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Amet news : शरीर रूपी नौका से संसार रूपी समुद्र को तरने का हो प्रयास : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण
M. Ajnabee, Kishan paliwalM. Ajnabee, Kishan paliwal
लावासरदारगढ :
भारत की आर्थिक नगरी, महाराष्ट्र की राजधानी मुम्बई को अपने चरणरज से पावन बनाने के उपरान्त विस्तृत मुम्बई के भूभागों को ज्योतित बनाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ रविवार को प्रातः नेरुल से मंगल प्रस्थान किया।
स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री उलवे में स्थित जिला परिषद स्कूल में पधारे। स्कूल परिसर में ही बने महाश्रमण समवसरण में उपस्थित जनता को अणुव्रत यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि जीव और शरीर एक ही है, ऐसी मान्यता भी रही है, किन्तु जीव अलग है और शरीर अलग है। शरीर और आत्मा साथ-साथ होते हुए भी उनका अस्तित्व अलग-अलग है।
शरीर एक नौका, जीव नाविक और संसार सागर के समान है, जिसे महर्षि लोग तर जाते हैं। शरीर से धर्म की साधना कर आदमी संसार सागर को तर सकता है। संयम और तप रूपी धर्म जीवन में आ जाए तो आदमी संसार सागर से तरने में शरीर नौका बन सकती है। शरीर जब तक स्वस्थ है, तब तक आदमी को धर्म कर लेने का प्रयास करना चाहिए।
कहा गया है कि जब तक आदमी को बुढ़ापा पीड़ित न करने लगे, शरीर में व्याधियां न बढ़ जाएं, इन्द्रिय शक्ति क्षीण न हो जाए, तब तक आदमी को धर्म कर लेने का प्रयास करना चाहिए। इसलिए शरीर की निरोगता व स्वस्थता आवश्यक है। आदमी को स्वावलंबी बनने का प्रयास करना चाहिए।
अपने आराध्य की अभिवंदना में स्थानीय स्वागताध्यक्ष चन्द्रप्रकाश मेहता व मनोचिकित्सक डॉ. चेतन ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल ने स्वागत गीत का संगान किया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी तो आचार्यश्री ने ज्ञानार्थियों को अपने निकट बैठाकर मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। गुरु की ऐसी कृपा बालपीढ़ी पर बरसते देखकर उपस्थित जनता भावविभोर नजर आ रही थी।