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गुडलक एक आम सितारा फिल्म नहीं : रूबरू कराती जीवंत कहानी

paliwalwani
गुडलक एक आम सितारा फिल्म नहीं :  रूबरू कराती जीवंत कहानी
गुडलक एक आम सितारा फिल्म नहीं : रूबरू कराती जीवंत कहानी

राजकुमार जैन, स्वतंत्र लेखक

नई उभरती फिल्म निर्माण संस्था आशाआजाद फिल्म्स के बैनर तले प्रोड्यूसर आजाद जैन निर्मित गुडलक एक आम सितारा फिल्म नहीं है। यह तो हमारे घर और हमारे आसपास के परिवेश में बीत रहे हमारे रोजमर्रा के जीवन में घट रही घटनाओं से रूबरू कराती जीवंत कहानी है। लगता नहीं कि हम थियेटर में बैठ कर एक फिल्म देख रहे हैं, बल्कि यूं लगता है मानो हम स्वयं इस परिवेश के अंग हैं। 

कभी हंसाती, कभी रुलाती, कभी चिढ़ाती, कभी गुदगुदाती, कभी सोचने को मजबूर करती, कभी ठहरे पानी में हलचल मचाती, कभी सपने दिखाते, तो कभी आशा जगाती यह फिल्म आज के मशीनी युग में मानव के आपसी संबंध और साथ से उपजे आनंद का महत्व बताती है, जिसे पाने की ख्वाहिश बच्चे, जवान और बूढ़े सभी करते हैं। 

निर्देशक और क्रियेटिव निर्देशक की जोड़ी ने एक तरफ भरे पूरे परिवार में रह रही एक बुजुर्ग महिला के अकेलेपन के दर्द का चित्रण तो दूसरी तरफ उसीकी बेटी के परिवार में संतान के ना होने का असहनीय दुःख दोनो को एक ही फ्रेम में दिखाने का कमाल किया है।

फिल्म की नायिका अंगूरी का जीवट, त्याग, हर हाल में जीवन का आनंद उठाने के विभिन्न प्रयत्न सहज हास्य प्रस्तुत करते हैं। अधेड़ उम्र के बेटे का बनता बिगड़ता राजनीतिक भविष्य, पोते का यूट्यूबर बन प्रसिद्ध के शिखर को छूने का प्रयास, पत्नी का शक्की मिजाज, मायके आई बेटी की बचपन की चाहत,  विरोधियों के षडयंत्र सब मिलकर बगैर द्विअर्थी संवाद या फूहड़ता के परिस्थिति जन्य हास्य पैदा करने में सफल रहे हैं।

एक गंभीर विषय को लेकर निर्मित, लेकिन फिर भी हंसाती, गुदगुदाती 98 मिनट की यह फिल्म दर्शकों को पूरे समय बांधे रखती है और फिल्म की समाप्ति पर वो नम आंखो और भारी मन से एक सामाजिक जागृति का संदेश लेकर घर लौटता है।

हमारी अपनी दादी,नानी जैसी अंगूरी बनी मालती माथुर और बेटे पप्पी के चरित्र में बृजेंद्र काला का सशक्त अभिनय अन्य कलाकारों को सहज रूप से साथ लेकर चलता है और हो कहीं भी फिल्म को बोझिल नहीं होने देता।

निर्माता निर्देशक ने यह साबित किया है कि सीमित बजट में नए और अनजान चेहरों के साथ बगैर किसी अनावश्यक भव्यता के भी परिवार सहित एक देखने लायक फिल्म बनाई जा सकती है। 

अच्छी कहानी, सधा हुआ निर्देशन, मधुर गीत, संगीत के साथ महांकाल की नगरी उज्जैन की पृष्ठभूमि फिल्म की कथा के साथ जुगलबंदी करती लगती है।

मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग के सहयोग और तत्कालीन प्रबंध निदेशक विवेक क्षेत्रीय की दिलचस्पी और सुझावों के अनुरूप बनी यह फिल्म शिक्षाप्रद मनोरंजन के इतिहास में एक नई मिसाल कायम करेगी।

लंबे इंतजार के बाद इस तरह की सुरुचिपूर्ण, पारिवारिक, चुहल,  सहज हास्य और चुटीले व्यंग्य से भीगी फिल्म आई है जिसे अवश्य देखना चाहिए।

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