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तो क्या 2024 में बीजेपी की जीत तय है?, इन पांच बिन्दुओ में समझिए विधानसभा चुनाव के परिणामों से क्या मिला संदेश

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तो क्या 2024 में बीजेपी की जीत तय है?, इन पांच बिन्दुओ में समझिए विधानसभा चुनाव के परिणामों से क्या मिला संदेश
तो क्या 2024 में बीजेपी की जीत तय है?, इन पांच बिन्दुओ में समझिए विधानसभा चुनाव के परिणामों से क्या मिला संदेश

2019 के लोकसभा चुनाव में BJP 303 जीतने में कामयाब रही थी, 10 साल की सत्ता विरोधी लहर के बाद 2024 में वह अपना प्रदर्शन कैसे दोहरा सकती है? यह विपक्ष का सवाल था। शायद अब इस सवाल का जवाब मिल चुका होगा। आइए जानते हैं विधानसभा चुनाव के परिणामों के क्या मायने हैं।

मध्य प्रदेश में जीत का मतलब?

विधानसभा चुनावों के परिणाम इस बात को रेखांकित करते हैं कि भाजपा कितनी मजबूत हो गई है। भाजपा नेको तो जीता ही,पर भी कब्जा करने में कामयाब रही, जिसे कांग्रेस सुरक्षित राज्य मान रही थी।में भाजपा ने बड़े अंतर के साथ जीतकर सत्ता को बरकरार रखा।

मध्य प्रदेश के जीत के अलग मायने हैं। MP, से पहले की भाजपा की राजनीतिक प्रयोगशाला है। भाजपा के लगभग चार बार सत्ता में रहने के बावजूद मध्य प्रदेश की जनता ने उसी पार्टी को चुना है। जाहिर है इसका मतलब यह है कि भाजपा, भारत के इस सेंट्रल स्टेट पर मजबूत पकड़ बना चुकी है।  

तो क्या 2024 में बीजेपी की जीत तय है?

भाजपा ने इन तीनों राज्यों में किसी को भी अपने मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में घोषित नहीं किया था। यहां तक कि उसने अपने मुख्यमंत्री शिवराज और पूर्व मुख्यमंत्रियों रमन सिंह और वसुंधरा राजे सिंधिया और उनके समर्थकों को भी सिर्फ टिकट देकर जोड़े रखा।

माना कि कोई भी चुनाव किसी एक मुद्दे पर नहीं जीता जाता, लेकिन चूंकि प्रधानमंत्री ने ही आगे बढ़कर अभियान का नेतृत्व किया, तो जाहिर है इन राज्यों में उनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई है। अगर पार्टी एक ट्रेन है तो पीएम मोदी उसके इंजन हैं।

इसके अलावा जिन मुद्दों का वह आम तौर पर चुनावों में उपयोग करते थे, जैसे- राष्ट्रीय गौरव, विश्व स्तर पर भारत का बढ़ता कद, अतीत के गौरव को पुनः प्राप्त करना, और यहां तक कि फिलिस्तीन मैं पैदा हुई स्थिति तक का राज्य के चुनावों में जिक्र आया।

प्रचार के दौरान रैलियों में बार-बार कहा कि अगर लोग 2024 में मोदी को चाहते हैं, तो उन्हें राज्य चुनावों में उनके लिए वोट करना चाहिए। इस बार सीएम कौन होगा, इस टॉपिक को चर्चा का केंद्र बनने ही नहीं दिया गया। लोगों को आश्वासन यह दिया गया कि उनके वोट से पीएम मोदी मजबूत होंगे।

खड़गे के नेतृत्व में कांग्रेस का प्रदर्शन

मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में कांग्रेस की प्रगति बहुत धीमी है। निश्चित रूप से भाजपा के रथ को चुनौती देने के लिए कांग्रेस पर्याप्त वैचारिक और संगठनात्मक मजबूती हासिल नहीं कर पायी है।

लगभग एक साल पहले, हैदराबाद में सड़कों पर यह चर्चा थी कि सीधा मुकाबला बीआरएस और भाजपा के बीच है, कांग्रेस कोई बड़ा फैक्टर नहीं है। लेकिन कांग्रेस ने टीआरएस शासन पर लगे भ्रष्टाचार और अहंकार के आरोपों को भुना लिया। कांग्रेस को न सिर्फ अल्पसंख्यकों का समर्थन मिला बल्कि वह टीडीपी के कोर वोट के कुछ हिस्से को भी अपनी तरफ करने में कामयाब हुई।

हालांकि इस बीच भाजपा ने भी तेलंगाना में अपना वोट शेयर दोगुना (14%) कर लिया है। शायद भाजपा ने आम चुनावों में के.चंद्रशेखर राव (KCR) का समर्थन पाने की उम्मीद में राज्य में ज्यादा हाथ-पैर नहीं मारे। चूंकि अब दक्षिण में भाजपा नहीं है, इसलिए वह अब बीआरएस (तेलंगाना में) और जगन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस (आंध्र प्रदेश में) पर फिर से विचार कर सकती है। कर्नाटक में एचडी देवगौड़ा के जनता दल (एस) के साथ पहले ही समझौता हो चुका है और एनडीए का विस्तार जारी है।

हालिया नतीजों के दूरगामी परिणाम

हिंदी राज्यों में कांग्रेस की हार से उसका प्रभाव कम हो गया है। शायद इससे INDIA गठबंधन के भीतर सीटों के बंटवारे में आसानी होगी। यह विपक्ष के लिए थोड़ी राहत की बात है।

हालिया नतीजों के भारतीय राजनीति पर दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। 2023 के चुनावों ने राजनीतिक आधार पर एक भौगोलिक विभाजन नजर आने लगा है। भाजपा हिंदी पट्टी और पश्चिम के हिस्से में मजबूत है। (हालांकि अगले सालमें क्या होगा यह अनिश्चित है)

कांग्रेस और विपक्षी दल अनिवार्य रूप से दक्षिण और पूर्वी राज्यों (पश्चिम बंगाल और उड़ीसा) में सत्ता में हैं। 2026 में होने वाले परिसीमन के साथ दक्षिणी राज्यों का प्रभाव कम हो सकता है, क्योंकि परिसीमन  से दक्षिणी राज्यों में लोकसभा सीटों की संख्या कम होने और हिंदी भाषी राज्यों में बढ़ने की संभावना है।

छत्तीसगढ़ की लोकसभा सीटें 11 से बढ़कर 12, एमपी की 29 से 34 और राजस्थान की 25 से 32 हो सकती हैं। इसके विपरीत, तेलंगाना की सीटें 17 से घटकर 15 हो सकती हैं। सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है। राज्य में लोकसभा सीटों की संख्या 80 से 92 तक हो सकती है। यह पहले से ही तनावपूर्ण और विभाजित राजनीति में खाई को और बढ़ा देगा।

महिलाएं तय कर रही हैं सत्ता

सत्ता में कौन आएगा, इसका निर्णय लेने में महिलाओं की भूमिका बढ़ी है। 2023 के चुनाव बड़े पैमाने पर महिलाओं पर केंद्रित थे। वे तेजी से एक महत्वपूर्ण वोट बैंक के रूप में उभर रही हैं।

माना जाता है कि मध्य प्रदेश में लाडली बहना योजना ने शिवराज के अभियान में अहम भूमिका निभाई है; छत्तीसगढ़ में मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अविवाहित महिलाओं को प्रति वर्ष 12,000 रुपये देने का वादा किया था। भाजपा ने वादा कर दिया कि वह 15,000 रुपये देगी। इससे बड़ा फर्क पड़ा।

अशोक गहलोत की स्वास्थ्य योजनाएं और 500 रुपये की रियायती दर पर गैस सिलेंडर उन कार्यक्रमों में से थे, जिसने महिलाओं को आकर्षित किया। इन योजनाओं ने कांग्रेस को मजबूती से लड़ने की ताकत दी।

मोदी ने अपने भाषण में महिलाओं को “जाति” के रूप में चिह्नित किया है। अभी इसका आकलन ठीक से नहीं हुआ कि महिला वोटर्स को साधने से कितना फायदा होता है। हालांकि इस बात का अहसास हो चुका है कि महिला मतदाताओं की ताकत लगातार बढ़ रही है।

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