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Eid-ul- Adha 2025 : भारत में कल होगा ईद-अल-अज़हा, जानें शहर के अनुसार बकरीद की नमाज़ का समय
M. Ajnabee, Kishan paliwal
M. Ajnabee, Kishan paliwal
नई दिल्ली. इस्लाम धर्म के लिए बकरीद का पर्व काफी खास होता है। बता दें कि मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए ईद उल अजहा साल का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार मनाते हैं। इस दिन बकरे के अलावा कुछ विशेष जानवरों का कुर्बानी दी जाती है। इस्लामिक कैलेंडर में 12 महीने होते हैं और इसका धुल्ल हिज इसका अंतिम महीना होता है और इसी महीने की दसवीं तारीख को ईद उल अजहा यानी बकरीद का पर्व मनाया जाता है। इस दिन अनुयायी नमाज अदा करने के साथ बकरे की कुर्बानी देते हैं। आइए जानते हैं बकरीद का महत्व और इस दिन कुर्बानी देना क्यों माना जाता है खास और आपके शहर में किस समय होगी नमाज…
कब है बकरीद 2025? (Eid Al Adha Or Bakrid 2025 Date)
इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, 12वें महीने जु अल-हज्जा की 10वीं तारीख को ईद उल-अज़हा का पर्व मनाया जाता है। इस साल ज़ु अल-हज्जा महीना 30 दिन का है। आज बकरीद का पर्व मनाया जा रहा है।
शहर के अनुसार बकरीद की नमाज का समय (Citywise Bakrid Namaz Timing)
दिल्ली: सुबह 6:00 से 6:20 तक
मुंबई: सुबह 6:15 से 6:35 तक
लखनऊ: सुबह 5:55 से 6:15 तक
बेंगलुरु- सुबह 6:10 से 6:30
आगरा – शाही ईदगाह सुबह 6.45 से
लखनऊ- ऐशबाग ईदगाह में सुबह 10 बजे
मुरादाबाद- ईदगाह में सुबह 7:00 से 7:30
रांची- ईदगाह में सुबह 9 बजे
बकरीद में कुर्बानी देने के पीछे की कहानी
बकरीद से कुछ दिन पहले बकरा खरीदकर मुस्लिम समुदाय के लोग घर ले आते हैं और उसे रोजाना खाना-पीना कराते हैं। उसका पालन पोषण बिल्कुल अपने बच्चे की तरह करते हैं। इसके पीछे कारण है कि आप जब कुछ दिन पहले बकरे को ले आते हैं, तो उसका लालन-पालन करने से आपके अंदर उसके प्रति प्रेम जाग जाता है। जिस तरह हज़रत इब्राहीम का अपने बेटे के प्रति प्रेम था। फिर बाद में दुआ पढ़कर अल्लाह का नाम लेकर ज़बह कर देते हैं। बकरीद का पर्व हजरत इब्राहिम की सुन्नत की याद में मनाया जाता है।
इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, एक बार अल्लाह ने पैगंबर हज़रत इब्राहीम की परीक्षा लेने की सोची। ऐसे में उन्होंने हज़रत इब्राहीम को ख्वाब (सपने) के जरिए अपनी एक प्यारी चीज अल्लाह की राह कुर्बान करने के लिए कहा। जब हज़रत इब्राहीम उठे, तो वह इस सोच में पड़ गए कि आखिर उनके लिए सबसे प्रिय चीज क्या है? बता दें कि हज़रत इब्राहीम अपने इकलौते बेटे इस्माइल को सबसे अधिक प्रेम करते थे। वहीं एक चीज है जिसे वह सबसे अधिक प्रेम करते थे। लेकिन अल्लाह की मांग को पूरा करने के लिए वह अपने बेटे को कुर्बान करने के लिए तैयार हो गए। जब वह अपने बेटे को लेकर कुर्बान करने के लिए जा रहे थे, तो उन्हें एक शैतान मिला। जिसने हज़रत इब्राहीम से कहा कि आप अपने बेटे को क्यों कुर्बान कर रहे हैं इसके बदले किसी जानवर की कुर्बानी दे दें।
हज़रत इब्राहीम साहब को शैतान की ये बात अच्छी लगी। लेकिन उन्होंने सोचा कि ये तो अल्लाह के साथ धोखा करना है और उनके द्वारा दिए गए हुक्म की नाफरमानी होगी। इसलिए वह बिना कुछ सोचे अपने बेटे को लेकर आगे बढ़ गए। उस जगह वह पहुंच गए जिस जगह पर बेटे की कुर्बानी देनी थी। लेकिन पिता के मोह ने उन्हें ऐसा करने से रोका। ऐसे में उन्होंने अपने आंखों में पट्टी बांध ली, जिससे पुत्र मोह अल्लाह के राह में बाधा न बने। इसके बाद उन्होंने कुर्बानी दे दी। लेकिन ऐसे ही उन्होंने अपनी आंखों से पट्टी हटाई, तो वह देखकर हैरान रह गए है कि उनका बेटा इस्माइल सही सलामत है और उसकी जगह एक डुम्बा ( बकरी की एक प्रजाति) कुर्बान हो गया था। इसके बाद से ही कुर्बानी के तौर पर बकरा को कुर्बान किया जाता है।
कैसे मनाते हैं बकरीद का पर्व?
देश सहित पूरी दुनिया में बकरीद का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन स्नान आदि करने के बाद अल्लाह को याद करने के साथ नमाज अदा करते हैं। इसके बाद कुर्बानी की सभी रस्में अदा करके बकरे या अन्य जानवर की कुर्बानी दी जाती है और इसके तीन हिस्से किए जाते हैं। पहला हिस्सा स्वयं के लिए, दूसरा हिस्सा दोस्त या रिश्तेदार के लिए और तीसरा हिस्सा गरीब या फिर जरूरतमंद को दिया जाता है। इसके साथ ही लोग अल्लाह को आभार व्यक्त करते हैं और एर-दूसरे सो बकरीद की शुभकामनाएं देते हैं।