नाथद्वारा

श्री नाथजी होली उत्सव श्रृृृंगार : व्रज - फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी (त्रयोदशी क्षय)

Narendra Paliwal-Nanalal Joshi
श्री नाथजी होली उत्सव श्रृृृंगार : व्रज - फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी (त्रयोदशी क्षय)
श्री नाथजी होली उत्सव श्रृृृंगार : व्रज - फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी (त्रयोदशी क्षय)

विशेष : दोलोत्सव उत्तरा-फाल्गुनी नक्षत्र जिस दिन सूर्योदय के समय हो तब मनाया जाता है ओर इस बार उत्तरा-फाल्गुनी नक्षत्र कल पूर्णिमा 27 मार्च रविवार को होने से दोलोत्सव कल एवं होली के उत्सव का शृंगार आज धराया जायेगा. बड़ा पर्व रुपी उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं. आज पूरे दिन झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. गद्दल, रजाई हरी साटन की आती है. आरती सभी समां में (मंगला, राजभोग, संध्या-आरती व शयन) थाली में की जाती है. आज के पर्व को बड़ा मानते हुए श्री स्वामिनीजी आज स्वयं प्रभु को अभ्यंग कराती हैं इस भाव से आज प्रभु को मंगला पश्चात प्रभु को चन्दन, आवंला, उबटना एवं फुलेल (सुगन्धित तेल) से दोहरा अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है एवं श्वेत नूतन वस्त्र धराये जाते हैं. आज प्रभु को नियम से पाग-चन्द्रिका, सूथन व घेरदार वागा धराये जाते हैं. फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा से श्रीजी में डोलोत्सव की सामग्रियां सिद्ध होना प्रारंभ हो जाती है. इनमें से कुछ सामग्रियां फाल्गुन शुक्ल नवमी से प्रतिदिन गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में श्रीजी को अरोगायी जाती हैं और डोलोत्सव के दिन भी प्रभु को अरोगायी जायेंगी. इस श्रृंखला में आज श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में मीठे कटपूवा अरोगाये जाते हैं.  इसके अतिरिक्त आज उत्सव के कारण प्रभु को दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी का भोग भी अरोगाया जाता है. राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता और सखड़ी में मीठी सेव व केशरयुक्त पेठा अरोगाये जाते हैं. राजभोग खेल में पिछवाई को गुलाल से पूरा रंगा जाता है और उस पर अबीर से चिड़िया मांडी जाती है. चंदवा पर चंदन छांटा जाता है. श्रीजी की दाढ़ी पर तीन बिंदी लगायी जाती है. प्रभु के सम्मुख चार पान के बीड़ा सिकोरी (स्वर्ण के जालीदार पात्र) में रखे जाते हैं. आज गुलाल, अबीर का खेल अन्य दिनों की तुलना में अत्यन्त भारी होता है. वैष्णवजनों पर भी गुलाल पोटली भर कर उड़ाई जाती है.

●  राजभोग दर्शन : कीर्तन दृ (राग : सारंग)

डोल झूलत है प्यारो लाल बिहारी पहोपवृष्टि होती ।

सुरपुर गंधर्व तिनकी नारी देखके वारत है लर मोती ।। 1 ।।

घेरा करत परस्पर सबमिल नहीं देखीयत युवती ऐसी जोती ।

‘हरिदास’ के स्वामी श्यामा कुंजबिहारी सादाचूरी खुभी पोती ।। 2 ।।

●  साज : आज श्रीजी में राजभोग में सफ़ेद मलमल की सादी पिछवाई धरायी जाती है जिसके ऊपर गुलाल व अबीर से भारी खेल किया जाता है. गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफ़ेद बिछावट की जाती है. गुलाल खेल इतना अधिक होता है कि पिछवाई और साज का मूल रंग दिखायी ही नहीं पड़ता.  

●  वस्त्र : आज श्रीजी को सफ़ेद लट्ठा का सूथन, चोली तथा घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका मोठड़ा का धराया जाता है जिसके दोनों छोर आगे की ओर रहते हैं. सभी वस्त्रों पर गुलाल अबीर, एवं चोवा आदि से भारी खेल किया जाता है. ठाडे वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं जिनपर गुलाल, अबीर आदि से खेल किया जाता है. श्रृंगार दृ आज प्रभु को मध्य का (छेड़ान से दो आंगुल नीचे तक) हल्का श्रृंगार धराया जाता है. लाल, हरे, सफ़ेद व मेघश्याम मीना एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर सफ़ेद छज्जेदार श्याम झाईं वाली पाग के ऊपर हरा पट्टीदार सिरपैंच, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में कर्णफूल धराये जाते हैं. श्रीकंठ में सात पदक, नौ माला धरायी जाती है. दो माला अक्काजी की धरायी जाती है. गुलाबी पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में पुष्पछड़ी, स्वर्ण के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (स्वर्ण के बटदार व एक नाहरमुखी) धराये जाते हैं. पीठिका के ऊपर भी गुलाब के पुष्पों की एक मोटी मालाजी धरायी जाती है. पट चीड़ का व गोटी चांदी की आती है. आरसी दोनों समय बड़ी डांडी की आती है. भारी खेल के कारण सर्व श्रृंगार रंगों से सरोबार हो जाते हैं और प्रभु की छटा अद्भुत प्रतीत होती है.

●  संध्या : आरती दर्शन उपरांत श्रीकंठ व श्रीमस्तक के आभरण बड़े किये जाते हैं. श्रीमस्तक पर लूम-तुर्रा सुनहरी धराये जाते हैं. गठेली की हमेल धरायी जाती है.होली का त्योहार कल होने से अर्थात् होलिका दहन कल होन से आज शयन के दर्शन में श्रीजी की दाढ़ी नहीं रंगी जायेगी और शयन में गुलाल भी नहीं उड़ायीं जायेगी.

पालीवाल वाणी नेटवर्क ब्यूरों-Narendra Paliwal-Nanalal Joshi...✍️

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