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सच में होगा 25 दिन में पैसा डबल! रखें ध्यान कहीं ‘डब्बा ट्रेडिंग’ से ना हो जाए आपका ‘डब्बा गुल’

Paliwalwani
सच में होगा 25 दिन में पैसा डबल! रखें ध्यान कहीं ‘डब्बा ट्रेडिंग’ से ना हो जाए आपका ‘डब्बा गुल’
सच में होगा 25 दिन में पैसा डबल! रखें ध्यान कहीं ‘डब्बा ट्रेडिंग’ से ना हो जाए आपका ‘डब्बा गुल’

अगर आप शेयर बाजार में इंवेस्ट करते हैं, तब आपको आज ये कहानी आपके लिए है. मुंबई क्राइम ब्रांच ने कांदिवली ईस्ट में रहने वाले 45 साल के जतिन सुरेश मेहता को गिरफ्तार किया है. मेहता एक ‘डब्बा ट्रेडिंग’ रैकेट चलाने का आरोपी है और 4 महीने के भीतर इसने 4,672 करोड़ रुपये के शेयर्स का ट्रांजेक्शन किया है. अब आप सोच रहे होंगे ये ‘डब्बा ट्रेडिंग’ क्या है? कहीं आपका ब्रोकर भी तो इसमें इन्वॉल्व नहीं है? शेयर बाजार में लगाया आपका सारा पैसा सेफ है भी या नहीं? यहां आपको सारी डिटेल मिलेगी…

पहले ये बता दें कि जतिन सुरेश मेहता के इस ‘डब्बा ट्रेडिंग’ से केंद्र और राज्य सरकार के खजाने को 1.95 करोड़ रुपये की चपत लगी है. उसे कोर्ट के सामने पेश किया गया है, जहां से उसे 26 जून तक के लिए पुलिस कस्टडी में भेज दिया गया है. अब बात ‘डब्बा ट्रेडिंग’ की…

क्या होती है ‘डिब्बा ट्रेडिंग’?

‘डब्बा ट्रेडिंग’ को आप शेयरों की ‘काला बाजारी’ या ‘सट्टेबाजी’ भी समझ सकते हैं. इस तरह की ट्रेडिंग में एक ब्रोकर ( जिसे डब्बा ब्रोकर भी कहा जाता है) और एक इंवेस्टर के बीच शेयर्स की खरीद-फरोख्त के लिए कैश में लेनदेन होता है. कैश लेनदेन की वजह से ये ट्रांजेक्शंस बैकिंग और रेग्युलेटरी जैसे कि सेबी वगैरह के दायरे से बाहर होते हैं, इसलिए लोग टैक्स बचाने के लिए डब्बा ट्रेडिंग करते हैं.

सच में होगा 25 दिन में पैसा डबल?

अब इस तरह की शेयर ट्रेडिंग में जो डब्बा ब्रोकर होता है, उसका ना तो कोई रजिस्ट्रेशन होता है, ना ही उसके पास सेबी का कोई लाइसेंस होता है. यानी अगर वह गायब हुआ, तो कड़ी मशक्कत के बाद क्राइम ब्रांच ही उसे पकड़ सकती है, हम और आप तो नहीं पकड़ सकते. इसकी वजह उसके ऊपर कोई रेग्युलेटरी कंट्रोल नहीं होना है. याद आई ना अब आपको ‘फिर हेरा फेरी’ की ’25 दिन में पैसा डबल’ वाली लाइन, जहां विपाशा बसु लोगों का पैसा लेकर गायब हो जाती हैं.

कैसे होती है ‘डिब्बा ट्रेडिंग’?

डब्बा ट्रेडिंग का तरीका भी बेहद आसान है, इसलिए भी लोग इसकी तरफ आकर्षित होते हैं. डब्बा ट्रेडिंग शेयर मार्केट या सेबी के दायरे से बाहर होने वाली शेयर ट्रेडिंग है. इसे उदाहरण से समझते हैं…मानकर चलिए एक कंपनी ABC का शेयर 1000 रुपये का है और एक इंवेस्टर ने डब्बा ब्रोकर के साथ इसके 1500 रुपये तक पहुंचने के लिए सौदा किया है. अब अगर शेयर का भाव 1500 रुपये पहुंच जाता है, तो ब्रोकर इंवेस्टर को उसके हिसाब से पैसा देगा, लेकिन अगर यही 1000 रुपये का शेयर 800 का रह गया, तब इंवेस्टर 200 रुपये के हिसाब से ब्रोकर को पैसा देगा.

डब्बा ट्रेडिंग का हिसाब सीधा-सीधा है. इसमें इंवेस्टर का फायदा ब्रोकर का नुकसान और ब्रोकर का फायदा इंवेस्टर का नुकसान होता है. और सरकार का नुकसान हर हाल में होता है, क्योंकि ये सारा ट्रेड एक तो कैश में होता है, दूसरा रेग्युलेटरी के दायरे से बाहर, तो सरकार को लगती है टैक्स की चपत. भारत में शेयर बाजार से जुड़े कानूनों के तहत ‘डब्बा ट्रेडिंग’ पूरी तरह अवैध है.

कैसे बचें ‘डब्बा गुल’ होने से?

डब्बा ट्रेडिंग, डब्बा ब्रोकर और सरकार को होने वाले नुकसान के बारे में तो अब आपको समझ आ गया होगा. लेकिन इससे बचें कैसे? कैसे पता करें कि आपका ब्रोकर कोई ‘डब्बा ब्रोकर’ तो नहीं है? दूसरा सवाल ये भी आपके मन में होगा कि ‘डब्बा ट्रेडिंग’ लोग करते क्यों हैं?

चलिए इसको भी थोड़ा आसान भाषा में समझते हैं. सबसे पहले तो ये कि डब्बा ट्रेडिंग में ना सिर्फ इंवेस्टर बल्कि ब्रोकर के भी टैक्स की बचत होती है. इसलिए लोग इसकी तरफ आकर्षित होते हैं. वहीं नकद लेनदेन होने की वजह से कोई हिसाब-किताब नहीं रखना होता, इसका मतलब ‘काला धन’ रखने वालों की चांदी ही चांदी.

अब बात करते हैं कि इससे बचे कैसे?… तो सबसे जरूरी है कि आप अपने शेयर ब्रोकर के बारे में पक्के से पता लगाएं कि उसका सेबी के साथ रजिस्ट्रेशन है या नहीं. दूसरा आप नकद में शेयर का लेनदेन ना करें. वहीं शेयरों की खरीद-फरोख्त हमेशा डीमैट फॉर्म में करें और इसके लिए किसी ऑथेंटिक ब्रोकर एप या टूल या सॉफ्टवेयर का ही सहारा लें, क्योंकि डब्बा ब्रोकर ट्रेडिंग के लिए अपने लेवल पर डेवलप किए गए सॉफ्टवेयर्स का इस्तेमाल करते हैं.

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