इंदौर
श्रीजी कल्याणधाम खाड़ी के मंदिर पर चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में मना गोवर्धन पूजा का उत्सव : भागवताचार्य पं. अनिल शर्मा
Anil bagora, Sunil paliwal-
समाज के दलित और शोषित वर्ग को अपने साथ जोड़ने का संदेश सबसे पहले भगवान कृष्ण ने दिया
इंदौर : भगवान से हमेशा कुछ न कुछ मांगते रहना ठीक नहीं है. वे तो अंतर्यामी हैं और जानते हैं कि किसको क्या चाहिए. सत्य मनुष्य को निर्भय बनाता है. सत्य के स्वरूप का चिंतन भगवान कृष्ण का ही चिंतन होगा. कृष्ण ही जगत की उत्पत्ति के आधार और कारण हैं तथा उनकी प्रत्येक क्रिया में जीव के कल्याण का भाव होता है. अहंकार की प्रवृत्ति मनुष्य का स्वभाव है. देवता भी इस प्रवृत्ति से बच नहीं पाते हैं. गोवर्धन पूजा देवराज इंद्र के अहंकार को तोड़ने के लिए भगवान कृष्ण की लीला का ही परिणाम है. अहंकार पतन के मार्ग की पहली सीढ़ी है.
लोहारपट्टी स्थित श्रीजी कल्याणधाम, खाड़ी के मंदिर पर चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में मालवा के प्रख्यात भागवताचार्य पं. अनिल शर्मा ने गोवर्धन पूजा एवं 56 भोग प्रसंगों की व्याख्या के दौरान उक्त प्रेरक विचार व्यक्त किए. कथा में प्रतिदिन भक्तों की संख्या बढ़ रही है. मालवी और खड़ी बोली में कथा तथा भजनों का आकर्षण भक्तों को नाचने-गाने पर भी बाध्य कर रहा है. आज कथा में गोवर्धन पूजा का उत्सव भी धूमधाम से मनाया गया. भगवान और बाल-ग्वालों ने गोवर्धन पर्वत को 56 भोग समर्पित किए. कथा शुभारंभ के पूर्व हंसदास मठ के महामंडलेश्वर स्वामी रामचरणदास महाराज के सानिध्य में गोलू शुक्ला, निरंजनसिंह चौहान गुड्डू, राजेन्द्र गर्ग, मोहनलाल सोनी, अशोक चतुर्वेदी आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया.
- एक जनवरी को नए वर्ष में मंदिर के वार्षिकोत्सव : राधारानी महिला मंडल की ओर से विद्वान वक्ता की अगवानी की गई. संयोजक पं. पवनदास शर्मा ने पालीवाल वाणी को बताया कि गुरुवार 30 दिसंबर 2021 को महारास एवं रुक्मणी विवाह प्रसंगों की कथा होगी. कथा प्रतिदिन दोपहर 3 से सायं 7 बजे तक हो रही है. समापन सुदामा चरित्र के साथ शुक्रवार 31 दिसंबर 2021 को होगा. एक जनवरी को नए वर्ष में मंदिर के वार्षिकोत्सव के उपलक्ष्य में 56 भोग एवं महाप्रसादी के आयोजन भी शाम 6 बजे से होंगे.
- समाज में पहली बार सहकारिता की स्थापना की : भागवताचार्य पं. अनिल शर्मा ने कहा कि भगवान कहीं और नहीं हमारे अंतर्मन में ही विराजित हैं, लेकिन उन्हें अनुभूत करने के लिए मन को मथना जरूरी है. जिस तरह मक्खन को मंथन के बाद घी में बदला जाता है, उसी तरह मन का मंथन भी किसी न किसी रूप में हमें परमात्मा की अनुभूति कराता है. भक्ति में सम्पूर्णता, निष्ठा और श्रद्धा होना चाहिए. अहंकार की प्रवृत्ति मनुष्य का स्वभाव है. देवता भी इस प्रवृत्ति से बच नहीं पाते हैं. देवराज इंद्र को भी अहंकार हो गया था. गोवर्धन पूजा इंद्र के अहंकार को ध्वस्त करने की ही लीला है. भगवान ने बाल ग्लालों का साथ लेकर समाज में पहली बार सहकारिता की स्थापना की है अन्यथा वे तो अकेले ही गोवर्धन पर्वत को उठा सकते थे. समाज के दलित और शोषित वर्ग को अपने साथ जोड़ने का संदेश सबसे पहले भगवान कृष्ण ने ही दिया था. उक्त जानकारी समाजसेवी एवं श्री चारभुजा पैदल यात्री संघ के संयोजक श्री संतोष जोशी (संटू) ने पालीवाल वाणी को दी.