राजसमन्द

कैसे बसा राजसमंद शहर व कैसे रखा शहर का नाम कांकरोली

suresh bhat
कैसे बसा राजसमंद शहर व कैसे रखा शहर का नाम कांकरोली
कैसे बसा राजसमंद शहर व कैसे रखा शहर का नाम कांकरोली

राजसमंद। भारत के मानचित्र में राजसमंद एक झील के नाम से जाना जाता था। जो बाद में दस अपे्रल 1991 से जिला की संज्ञा से पहचाना जाने लगा। मानचित्र में 75.8 डिग्री देशान्तर एवं 25.10 अक्षांश के बीच का भूभाग जो आजादी के पहले मेवाड़ का महत्पूर्ण अंग था और राजनगर जिला में आता था। राजनगर का जन्म महाराणा राजसिंह प्रथम के समय संवत् 1718 से संवत् 1732 जब राजसमंद झील का निर्माण हुआ था। तब पुरानी बस्ती से हुआ था। वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकार फतहलाल गुर्जर (अनोखा) ने बताया कि महाराणा राजसिंह ने अपने नाम से राजसमंद झील, राजनगर तथा राजप्रसाद (पुराना किला) तीन यादें छोड़ी थी। यही राजनगर व कांकरोली की आबादी राजसमंद जिले के नाम से आज कायम है। कांकरोली का नामकरण होने के पीछे कई ऐतिहासिक किवदंतियां रही है, जिनमें संवत् 1800 के वर्षों में भीलवाड़ा से गाड़ी किराए पर लेकर हिन्दी के जनक बाबु हरिशचन्द्र कांकरोली व नाथद्वारा की यात्रा में आए थे, जिन्होंने कंकरोली भूमि देखकर कांकरोली रखने का विचार रखा। वास्तव में कांकरोली नाम अपभं्रस से सुधर कर बना है। वर्षों पूर्व यहां रावतों की बस्ती थी और खाका गौत्र के रावतों को मेवाड़ महाराणा द्वारा डोली यानी जमीन दी जाने से खाकाडोली प्राचीन नाम था। ख का क और डोली की अंग्रेजों द्वारा कोमल रोली हो गया। आज भी गांवों के लोग खांकडोली उच्चारण करते है। कांकरोली के इतिहास में पंडित कण्ठमणि शास्त्री लिखते है कि आसोटिया में रावत भेला हुवा और सुरे रोपी श्रीद्वारिकाधीश रे मंदिर, जेठ सुदी 14 (चैदस) संवत् 1865।

ताम्रपत्र पर लिखा ईतिहास

इस बैठक में रावतों ने जो ताम्रपत्र लिखाया, वो इस प्रकार से है- ‘‘समसथ रावत अपरंच ग्राम षाषडोली में ठाकुर श्रीचारभुजा जी मंदिर ने पीपलाज माता को थान, कूड़ी माका बडावा की है। मंदर रे लारा जमी ।।४।। राणाजी रतनसिंह आमेट की तरफूं बीघा चार षडम भोग समेट भेंट है ने आपकी तरफू रीपा पांच भरोवा सरदा सही ठाकुरजी के भेंट मेलता रागा ने म्हारा वंश का जो लोयेगा जीने माताजी की आण है ने गड की हता लगेगा और ठाकुरजी चारभुजा पुगेगा, संवत् १८६५ ने ३ बुधवार यह संकेत मिला राजप्रशस्ति शिलालेख अनुसारउपयुक्त प्रमाण लेख के पास संग्रह में है। ये रावतों के मंदिर मालनियां चैक से किसान मोहल्ला की तरफ जाते हुए बांये हाथ की तरफ है।

प्रभु श्रीद्वारिकाधीश संवत् 1727 में आसोटिया आकर बिराजे थे

ये मंदिर बहुत पुराने है। ऐसा ही गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर पुराना है। जब राजसमंद झील की कांकरोली की पाल बन रही थी उस समय प्रभु श्रीद्वारिकाधीश संवत् 1727 में आसोटिया आकर बिराजे थे। राजसिंह ने तालाब पेटे में बसे 16 गांवों को किनारे पर बसाए। तीस बावडियां तालाब के पेटे में मर्ज हुई। गांव राजप्रशस्ति शिलालेख अनुसार क्रमश :- मंडा, मोरचना, बांसोल, मंडावर, छापरखेड़ी, पसून्द, गुड़ली, भाणा, लवाणा, सनवाड़, सेवाली, भगवान्दा, धोइन्दा, खेड़ी, कांकरोली, तासोल। रेती मोहल्ला में ब्रजवासियों को बसाया गया तो गुप्तेश्वर मंदिर की नीचे सुरक्षित रखा गया और ऊपर सडक बनाई गई। गोमती नदी जो नोचैकी से निकल कर खटीक मोहल्ला (वर्तमान) से बहती हुई तालेड़ी में मिलती थी, उसे बांध कर नौचैकी के तोरण तीन छातरियां बनाई गई। यहां कोई सती नहीं हुई। गिरवर माता को गेवर माता पुकराने लगे।
फोटो-सुरेश भाट, राजसमंद। विश्व प्रसिद्ध राजसमंद झील का विहंगमन दृष्य। 

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