उत्तर प्रदेश
परमहंस दास बोले-शिला पर हथौड़ी चली तो अन्न-जल छोड़ दूंगा : हिंदू महासभा ने कहा अयोध्या से शिला को वापस भेजो
Paliwalwaniअयोध्या :
अयोध्या में दोनों शालिग्राम शिलाओं का गुरुवार को धूमधाम से पूजन हुआ। शालिग्राम शिला को रामसेवकपुरम में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच रखा गया है। इस बीच शिला को लेकर विवाद भी शुरू हो गया है। तपस्वी छावनी के पीठाधीश्वर महंत परमहंस दास ने कहा है कि शालिग्राम में स्वयं भगवान प्रतिष्ठित हैं, इसलिए उनके ऊपर हथौड़ी छेनी चलाना सही नहीं। अगर शालिग्राम शिला पर छेनी-हथौड़ी चली तो वो अन्न- जल का परित्याग कर देंगे।
वहीं अयोध्या हिंदू महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अधिवक्ता मनीष पांडे ने कहा कि नेपाल की गंडक नदी से निकाले गए विशालकाय शालिग्राम पत्थर से अगर भगवान रामलला की मूर्ति का निर्माण किया जाता है, तो इससे महाविनाश होना तय है। मंदिर में मूर्ति सोने की अथवा काली राम मंदिर की मूर्ति को ही प्रतिष्ठित किया जाए।
शालिग्राम पत्थरों को वापस भेजा जाए गंडक नदी
महासभा ने आक्रोश प्रकट करते हुए कहा है कि गंडक नदी से निकले शालिग्राम पत्थरों वापस भेज दिया जाए। उन्होंने पौराणिक महत्व पर चर्चा करते हुए बताया कि शंखचूड़ नामक दैत्य की पत्नी वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थी। वह भगवान को अपने हृदय में धारण करना चाहती थी, छल करने के कारण वृंदा ने भगवान विष्णु को पाषाण हो जाने एवं कीड़ों के द्वारा कुतरे जाने का श्राप दे दिया था।
आज उसी श्राप के प्रभाव के कारण भगवान विष्णु पत्थर के रूप में गंडक नदी में विद्यमान हैं। पांडेय ने यह भी कहा कि भगवान विष्णु गंडक नदी में जीवित अवस्था में विद्यमान हैं और उनका आकार दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जाता है।
मूर्ति पर ट्रस्ट और मूर्तिकार लेंगे फैसला
शिलाओं को नेपाल से लेकर अयोध्या आए राम मंदिर ट्रस्ट के प्रमुख सदस्य कामेश्वर चौपाल के अनुसार ये शिलाएं शालिग्राम ही हैं। इसका परीक्षण करके लाया गया है। इनसे भगवान की मूर्ति बनेगी, यह भी लगभग तय है। मगर यह मूर्ति कहां स्थापित होगी और गर्भगृह की मूर्ति इसी शिला से बनेगी? इसका निर्णय मूर्तिकारों की राय लेने के बाद अंतिम रूप से राम मंदिर ट्रस्ट ही करेगा।
उन्होंने कहा कि इस शिला को अयोध्या लाने से पहले नेपाल सरकार ने इसका वैज्ञानिक परीक्षण कराया है। इसकी जानकारी वहां के सरकार ने लिखित रूप से दिया है।
दरअसल, नेपाल में 40 शिलाओं की पहचान की गई। वैज्ञानिक तरीके से पहचान के बाद ट्रस्ट से पत्राचार किया गया। विमलेंद्र निधि ने बताया कि वे नृपेंद्र मिश्र से भी मिले। फिर दोनों देशों के बीच सहमति बनी। शिला को भारत लाने के लिए मुझे और महंत राम तपेश्वर दास को जिम्मेदारी दी गई थी।