इंदौर
स्टेट प्रेस क्लब : पुराने गीतों में आत्मा है इसीलिए कालजयी हैं : मुख्तार शाह
paliwalwaniइंदौर. पुराने गाने पांच -छह दशकों बाद भी बांध कर रखते हैं क्योंकि उनमें रूह है। अकूस्टिक या असली वाद्य यंत्रों का असर भी डिजिटल वाद्य यंत्रों के मुकाबले बहुत गहरा है। रेडीमेड कल्चर से शब्द पंच कर करके तैयार आज के गाने चंद दिनों में स्मृति से उतर जाते हैं तो इसमें आश्चर्य नहीं है।
ये बातें अमर गायक मुकेश की आवाज़ की सबसे करीबी अदायगी से दुनिया भर में मशहूर गायक श्री मुख्तार शाह ने स्टेट प्रेस क्लब, मप्र द्वारा आयोजित 'रूबरू' कार्यक्रम में व्यक्त किए। इंदौर में हाउसफुल शो के पर्याय बन चुके श्री मुख्तार शाह ने संगीत प्रेमियों द्वारा आज भी पुराने फिल्मी गानों को ही पसंद किए जाने के सवाल के उत्तर में कहा कि पुराने गानों के गीत बहुत सशक्त हैं, उनके शब्दों के मायने बहुत गहरे हैं।
सात हज़ार शोज़ भारत के अलावा 34 अन्य देशों में भी कर चुके
वे बहुत खूब कम्पोज़ हुए हैं और गायकों ने उन्हें पूरे भाव के साथ कई दिनों की रिहर्सल के बाद गाया है। कलाकारों ने भी गीत की आत्मा के साथ न्याय करते हुए उन्हें परदे पर अभिनीत किया है। इसीलिए ये गीत दर्शकों के दिल में बसे हुए हैं और सिर्फ भारत ही नहीं पूरी दुनिया में अधिकांश शो पुराने गानों के ही होते हैं। ज्ञातव्य है कि पिछले कोई चालीस वर्षों में श्री शाह एकमात्र मुकेश जी के गानों के लगभग सात हज़ार शोज़ भारत के अलावा 34 अन्य देशों में भी कर चुके हैं।
उन्होंने कहा कि मुकेश साहब की गायकी के लिए सबसे ज़रूरी उनकी सादगी, इमोशनल फील को अपनाना सबसे ज़रूरी है। मुकेश जी का हर गाना दिल से गाया गया है और ये बात उनके गीतों को गाते समय दर्शकों तक पहुंचनी ज़रूरी है। वे पुराने गीतों को गाते समय गायक द्वारा अतिरिक्त हरकतें जोड़ने का समर्थन नहीं करते। उनके अनुसार कुछ अतिरिक्त जोड़ना यह दिखाने की कोशिश है कि हम मूल गायक से अधिक जानते हैं और दर्शक भी अपने दिल में बसे हुए गाने को जस का तस सुनकर उससे ज़्यादा अटैच महसूस करते हैं।
- माहौल के अंतर ने वकालत से दूर किया : श्री मुख्तार शाह ने बताया कि स्कूल में ही मुकेश साहब के गीतों की प्रभावी प्रस्तुति के कारण मित्र उन्हें मुकेश शाह कहने लगे थे। लेकिन परिवारजनों में संगीत को प्रोफेशन के रूप में अपनाने में थोड़ी हिचक थी। उन्हें भी वकालत पसंद थी, इसलिए उन्होंने लॉ करके क्रिमिनल केसेस की वकालत प्रारंभ कर दी।
दो साल संगीत से दूर रहकर भी वकालत जमाई। लेकिन जल्दी ही दोनों प्रोफेशन को साथ चलाना मुश्किल होने लगा और किसी एक को प्राथमिकता देना ज़रूरी हो गया। तभी उन्हें यूके का एक टूर मिला जिसमें भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्यों का भी साथ मिला। उन्होंने देखा कि क्रिमिनल प्रेक्टिस में दिन अपराधियों और निगेटिव तनावपूर्ण माहौल में बीतता है और संगीत के कारण अपने हीरो कपिल देव, वेंगसरकर, सचिन तेंदुलकर, सिद्धू आदि के साथ समय बिताने का मौका मिलता है, वह भी संगीत के खुशनुमा माहौल में। बस उन्होंने तय कर लिया कि उन्हें संगीत का जीवन चुनना है।
- हीरे को तराशा जा सकता है, कांच को नहीं : श्री शाह के अनुसार गायकी में सफलता के लिए कुदरत प्रदत्त अच्छी आवाज़ ज़रूरी है। संगीत सीखने, रियाज़ आदि से अच्छी ईश्वर प्रदत्त आवाज़ में ही निखार लाया जा सकता है, ठीक वैसे ही जैसे हीरे को तराशा जा सकता है, कांच के टुकड़े को नहीं। इसके बाद रियाज़ बहुत ज़रूरी है और प्रस्तुति में फील लाना भी। सोशल मीडिया की ताक़त से अपने लिए संबंध बनाएं और प्रस्तुति के समय प्रेजेंटेबल लगना, खुशनुमा माहौल बनाना भी फायदेमंद है।
- इमोशनल ड्रेन आउट ज़रूरी है : श्री मुख्तार शाह ने कहा कि मुकेश जी के गाने इमोशन से भरे हैं और पहले से सेंसिटिव व्यक्ति को लगातार एक ही माहौल रखने पर भावनात्मक प्रभाव संभव है। इसीलिए वे प्रस्तुति के बीच में चुटकुले सुनाकर और सामान्य चर्चा कर अपने लिए और दर्शकों के लिए इमोशनल ड्रेन आउट का काम करते हैं। उन्होंने कहा कि इसी तरह यदि ध्यानपूर्वक सुना जाए तो संगीत रोगियों को ठीक करने के लिए भी थेरेपी जितना प्रभावी है।
- नितिन मुकेश के साथ शो का इन्तज़ार : श्री शाह अनेक बॉलीवुड गायकों के साथ शो कर चुके हैं लेकिन श्री नितिन मुकेश के साथ प्रस्तुति का उन्हें अभी इंतज़ार है। वैसे मुकेश जी के दोनों पुत्र नितिन मुकेश एवं स्व. मोहनीश मुकेशचंद्र माथुर से उनकी एकाधिक मुलाकातें हुईं और श्री नितिन मुकेश ने एक बार कहा था कि मुकेश साहब की बाकी सारी विरासत हमें मिली है, बस आवाज़ मुख्तार को मिली है, जिसे वे बहुत बड़ा कॉम्प्लीमेंट मानते हैं।
अपनी अलग पहचान बनाने के लिए सिर्फ मुकेश को चुना : श्री शाह ने बताया कि पहले वे अनेक गायकों के नए पुराने सभी गीत गाने के साथ एंकरिंग भी करते थे। लेकिन बाद ने अपनी ख़ास पहचान बनाने के लिए उन्होंने सिर्फ मुकेश जी के गीतों तक ही स्वयं को सीमित कर फोकस किया। मुकेश जी की आवाज़ और अदायगी के प्रति श्रोताओं में इतना प्यार है कि अहमदाबाद में रहकर भी वे लगातार व्यस्त रहते हैं और पूरी तरह संतुष्ट हैं। हिंदी फिल्मों प्लेबैक के तौर तरीके बहुत बदल गए हैं, अलबत्ता उन्होंने गुजराती फिल्मों में प्लेबैक भी किया है और अनेक एल्बम भी रिलीज़ हुए हैं।
कार्यक्रम के प्रथम चरण में स्टेट प्रेस क्लब के महासचिव श्री आलोक बाजपेयी एवं श्री जितेन्द्र भाटिया ने अतिथियों का पुष्प गुच्छ एवं अंगवस्त्र से स्वागत किया। सचिव श्री आकाश चौकसे ने स्मृति चिन्ह प्रदान किए। कार्यक्रम का प्रभावी संचालन श्री आलोक बाजपेयी ने किया। श्री मुख्तार शाह ने उपस्थित पत्रकारों एवं संगीत प्रेमियों की फरमाईश पर मुकेश जी के गाए गीतों की मंत्रमुग्ध कर देने वाली प्रस्तुति से समां बांध दिया।
उन्होंने बताया कि ईश्वर प्रदत्त नेज़ल टच आवाज़ के कारण श्री मुकेश की आवाज़ में म, न, ण आदि वाले शब्द बहुत ही मधुर लगते थे और राम शब्द उनके मुख से बहुत ही मीठा लगता था। राम कहे ऐसा हो जाए गीत गाकर श्री शाह ने भाव विभोर कर दिया। मुकेश साहब के गाए एक गुजराती गरबे से उन्होंने शहर वासियों को आगामी नवरात्रि की शुभकामनाएं भी दीं।