Saturday, 28 June 2025

रतलाम/जावरा

मशहूर साहित्यकार प्रो. अजहर हाशमी का निधन : एक अपूरणीय क्षति, ‘मुझको राम वाला प्यारा हिंदुस्तान चाहिए’

जगदीश राठौर
मशहूर साहित्यकार प्रो. अजहर हाशमी का निधन : एक अपूरणीय क्षति, ‘मुझको राम वाला प्यारा हिंदुस्तान चाहिए’
मशहूर साहित्यकार प्रो. अजहर हाशमी का निधन : एक अपूरणीय क्षति, ‘मुझको राम वाला प्यारा हिंदुस्तान चाहिए’

जगदीश राठौर

रतलाम. शासकीय कला एवं विज्ञान महाविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर, साहित्यकार, चिंतक, कवि और व्यंग्यकार प्रो. अजहर हाशमी का मंगलवार शाम 6 बजे निधन हो गया। वे 75 वर्ष के थे और पिछले एक वर्ष से अस्वस्थ चल रहे थे।

उनके निधन की खबर मिलते ही रतलाम सहित प्रदेशभर के साहित्यिक जगत में शोक की लहर फैल गई। मंगलवार रात 9 बजे तक उनका शव दर्शनार्थ रखा गया, जिसके बाद अंतिम संस्कार के लिए शव को राजस्थान के झालावाड़ जिले के ग्राम पिड़वा ले जाया गया।

सम्मान और पहचान : हाशमी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और प्रादेशिक सम्मान प्राप्त हुए। उनकी चर्चित पुस्तक ‘संस्मरण का संदूक समीक्षा के सिक्के’ को 2021 में मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी और संस्कृति परिषद की ओर से अखिल भारतीय राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया था।

उनकी एक और रचना ‘बेटियां पावन दुआएं हैं’ को 2011 में मध्यप्रदेश सरकार ने ‘बेटी बचाओ अभियान’ का हिस्सा बनाया था, जिसे बाद में एमपी बोर्ड की कक्षा 10 वीं की पाठ्यपुस्तक में भी शामिल किया गया। उनकी कविता ‘मुझको राम वाला प्यारा हिंदुस्तान चाहिए’ भी व्यापक रूप से लोकप्रिय रही।

बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे हाशमी : प्रो. हाशमी न केवल एक शिक्षाविद् रहे, बल्कि एक श्रेष्ठ कवि, चिंतक, लेखक और बेबाक वक्ता के रूप में भी पहचाने जाते थे। वे हर विषय पर खुलकर विचार रखते थे और अपने स्नेहिल व्यवहार से सभी के दिलों में जगह बनाए हुए थे। उनके छात्र उन्हें ‘गुरु’ से अधिक ‘मार्गदर्शक’ और ‘सखा’ मानते थे। वे अनुशासन, आत्मीयता और विचारशीलता के त्रिवेणी संगम माने जाते थे।

एक अपूरणीय क्षति : उनकी विदाई केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि एक युग की विदाई है। उनके जाने से साहित्य की वह रोशनी बुझी है, जो अनेक विचारों, संवेदनाओं और भावनाओं को प्रकाशित करती थी। उनके शब्दों का अनुशासन, उनकी शैली, और उनकी उपस्थिति सदैव साहित्यिक संसार में जीवित रहेगी। प्रो. हाशमी का जाना रतलाम ही नहीं, पूरे हिंदी साहित्य जगत के लिए एक ऐसी क्षति है, जिसकी भरपाई संभव नहीं। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।

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