● ● ● ● ● ●? ● ● ● ● ● ●मैं : मां ! ये पूजी म्हाराज मुझे बहुत अच्छे लगते हैं।मातुश्री : बेटा ! दुनिया में इनसे बढ़कर अच्छा कौन होगा ?मैं : मां ! पूजी म्हाराज के पांव बहुत कोमल हैं ।ये नंगे पांव चलते हैं, इनके पांवों में कांटे नहीं लगते हैं ।मातुश्री : बेटा ! पूजी म्हाराज बहुत भाग्यशाली हैं, इनके प्रबल पुण्यों का उदय है ।पुण्यवान महापुरुषों के पग-पग पर निधान बिछे रहते हैं ।कांटे इनको कोई कष्ट नहीं देते ।● ● ● ● ● ●? ● ● ● ● ● ●मैं : मां ! यहां इतने साधू हैं ।इनमें पूजी म्हाराज जैसा कोई दूसरा नहीं है ।देखो, इनके चेहरे की चमक कितनी आकर्षक है ।मातुश्री : बेटा ! पूजी म्हाराज ने इतने पुण्यों का संचय कब और कैसे किया, कहना कठिन है ।इनकी पुण्यवत्ता हम देख ही पाते हैं ।उसका वर्णन नहीं कर पाते ।● ● ● ● ● ●? ● ● ● ● ● ●मैं : मां ! एक बात और पूछना चाहता हूं । मैंने सुना है कि पूजी म्हाराज के पीछे दुसरे पूजी म्हाराज होते हैं ।मां ! इनके पीछे कौन होगा ? इत्ती-सी बात आप मुझे बता दें ।मां : ( आंखें लाल कर डांटते हुए ) खबरदार ! जो ऐसे शब्द दूसरी बार मुंह से निकाले ।अपने पूजी म्हाराज कोड दिवाली ( 1 करोड़ दिवाली ) राज करें औरहमें धर्म का उपदेश देते रहें ।● ● ● ● ● ●? ● ● ● ● ● ●मैं : ( अपने नादानी भरे प्रश्न के कारण सहमता हुआ ) मां ! ये पूजी म्हाराज मुझे बहुत अच्छे लगते हैं ।मैं बार-बार इनके पास जाकर इन्हें देखता हूं ।फिर भी मन तृप्त नहीं होता ।मातुश्री : बेटा ! तू भाग्यशाली है ।कर्मों का हल्कापन है, इसी कारण तेरे मन में ऐसी बातें आ रही है । गुरु एक बार भी अपनी करुणामयी नज़रों से जिस व्यक्ति की ओर देख लेते हैं, वह कृतार्थ हो जाता है ।● ● ● ● ● ●? ● ● ● ● ● ●मैं : मां ! मेरे मन में बार-बार यह भावना जाग रही है कि मैं अपना पूरा जीवन पूजी म्हाराज के चरणों में भेंट कर दूं । मैं उनका छोटा शिष्य बनूँ और उनके चरणों में बैठकर पढता रहूँ ।● ● ● ● ● ●? ● ● ● ● ● ●मातुश्री : बेटा ! तेरी भावना बहुत अच्छी है ।पर ऐसे भाग्य कहां है द्य तेरे बड़े भाई ( चम्पक मुनि )सौभाग्यशाली हैं ।उनको पूजी म्हाराज की सेवा करने का अवसर मिला है ।तू एक काम कर सकता है ।जितने दिन पूजी म्हाराज यहां रहें, प्रतिदिन दर्शन किया कर ।उनके चरणों में अपना सिर लगाकर वंदना किया करऔर उपासना का लाभ उठा ।● ● ● ● ● ●? ● ● ● ● ● ●मैंने सहजभाव से अपनी बाल सुलभ जिज्ञासाओं को मां के सामने रखा ।मां ने प्रत्येक जिज्ञासा का शांति और गंभीरता से समाधान दिया ।किन्तु एक प्रश्न ने उसको बौखला दिया ।मुझे यह ज्ञात होता कि इस प्रकार का प्रश्न नहीं पूछना चाहिए तो मैं कभी नहीं पूछता ।पर मैं कुछ जानता नहीं था,इसलिए मन में जो आया, वही पूछ लिया ।● ● ● ● ● ●? ● ● ● ● ● ●उस प्रश्न के बाद मां के चेहरे का भाव देखकर और उनका खीझपूर्ण उत्तर सुनकर मुझे अहसास हुआ कि यह बात पूछने की नहीं है ।अब तो जब कभी उस प्रसंग की याद आती है,मुझे हंसी आने लगती है ।कभी-कभी संकोच का भी अनुभव होता है ।● ● ● ● ● ●? ● ● ● ● ● ●उस समय की ये बातें जब-जब स्मृति के दरवाजे पर दस्तक देती है,मैं आज भी आत्मविभोर हो जाता हूं।कौन जानता था कि एक बालक के मन की कल्पनाएं इतनी जल्दी साकार हो जायेंगी ।गुरुदेव के चरणों में बैठकर अध्ययन करने का मेरा सपना जिस रूप में साकार हुआ,मुझे वह एक आश्चर्य जैसा प्रतीत होता है ।- गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी की आत्मकथा “ मेरा जीवन मेरा दर्शन “ सेRajendar Jain Dudhoria-जागरूकता मंच