उदयपुर

राष्ट्रबोध, संस्कृति एवं साहित्य अंकुर प्रकाशन उदयपुर का विमोचन संपन्न

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राष्ट्रबोध, संस्कृति एवं साहित्य अंकुर प्रकाशन उदयपुर का विमोचन संपन्न
राष्ट्रबोध, संस्कृति एवं साहित्य अंकुर प्रकाशन उदयपुर का विमोचन संपन्न

उदयपुर। भारत भूमि सनातन काल से वैश्विक पटल पर एक महान् सांस्कृतिक धरा के रूप में विख्यात रही है। भाषायी विविधता, भौगोलिक विषमता, आध्यात्मिक एकात्मकता के साथ सांस्कृतिक अन्तर्धारा का नैरन्तर्य चामत्कारिक है। इस अंतः प्रवाह की विलक्षण संस्कृति के निर्माण में साहित्य का योगदान अतुल्य है। वैदिक, संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश साहित्य के साथ आधुनिक भारतीय भाषाओं में रचित साहित्य ने ‘भारतीय राष्ट्रबोध’ की अवधारणा को सदैव समृद्ध किया है।
हिन्दी साहित्य में आदिकालीन आध्यात्मिक रचनाओं, रासो काव्य की वीरगाथाओं, कबीर-जायसी-सूर-तुलसी के भक्तिरसात्मक पदों के साथ रीतिकालीन कवि भूषण की ओजस्वी वाणी में राष्ट्र और संस्कृति का दिव्य स्वरूप उद्घाटित हुआ है। राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन में आधुनिक हिन्दी कवियों- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, मैथिलीशरण गुप्त, रामनरेश त्रिपाठी, सोहनलाल द्विवेदी, सुभद्रा कुमारी चौहान, माखनलाल चतुर्वेदी, प्रसाद, निराला, दिनकर जैसे कवियों ने अपनी सांस्कृतिक विरासत का आश्रय लेकर भारतीय जनमानस में चेतना का संचार किया। इसके साथ विपुल मात्रा में रचित गद्य-साहित्य ने राष्ट्रीय-सांस्कृतिक धरोहर को गतिमान किया। यह स्मरण मात्र ही रोमांचकारी है। राजस्थान साहित्य अकादमी,उदयपुर और हिन्दी विभाग, डॉ. भीमराव अम्बेडकर राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, निम्बाहेड़ा के संयुक्त तत्त्वावधान में दिनांक 21-22 दिसंबर, 2017 को आयोजित संगोष्ठी ‘राष्ट्र एवं संस्कृतिः साहित्यिक अवदान’ का अभीष्ट भी राष्ट्रीय-सांस्कृतिक अंतर्धारा में साहित्य के योगदान को मूल्यांकित करना रहा। संगोष्ठी के चार प्रमुख सत्रों में जिन उप विषयों पर गहन विमर्श हुआ, उनमें प्रमुख हैं-राष्ट्रीय चिंतन के परिप्रेक्ष्य में साहित्य का स्वरूप, साहित्य एवं संस्कृति का अंतःसंबंध, समकालीन साहित्य में राष्ट्र एवं संस्कृति की अभिव्यक्ति तथा राष्ट्रीय चुनौतियाँ एवं वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य आदि। राष्ट्रीय संगोष्ठी में सांस्कृतिक विमर्शकारों और भारतीय चिंतन परम्परा के व्याख्याकारों ने विषय की संकल्पना को न केवल स्पष्ट किया, वरन् वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य की विसंगतियों पर भी बेबाक टिप्पणियाँ की। देश के अनेक प्रान्तों से आए शोधार्थियों ने मौलिक विवेचना परक शोध सार प्रस्तुत किए। इसके अतिरिक्त उद्घाटन और समापन सत्र में आमंत्रित अतिथियों ने विषय के संपूर्ण कलेवर को चित्रमय शाब्दिक अभिव्यक्ति प्रदान कर संदर्भित विषय की भावी रूपरेखा भी तय की। समग्र विमर्श उपरान्त साहित्यिक निकष के समेकन हेतु प्रस्तुत पुस्तक ‘राष्ट्रबोध,संस्कृति एवं साहित्य’ में महत्त्वपूर्ण व्याख्यान- अंशों, चयनित शोध पत्रों को सम्मिलित किया है। डॉ. इन्दुशेखर ‘तत्पुरूष’ द्वारा लिखित ‘पुरोवाक्’ में राष्ट्रबोध, संस्कृति और साहित्यिक चिरन्तनता की विस्तृत व्याख्या कर विषय की भूमिका को स्पष्ट करने का प्रयास हुआ है, इसे संपूर्ण पुस्तक का निकष भी माना जा सकता है। वैचारिक विषय वस्तु निस्संदेह चिंतकों, अध्येताओं, पाठकों और शोधार्थियों के लिए श्रेयस्कर बने, ऐसी कामना है। राष्ट्रबोध, संस्कृति एवं साहित्य पुस्तक के डॉ.राजेन्द्र कुमार सिंघवी, डॉ. इंदुशेखर ‘‘तत्पुरूष’’ संपादक है। उपरोंक्त जानकारी मेनारिया समाज के वरिष्ठ समाजसेवी, साहित्यकार, लेखक, पत्रकारिता के धूमकेतु श्री राजेन्द्र जी पानेरी अंकुर प्रकाशन उदयपुर वालों ने पालीवाल वाणी को दी।

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