दिल्ली

check bounce : चेक बाउंस के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने द‍िया ये बड़ा आदेश : जानिए नए नियम

Paliwalwani
check bounce : चेक बाउंस के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने द‍िया ये बड़ा आदेश : जानिए नए नियम
check bounce : चेक बाउंस के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने द‍िया ये बड़ा आदेश : जानिए नए नियम

नई दिल्ली : देश में चेक बाउंस (check bounce) के लंबित मामलों की बढ़ती संख्‍या को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने देश के पांच राज्‍यों में पायलट प्रोजेक्‍ट (pilot project) के तहत विशेष चेक बाउंस कोर्ट (Cheque Bounce Court) के गठन का आदेश दिया है. इन विशेष अदालतों में चेक बाउंस से संबंधित मामले ही सुने जाएंगे. सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने संबंधित हाईकोर्ट्स से इन कोर्ट के गठन के संबंध में 21 जुलाई 2022 तक हलफनामा दायर करने का आदेश भी दिया है.

मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी. सु्प्रीम कोर्ट ने एक एक्‍सपर्ट कमेटी के सुझाव पर देश के पांच राज्‍यों में पायलट प्रोजेक्‍ट के आधार पर स्‍पेशल कोर्ट (special court) बनाने का आदेश दिया है. देश भर में चेक बाउंस के 33 लाख से ज्यादा मामले लंबित हैं. एक्‍सपर्ट कमेटी ने महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, दिल्ली और यूपी में स्पेशल पायलट कोर्ट बनाने का सुझाव दिया है. इन राज्‍यों में चेक बाउंस से संबंधित सबसे ज्‍यादा मामले लंबित हैं.

जस्टिस एल नागेश्वर राव, बीआर गवई और एस रवींद्र भट की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (एनआई) के तहत विशेष अदालतें महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, उत्तर प्रदेश और राजस्थान राज्यों में गठित की जाएंगी. इस संबंध में इन राज्यों के हाईकोर्ट्स से जवाब मांगा गया है. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट्स को अपने आदेश के अनुपालन पर 21 जुलाई 2022 तक एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है.

वर्तमान में चेक बाउंस (check bounce) से जुड़े मामलों की सुनवाई नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के तहत होती है. ऐसे मामलों का निपटारा 6 महीनों के भीतर होना चाहिए, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है और ये मामले अदालत में लंबे चलते हैं. किसी स्थिति में चेक बाउंस होने के 15 दिन के नोटिस के बाद भी अगर पेमेंट नहीं की जाती है, तो सजा हो सकती है. अधिकतम 2 साल की सजा हो सकती है या फिर रकम से दोगुना दंड और सजा, दोनों हो सकती है. वित्त मंत्रालय ने चेक बाउंस (Cheque Bounce) से जुड़े मामलों को सिविल केस में बदलने का प्रस्ताव दिया था. लेकिन, कारोबारियों ने इसका विरोध किया तो इसे अमल में नहीं लाया गया. व्यापारियों का कहना था कि जेल का डर खत्म हो गया तो लोग नियमों की परवाह नहीं करेंगे

whatsapp share facebook share twitter share telegram share linkedin share
Related News
Latest News
Trending News