मक्का, ज्वार, बाजरा, सावुत चना) दान कर सकते हैं. इसके अलावा आप चाहें तो आप अपने भार के बराबर हरा चारा तोलकर, रविवार के दिन किसी गोशाला में दान कर सकते हैं. इसकी जगह आप चाहें तो आप पक्षियों को डाले जाने वाले अनाज का तुलादान कर सकते हैं और उसे प्रतिदिन पक्षियों को खाने के लिए डाल सकते हैं.
● Disclaimer :इस लेख में दी गई ज्योतिष जानकारियां और सूचनाएं लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं. इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं. पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें. पालीवाल वाणी इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले इससे संबंधित पंडित ज्योतिषी से संपर्क करें तथा चिकित्सा अथवा अन्य नीजि संबंधित जानकारी के लिए अपने नीजि डॉक्टरों से परार्मश जरूर लीजिए. पालीवाल वाणी तथा पालीवाल वाणी मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है.