इंदौर
indore news : जिम्मेदारों की आत्माएं दफन हो चुकी...! 'जो होता है सब सह लेते हैं... कैसे हैं बेचारे लोग..!
रोहित पचौरिया
'मुर्दों का शहर...'कहा जाने लगा...यहां किसी को किसी की नहीं पड़ी...!
रोहित पचौरिया की कलम से...✍
''दुख के जंगल में फिरते हैं, कब से मारे-मारे लोग, जो होता है सह लेते हैं, कैसे हैं बेचारे लोग...'' इंदौर के वर्तमान हालातों पर जावेद अख्तर का उक्त शेर सटीक बैठता है... अपनी आवाज हमेशा बुलंद रखने वाले इस शहर को अब तो खुलकर 'मुर्दों का शहर...' कहा जाने लगा... यहां किसी को किसी की नहीं पड़ी... बसों में बैठकर स्कूल से घर के लिए निकले मासूम बच्चे रास्ते में ही सड़क हादसे में अपना दम तोड़ दें... चूहे स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को कुतर दें... और तो और एक-दो-दस नहीं, बावड़ी में दबकर 'छत्तीसों' जानें चली जाएं... या एक किलोमीटर तक कोई ट्रक मौत का तांडव क्यों ना मचा दे... हमें तो सिर्फ 'मौतों के आंकड़े' देखना है...
कर्णधारों का जमीर पूरी तरह से मर चुका हो और जिम्मेदारों की आत्माएं दफन हो चुकी...!
जिस शहर के कर्णधारों का जमीर पूरी तरह से मर चुका हो और जिम्मेदारों की आत्माएं दफन हो चुकी हों, वहां के हालात कैसे होंगे, यह आप इंदौर में देख सकते हैं... व्यस्ततम मार्ग पर प्रतिबंध के बावजूद एक ड्राइवर, जिसके बारे में बताया जाता है कि उसने आठ लोगों के बराबर शराब गटक रखी थी... वह एक ट्रक कालानी नगर से थोड़े ही आगे शिक्षक नगर से रोंदना चालू करता है तो एक किलोमीटर आगे बड़ा गणपति पर आकर रूकता है... इससे पहले उक्त जानलेवा ट्रक सुपर कॉरिडोर से निकलता है, जहां पुलिसिया तैनाती रहती... इतना ही नहीं, ट्रक एरोड्रम थाने के ठीक सामने से 'खाकी को मुंह चिढ़ाता हुआ गुजरता है', जहां भी पुलिस मूकदर्शक बनी रहती है... कालानी नगर चौराहे पर भी करीब 5 पुलिसकर्मी हमेशा नजर आ जाएंगे, जिनके सामने से भी वह गुजर जाता है और आगे जाकर सड़क को 'श्मशान' बना देता है...
"उसूलों पर आँच आए तो टकराना जरुरी है... यदि जिंदा हो तो जिंदा नजर आना जरूरी है..."
ऐसा लगता है कि इंदौर में अब... "उसूलों पर आँच आए तो टकराना जरुरी है... यदि जिंदा हो तो जिंदा नजर आना जरूरी है..." जैसी बातें अब सिर्फ 'सोशल मीडिया पर ज्ञान' देने तक ही सीमित रह गईं... पुलिसिया सिस्टम भी अब 'सेटलबाजी' में ज्यादा रुचि रखता है, जिसका नमूना अभी सामने भी आया, जब एक सब इंस्पेक्टर हत्या के मामले में डरा-धमकाकर दो लाख रुपए की मांग करता है और पहली किश्त लेते वक्त रंगे हाथों पकड़ा भी जाता है...
इंसाफ की बात करना ही बेमानी है..!
बड़ी विडम्बना यह भी है कि जिनके पास यातायात का जिम्मा है उनका ध्यान जेबें गरम करने में अधिक रहता है... आम जनता यहां भी खामोश रहते हुए रोजाना घंटों जाम में फंसी हुई जैसे-तेसे अपने गंतव्य तक पहुंचने का इंतजार करती है... आमजन के बीच चर्चा यह भी है कि जब छत्तीसों मर गए, कोरोना में सैंकड़ों बेमौत मारे गए... तब किसी का कुछ नहीं बिगड़ा, तो इस बार भी किसी का क्या बिगड़े..? यहां इंसाफ की बात करना ही बेमानी है..! वही होगा जो हमेशा से होता आया... कुछ अदने नाप दिए जाएंगे... जांच बैठा दी जाएगी... दल गठित करते हुए मुआवजा बांटकर 'हाथ जोड़' लिए जाएंगे...
'पप्पू विपक्ष' भी 'सिस्टम' का क्या 'उखाड़' लेगा..?
कुछ देर का हल्ला है... अभी प्रधानमंत्री पधार रहे हैं, पीएम मित्रा पार्क का भूमिपूजन करने... पूरी सरकारी मशीनरी जहां उनकी आवभगत की व्यवस्थाओं में जुटी है, तो हादसे के बाद अस्पतालों में 'फोटो खींचाई' की रस्म निभाने के बाद शहर के सत्ताधारी नेता अब मोदी जी के कार्यक्रम में कैसे 'झांकीबाजी' की जाए, उस पर दिमाग खपाना पड़ रहा है... और मीडिया का एक बड़ा हिस्सा तो बैठा ही है 'गोद' में..! ऐसे में 'पप्पू विपक्ष' भी 'सिस्टम' का क्या 'उखाड़' लेगा..?
जनता तो भोली है... पहले की तरह ये हादसा भी भूल जाएगी... और बाजार में फिर नए हादसे का इंतजार करेगी... इसे तो एक सिस्टम के तहत 'कमल और फूल' में उलझा ही रखा है... फर्क हमेशा की तरह सिर्फ उन्हें पड़ेगा जिन्होंने अपनों को खोया है... जिसका बचपन तबाह हुआ... जिसका बुढ़ापे का सहारा छिन लिया गया... जिसके सपने सड़क पर ही मर गए...





