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अजमेर-92 : दरगाह वाले पहले फिल्म देखें, फिर करें विरोध - डायरेक्टर, 'नींद में दिखती थीं सेक्स स्कैंडल की शिकार लड़कियां'

Pushplata
अजमेर-92 : दरगाह वाले पहले फिल्म देखें, फिर करें विरोध - डायरेक्टर, 'नींद में दिखती थीं सेक्स स्कैंडल की शिकार लड़कियां'
अजमेर-92 : दरगाह वाले पहले फिल्म देखें, फिर करें विरोध - डायरेक्टर, 'नींद में दिखती थीं सेक्स स्कैंडल की शिकार लड़कियां'

देश के सबसे बड़े सेक्स स्कैंडल पर बनी फिल्म अजमेर-92 आज रिलीज हो रही है। उमेश कुमार तिवारी ने इस फिल्म को प्रोड्यूस किया गया। रिलायंस एंटरटेनमेंट की ओर से इसे रिलीज किया जा रहा है। इसमें करण वर्मा, सुमित सिंह, विजेंद्र काला, जरीना वहाब, सयाजी शिंदे और मनोज जोशी अलग-अलग किरदारों में हैं। रिलीज से पहले यह पूरे देश में चर्चाओं में है। विरोध के चलते इस फिल्म की दो बार रिलीज टाली जा चुकी है। आखिरकार मेकर्स इसे रिलीज करने में कामयाब हो गए हैं। यह फिल्म साल 1992 में अजमेर में हुए ब्लैकमेल कांड पर आधारित है। इसका निर्देशन पुष्पेन्द्र सिंह ने किया है। रिलीज से पहले फिल्म के डायरेक्टर ने इससे जुड़े अनुभवों को शेयर किया।

पहली बार कब जानकारी मिली और कैसे रिसर्च शुरू की?

पुष्पेन्द्र सिंह ने कहा कि अजमेर में मेरे एक मित्र हैं, जो पत्रकार हैं। उन्होंने सबसे पहले मुझे इस कांड के बारे में जानकारी दी। इससे पहले मुझे इस बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी। जब इसके बारे में पता लगा तो रोंगटे खड़े हो गए। इसके बाद इस पर फिल्म बनाने का निर्णय किया। सबसे पहले उस समय अजमेर के अखबारों में छपी न्यूज क्लिप्स को इकट्‌ठा किया और उन पर जानकारी जुटाई।

छोटी से छोटी जानकारी को समझने लगा और उस पर तथ्य जुटाने लगा। सेशन कोर्ट में यह मामला चला था। वहां से पूरी जानकारी ली। जब उसे पढ़ रहा था, खून खौल रहा था। सच कहूं तो दिल-दिमाग गुस्से में था। इसके बाद पीड़िताओं से मिला, उनसे जानकारी जुटाई। जब कहानी लिख था, तब कई रात तक नींद नहीं आती थी। नींद में सेक्स स्कैंडल का शिकार हुई लड़कियां दिखती थीं। लिखते वक्त ऐसे लगता था, जैसे वे पीड़ित लड़कियां सामने खड़ी रहती हों। मैंने उनके दर्द को अपनी कहानी का हिस्सा बनाया है।

पीड़िताओं तक कैसे पहुंचे और क्या अलग जानकारी मिली?

सेशन कोट में FIR और अन्य दस्तावेजों से इस कांड के बारे में बहुत सी जानकारी मिल गई थी। इसके बाद मैंने पीड़िताओं की जानकारी ली और उन तक खुद पहुंचा। उनसे बात करना उनके घावों को फिर से कुरेदने जैसा था। वो बोल ही नहीं पा रही थीं। हिम्मत करके जब वे बोल रही थीं, 30 साल पुराने घाव फिर हरे हो रहे थे।

जिस समय यह घटना घटी, आरोपी बहुत पावरफुल थे। घटना को दबाने में जुटे हुए थे। पूरे शहर में तनाव का माहौल था। ऐसे में ये पीड़िताएं हिम्मत के साथ डटी रहीं और इनके खिलाफ लड़ती रहीं। इन लड़कियों के दर्द, शोषण और यातनाओं को मैंने फिल्म में दिखाया है। उस समय जो समाज में माहौल था, पीड़िताएं आत्महत्याएं कर रही थीं। परिवार के लोग साथ छोड़ रहे थे। पावरफुल लोगों के खिलाफ आवाज उठाने वाला कोई नहीं था। ऐसे में इन्हीं चीजों पर फोकस करते हुए कहानी लिखी है।

कौन लोग थे, जो इस फिल्म को रिलीज नहीं करने दे रहे थे?

आज यह सभी के सामने है कि बहुत से लोग इस फिल्म को रिलीज नहीं होने देना चाह रहे थे। अब यह सभी खबरों में भी उनके नाम आ गए हैं। मुझे बहुत से लीगल नोटिस भेजे गए, जिनका जवाब मैं और टीम ने दे दिया है। बिना देखे कोई कैसे विरोध कर सकता है, यह कहानी आज बाहर लाना जरूरी था। हमने ठान लिया था कि इस सच्चाई को सामने जरूर लेकर आएंगे, चाहे जितनी मुश्किलें आ जाएं।

कोई राजनीतिक पार्टी आपका विरोध कर रही है? कोई नेता जाे नहीं चाहता हो कि कहानी सामने आए?

अब तक हमें किसी पॉलिटिकल पार्टी ने कहानी कहने से नहीं रोका है और हमारा मकसद भी किसी पार्टी पर सवाल उठाना नहीं है। हम सिर्फ लड़कियों की कहानी को कह रहे हैं, बाकी कोई नेता या पार्टी का रोल नहीं है।

लोग आरोप लगा रहे हैं कि BJP आपको सहयोग कर रही है?

यह सही नहीं है, हमें किसी भी पार्टी का किसी भी तरह का सहयोग नहीं मिला है, हमने कहानी को पॉलिटिकल रंग नहीं दिया है। सिर्फ उस समय जो घटित घटना, लड़कियों के दर्द और यातना को दर्शाया है। कुछ लोग इसे रिलीज नहीं होने देना चाहते, इसलिए प्रोपेगेंडा फैला रहे हैं।

इस कांड में युवा कांग्रेस का जिक्र बताया जाता है, आपने यह दिखाया है?

इसमें मैंने कहीं भी कोई पॉलिटिकल रंग नहीं दिया है, हम इस कहानी को दिखाना चाहते है। इसलिए इन विवादों से दूर रहे। हमारे लिए उन पीड़िताओं के दर्द को दिखाना जरूरी था, न किसी कहानी को पॉलिटिकल रंग देना जरूरी था।

कहा जा रहा है कि इस फिल्म के जरिए पवित्र जगह को बदनाम करने का प्रयास किया जा रहा है?

दरगाह से जुड़ाव को हमने कहीं भी नहीं दिखाया है। यह कहानी क्राइम, क्रिमनल और जस्टिस की है। दरगाह पवित्र जगह है, इसका कोई जिक्र नहीं है। दरगाह से विरोध हो रहा है, लेकिन उन्हें पहले फिल्म देखनी चाहिए, इसके बाद राय रखनी चाहिए। यह उनकी कहानी है, जिन्होंने एक अहसनीय पीड़ा को सहा है।हमने किसी एक धर्म को टारगेट नहीं बनाया है, यह सभी धर्मों के लोगों के लिए बनाई गई फिल्म है, इसे सभी को देखना चाहिए और लड़कियों के दर्द को महसूस करना चाहिए।

क्या यह सही है कि आप अजमेर में शूट करना चाहते थे, लेकिन वहां शूट नहीं होने दिया?

यह सही है कि मैंने अपनी फिल्म की शूटिंग अजमेर से शुरू की। वहां मैंने कुछ दिन शूट भी कर दिया था। शुरुआत में तो लोग ऐसा कहते थे कि यहां ऐसा कुछ हुआ ही नहीं है। फिर कुछ लोगों को लगा कि यह अजमेर कांड पर बन रही है, तो डिस्कशन शुरू हुआ कि आप इसमें किसी को भी हीरो नहीं बनाओगे, यानी किसी भी व्यक्ति का महिमा मंडन नहीं करोगे। सिर्फ सच्चाई दिखाओगे। फिर कुछ दिनों में ही वहां के कुछ लोगों को परेशानी होने लग गई और हमें शूटिंग पर दिक्कतें आने लगीं।

हमें प्रशासन ने भी कोई सहयोग नहीं दिया, परमिशन तक नहीं दी। प्रशासन को यहां सहयोग करना चाहिए था, यह सिर्फ एक जगह की नहीं पूरे देश की कहानी है, जिसे आज दिखाने की जरूरत है। प्रशासन साथ देता तो इसे यहीं शूट करता। इसके बाद मैंने मध्यप्रदेश के चंदेरी में इसकी शूटिंग की। इसकी पूरी शूटिंग वहीं की है, लेकिन फिल्म में आउटरपार्ट अजमेर का ही नजर आएगा, जो हमने पहले ही शूट कर लिया था।

आज भी लोग इसे अजमेर में रिलीज नहीं होने देना चाहते, कुछ कहेंगे?

इस फिल्म को देखने जाएं, पीड़ित लड़कियों के सपोर्ट में खड़े हाें। जो इंसाफ के लिए लड़ी हैं, उनको आपके साथ की जरूरत है। अजमेर के लोगों को यह फिल्म जरूर देखनी चाहिए।

 

यह आर्टिकल एक चर्चित वेबसाइट से लिया गया है हमारा द्वारा इसमें कोई छेड़खानी नहीं की गयी है 

 

 

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