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Ratan Tata: देश के "रतन" नहीं रहे, उद्योगपति, समाजसेवी और टाटा ग्रुप के मुखिया रतन टाटा ने 86 वर्ष की उम्र में ली आखिरी सांस
PushplataRatan Tata : जाने-माने उद्योगपति, समाजसेवी और टाटा ग्रुप के मुखिया रतन टाटा का निधन हो गया है। अपने सामाजिक कामों और चैरिटी के लिए मशहूर रतन नवल टाटा ने 86 वर्ष की उम्र में आखिरी सांस ली। रतन टाटा ने अपनी जिंदगी में बहुत सारी बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं और शायद कुछ शब्दों में उन्हें बयां कर पाना शायद नामुमकिन है। वह ना केवल एक सफल कारोबारी थे बल्कि एक शानदार लीडर, दानवीर और लाखों लोगों के लिए उम्मीद का प्रतीक भी बने।
प्रधानमंत्री ने रतन टाटा के निधन पर दुख जताया है। उन्होंने कहा, “श्री रतन टाटा जी एक दूरदर्शी कारोबारी नेता, एक दयालु आत्मा और एक असाधारण इंसान थे। उन्होंने भारत के सबसे पुराने और सबसे प्रतिष्ठित व्यापारिक घरानों में से एक को स्थिर नेतृत्व प्रदान किया। साथ ही, उनका योगदान बोर्डरूम से कहीं आगे तक गया। उन्होंने अपनी विनम्रता, दयालुता और हमारे समाज को बेहतर बनाने के लिए एक अटूट प्रतिबद्धता के कारण कई लोगों के बीच अपनी जगह बनाई।”
राजनाथ सिंह ने जताया दुख – रतन टाटा के निधन पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दुख जताया है। उन्होंने X पर पोस्ट कर कहा, “श्री रतन टाटा के निधन से दुखी हूं। वे भारतीय उद्योग जगत के एक ऐसे दिग्गज थे जिन्हें हमारी अर्थव्यवस्था, व्यापार और उद्योग में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है। उनके परिवार, मित्रों और प्रशंसकों के प्रति मेरी गहरी संवेदनाएं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।”
रतन नवल टाटा को राष्ट्र निर्माण में उनके अतुलनीय योगदान के लिए दो सबसे उच्च नागरिक सम्मानों से नवाजा जा चुका है। उन्हें पद्म विभूषण और पद्म भूषण मिल चुका है। टाटा ग्रुप को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने वाले रतन टाटापर सबसे ज्यादा फॉलो किए जाने वाले उद्योगपति भी हैं।
रतन टाटा का जन्म 1937 में जाने-माने पारसी टाटा परिवार में हुआ। उनके पिता नवल टाटा और मां सूनी टाटा थीं। कम उम्र में ही उन्होंने अपने पारिवारिक बिजनेस की बागडोर संभाली। उन्होंने मशहूर हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से अपनी पढ़ाई पूरी की। उन्होंने Cornell University से आर्किटेक्चर में ग्रेजुएशन किया है।
रतन टाटा ने 1962 में टाटा ग्रुप ज्वॉइन कर लिया था और धीरे-धीरे अपने हुनर व ग्रुप में मिलने वाले अलग-अलग एक्सपीरियंस की बदौलत उन्होंने तरक्की हासिल की। 1991 में उन्हें Tata Group की होल्डिंग कंपनी Tata Sons का चेयरमैन नियुक्त किया गया।