मध्य प्रदेश
रीवा से भोपाल तक गूंजते इस सवाल का जवाब अब सरकार को देना ही होगा
अनिल शर्मा
रीवा से अनिल शर्मा
रीवा. यह मुद्दा अब सिर्फ एक राजनीतिक विवाद नहीं रहा। यह एक परीक्षा बन गई है कि क्या हमारी पुलिस निष्पक्ष रह पाती है, क्या जनप्रतिनिधियों की गरिमा सुरक्षित है, और क्या लोकतंत्र में सवाल पूछने की जगह बची है?
बड़ा सवाल : क्या रीवा में पुलिस प्रशासन सत्ता का हथियार बन गया है?
रीवा जिले से उठी एक घटना ने अब मध्यप्रदेश की राजनीति में हलचल मचा दी है। पूर्व विधायक केपी त्रिपाठी से जुड़ा विवाद अब एक व्यक्ति विशेष तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह पुलिस की निष्पक्षता, सत्ता और प्रशासनिक गठजोड़ और लोकतंत्र की गरिमा पर सवाल खड़े कर रहा है। सदन में उठे तीखे स्वर इस बात की पुष्टि करते हैं कि मामला अब पूरी तरह राजनीतिक रूप ले चुका है।
विधानसभा में रीवा का मामला छाया, चोरहटा थाना व सीएसपी रितु उपाध्याय के मुद्दे पर गरमाया सदन
मंगलवार को विधानसभा सत्र के दौरान रीवा जिले के चोरहटा थाने में घटित घटनाक्रम ने सदन का माहौल पूरी तरह गर्मा दिया। कांग्रेस के इकलौते विधायक अभय मिश्रा ने इस मुद्दे को प्रश्नकाल के दौरान जोरदार तरीके से उठाया। उन्होंने सीधे-सीधे पुलिस प्रशासन पर आरोप लगाए कि यह कार्रवाई पूर्व विधायक केपी त्रिपाठी को बदनाम करने के लिए की गई।
अभय मिश्रा ने कहा – "यदि किसी पर मामला दर्ज करना था तो कानूनी प्रक्रिया का पालन होता, लेकिन 36 घंटे तक थाने में बिठाकर मेरे ऊपर मुकदमा दर्ज कराया गया है वह 'राजनीतिक ड्रामा' था। यह जनप्रतिनिधियों का अपमान है।"
उनकी इस बात का समर्थन नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने भी किया। उन्होंने सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए जवाब देने की मांग की। इसके साथ ही विपक्ष के अन्य विधायक भी अपनी सीटों से खड़े होकर सत्ता पक्ष के खिलाफ नारेबाजी में शामिल हो गए।
सदन में उठा विपक्ष का स्वर – "यह सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, लोकतंत्र का सवाल है"
विपक्ष का कहना था कि अगर विधायक के साथ ऐसा व्यवहार हो सकता है, तो आमजन की क्या स्थिति होगी? उन्होंने पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की मांग करते हुए दोषी अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की। उनका आरोप था कि पुलिस ने राजनीतिक दबाव में आकर कार्रवाई की, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ है।
विधानसभा अध्यक्ष को करना पड़ा हस्तक्षेप
जब सदन का माहौल ज्यादा गरमा गया और हंगामा थमने का नाम नहीं ले रहा था, तब विधानसभा अध्यक्ष को खुद हस्तक्षेप करना पड़ा। उन्होंने दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील करते हुए कहा,
“यदि मामला मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाया जा चुका है, तो विधानसभा की प्रक्रिया के तहत इसे जांच समिति को भेजा जा सकता है। हंगामे से समाधान नहीं मिलेगा।”
विपक्ष का आरोप – “मुख्यमंत्री मौन क्यों हैं?”
नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने तीखे लहजे में कहा कि “24 घंटे बीत गए लेकिन मुख्यमंत्री मोहन यादव अब तक चुप हैं। यदि यह मामला गंभीर नहीं होता, तो सदन में इतना हंगामा क्यों होता? मुख्यमंत्री को सामने आकर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।” इस टिप्पणी के बाद विपक्षी विधायकों ने नारेबाजी और ज्यादा तेज कर दी। सत्ता पक्ष इस पूरे घटनाक्रम में बैकफुट पर नजर आया। स्थिति को नियंत्रित करने की भरसक कोशिशों के बावजूद प्रश्नकाल शोर-शराबे की भेंट चढ़ गया।