धर्मशास्त्र

मेरे ठाकुर जी की कथा

paliwalwani
मेरे ठाकुर जी की कथा
मेरे ठाकुर जी की कथा

 रवि जोशी....

एक ईश्वर विरोधी अक़्सर एक ईश्वर प्रेमी का मज़ाक उड़ाता हैं, उसकी आस्था उसके विश्वास को नाम देता हैं अंधविश्वास और ढोग का।

ईश्वर विरोधी का सवाल बस एक ही रहता हैं.. कौन हैं तुम्हारा ईश्वर? कहाँ रहता हैं? वो हैं तों इतनी परेशानिया क्यों हैं तुम्हारे जीवन में? 

क्योकि उसे ऐसा लगता हैं की एक ईश्वर प्रेमी अपने ईश्वर के पास सिर्फ और सिर्फ कुछ मांगने जाता हैं, अपनी परेशानियों, अपनी बुरी परिस्थिति के लिये रोने जाता हैं।

मगर एक ईश्वर विरोधी ये कभी नहीं समझ सकता की... एक ईश्वर प्रेमी अपने ईश्वर के पास इसलिए नहीं जाता क्योंकी उसे कुछ चाहिए, बल्कि वो उनके पास इसलिए जाता हैं क्योकि वो उनसे प्रेम करता हैं।

हाँ मेरा मेरे ईश्वर पर अथातःविश्वास हैं, उसने मुझें अंधविश्वास नहीं सिखाया, उसने मुझें विश्वास और अंधविश्वास में अंतर करना सिखाया।

उसने मुझें स्वयं से प्रेम करना सिखाया, उसने मुझें अपनो का त्याग करना या मुश्किलो से भागना नहीं बल्कि उन्हें स्वीकार करना सिखाया।

ज़ब उन्होंने रणछोड़ की उपाधि को स्वीकार किया, ज़ब उन्होंने प्रेम में विरह को स्वीकार किया।

ज़ब उन्होंने अर्धांगिनी त्याग के लांछन को स्वीकार किया, ज़ब उन्होंने छलिया का दोष स्वीकार किया।

उन्होंने मुझें हर परिस्थिति में ख़ुद पर विश्वास करना सिखाया, नकारत्मा में भी सकारात्मका के साथ आगे बढ़ना सिखाया।

मैंने उन्हें माता-पिता, भाई-बहन, मित्र-सखा, सकार-निराकार जो भी रूप दिया उसने हर रूप को सहर्ष स्वीकारा।

इससे सुन्दर प्रेम क्या होगा, जहाँ मैंने बचपन से उन्हें बिना देखे, बिना मिलें सिर्फ कल्पना के आधार पर अपना हर सुख-दुःख बांटा।

मेरी लाखों गलती पर भी उन्होंने मुझें ठुकराया नहीं, मुझें सहिर्दय स्वीकार किया।

जहाँ एक मूर्तिकार, एक चित्रकार ने शास्त्रों के वर्णन पर अपनी कल्पना पर विश्वास कर एक रुप उखेर दिया, कभी पत्थर पर तों कभी कागज पर, और दें दिया उन्हें एक रूप जिसे उस विधाता ने पुरे ह्रदय से स्वीकार किया।

जिसकें विश्वास पर पुरे संसार ने विश्वास किया, उसने मुझें उस समय अपनाया ज़ब सारे संसार ने मेरा त्याग किया, मेरी सफलता-असफलता के आधार पर मेरा मूल्यांकन किया, समाज ने अपने द्वारा बनाये नियमों के आधार पर मेरा जीवन निश्चित किया।

उसने नहीं पूछा मुझसें की मैं सफल हूँ या असफल, नारी हूँ या पुरुष, बर्ह्माण हूँ या क्षत्रिय, वैश्य हूँ या शूद्र, ज्ञानी हूँ या अज्ञानी।

उसने मेंरे जूठे भोजन को भी स्वीकार किया, केवट के साथ सवारी को भी सम्मान दिया, मनुष्य जीवन में रहकर हर कष्ट को स्वीकार किया, सतोंगुण, रजोंगुण और तमोंगुण में अंतर बताया। 

उसनें मेरी हर बात को बिना शिकायत के सुना, समय आने पर हर परेशानी का हल भी दिया, हर दूसरे व्यक्ति के विचारों का सम्मान करना सिखाया।

केवल ख़ुद को ज्ञानी और अन्यों को अज्ञानी सोचने वाली मूर्खपूर्ण सोच से भी अवगत कराया।

उसनें मुझें स्वयं के कर्म पर विश्वास करना सिखाया, उसनें मुझें विश्वास और अंधविश्वास का अंतर बताया...

जय हो राधामाधव जी की

यदि आप भी मेरे ठाकुर जी की कथा के अंश प्रतिदिन अपने मोबाइल पर प्राप्त करना चाहते हैं तो आप अपना नाम और सिटी मेरे व्हाट्सएप नंबर 9001009004 पर लिख भेजिए।

रवि जोशी 9001009004

HISTORY : !! आओ चले बांध खुशियों की डोर...नही चाहिए अपनी तारीफो के शोर...बस आपका साथ चाहिए...समाज विकास की ओर !!

 

whatsapp sharefacebook sharetwitter sharetelegram sharelinkedin share
whatsapp share facebook share twitter share telegram share linkedin share
Related News
Latest News
Trending News