आपकी कलम
निजीकरण बनाम सरकारी कंपनियां : क्या भारत गलत दिशा में जा रहा है?
paliwalwani
जब भारत सरकारी उपक्रमों (SOEs) को कमजोर कर निजीकरण की ओर बढ़ रहा है, तब चीन, सिंगापुर, फ्रांस और ब्राजील जैसी अर्थव्यवस्थाएं अपने SOEs को मजबूत कर वैश्विक बाज़ार पर कब्ज़ा जमा रही हैं।
1) क्या SOEs अक्षम होती हैं? हकीकत कुछ और है!
- मीडिया और कथित अर्थशास्त्रियों द्वारा सरकारी कंपनियों को ‘अक्षम’ बताना एक गहरी साज़िश है। लेकिन सच यह है कि कई विश्व स्तरीय कंपनियां सरकारी नियंत्रण में सफल रही हैं:
- Singapore Airlines – दुनिया की सबसे बेहतरीन एयरलाइनों में से एक, 57% हिस्सेदारी सरकार के पास (Temasek Holdings)।
- Bombay Transport Authority – कुशलता और विश्वसनीयता का प्रतीक, जो एक सरकारी संस्था है।
- Renault (फ्रांस) – कभी एक SOE थी, जिसने फ्रांस को ऑटोमोबाइल क्षेत्र में वैश्विक पहचान दिलाई।
- POSCO (दक्षिण कोरिया) – सरकार के समर्थन से विकसित हुई और अब विश्व की प्रमुख स्टील कंपनियों में गिनी जाती है।
- EMBRAER (ब्राज़ील) – एक सरकारी कंपनी के रूप में उभरी, जो आज विश्व की अग्रणी क्षेत्रीय जेट निर्माता है।
2) जिन देशों ने SOEs को मजबूत किया, उन्होंने वैश्विक बाजार में अपनी पकड़ बनाई
- कई देशों ने SOEs के माध्यम से औद्योगिक विकास किया, जबकि भारत उन्हें बेचने में लगा है:
- सिंगापुर – SOEs टेलीकॉम, बिजली, परिवहन (रेल, बस, टैक्सी), बंदरगाह, सेमीकंडक्टर, शिपबिल्डिंग, इंजीनियरिंग, शिपिंग और बैंकिंग तक फैली हैं।
- ताइवान – अपनी आर्थिक सफलता SOEs पर आधारित रखी, जहां न्यूनतम निजीकरण किया गया।
- फ्रांस, ऑस्ट्रिया, नॉर्वे और पश्चिम जर्मनी – 20वीं सदी के अधिकांश समय में मजबूत SOEs के सहारे तेज़ी से विकसित हुए।
3) चीन का बढ़ता दबदबा: SOEs कैसे बन गईं वैश्विक दिग्गज?
- आज Fortune 500 में सबसे ज्यादा कंपनियां चीन की सरकारी कंपनियां हैं।
- Huawei, Sinopec, China National Petroleum जैसी कंपनियां सरकारी नियंत्रण में रहकर मुनाफा कमा रही हैं।
- चीनी सरकार रणनीतिक रूप से SOEs को सपोर्ट कर ऊर्जा, टेक्नोलॉजी और इंफ्रास्ट्रक्चर में वैश्विक लीडर बना रही है।
- जब भारत सरकारी कंपनियों को बेच रहा है, चीन SOEs को बढ़ाकर दुनिया पर राज कर रहा है।
4) भारत के लिए सबक: निजीकरण का मोहभंग
- BSNL, HAL, ONGC, SAIL जैसी कंपनियों को कमजोर किया जा रहा है, जबकि इनकी क्षमता अपार है।
- निजीकरण का यह मॉडल भारत को विदेशी कंपनियों और चीन पर निर्भर बना देगा।
- औद्योगिक और तकनीकी आत्मनिर्भरता के लिए मजबूत सार्वजनिक क्षेत्र जरूरी है।
- निष्कर्ष : क्या हम आत्मनिर्भरता की जगह आत्मविनाश की ओर बढ़ रहे हैं?
- अगर भारत अपनी सरकारी कंपनियों को बेचता रहा, तो हम एक उपभोक्ता अर्थव्यवस्था बनकर रह जाएंगे।
आज आवश्यकता है कि हम SOEs को सक्षम बनाएं, उन्हें तकनीकी और औद्योगिक प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ाएं और चीन जैसे देशों से सबक लें, जो सरकारी क्षेत्र का उपयोग कर विश्व अर्थव्यवस्था में अपनी पकड़ बना रहे हैं। समय आ गया है कि हम निजीकरण की अंधी दौड़ छोड़कर एक संतुलित औद्योगिक नीति अपनाएं।