दिल्ली
सरकार के खिलाफ अदालत के हाथ परमाणु बम, आर्टिकल 142 पर उपराष्ट्रपति धनखड़ का बयान
paliwalwani
नई दिल्ली. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को दिए गए विशेष अधिकारों पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि यह शक्ति सरकार के खिलाफ एक 'परमाणु बम' के समान हो सकती है। गुरुवार को उपराष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए चिंता जताई, जिसमें राज्यों द्वारा भेजे गए विधेयकों पर राष्ट्रपति से समयसीमा तय करने को कहा गया था। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि जब अदालतें 'सुपर संसद' की भूमिका में काम करने लगती हैं, तो यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए चिंता का विषय है।
धनखड़ ने कहा, “अनुच्छेद 142 अब एक लोकतांत्रिक प्रणाली के खिलाफ परमाणु मिसाइल जैसा बन गया है, जो न्यायपालिका के लिए हमेशा उपलब्ध रहता है।”
राष्ट्रपति के पद की गरिमा पर सवाल उठाया
राज्यसभा के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए धनखड़ ने 8 अप्रैल के तमिलनाडु राज्य बनाम राज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा, “क्या हमारे पास ऐसे न्यायधीश हैं, जो कानून बनाएंगे, कार्यकारी निर्णय करेंगे और सुपर संसद के रूप में कार्य करेंगे, लेकिन उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी, क्योंकि उनके ऊपर देश का कानून लागू नहीं होता?”
उन्होंने यह भी कहा कि भारत में राष्ट्रपति का पद अत्यंत सम्माननीय है और यह संविधान की रक्षा, संरक्षण एवं बचाव की शपथ लेते हैं, जबकि अन्य सभी सरकारी पदाधिकारी और न्यायधीश संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं।
राष्ट्रपति को निर्देश देने का विरोध
धनखड़ ने इस पर भी जोर देते हुए कहा, “हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते, जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और वह भी किस आधार पर? संविधान के तहत आपके पास केवल एक अधिकार है, और वह है अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना। जिन न्यायधीशों ने राष्ट्रपति को आदेश जारी करने का प्रयास किया, वे संविधान की शक्ति को नजरअंदाज कर रहे हैं।”
इस बयान में उपराष्ट्रपति ने न्यायपालिका और सरकार के बीच शक्तियों के संतुलन पर गंभीर प्रश्न उठाए हैं, और इसे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरनाक संकेत बताया है।