नाथद्वारा

श्रीजी नगरी नाथद्वारा : व्रज - कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी -रूप चौदस के आपके शृंगार

Paliwalwani
श्रीजी नगरी नाथद्वारा : व्रज - कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी -रूप चौदस के आपके शृंगार
श्रीजी नगरी नाथद्वारा : व्रज - कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी -रूप चौदस के आपके शृंगार

व्रज - कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी (रूप चौदस के आपके शृंगार)   

न्हात बलकुंवर कुंवर गिरिधारी ।

जसुमति तिलक करत मुख चुंबत, आरती  नवल उतारी ॥1॥

आनंद राय सहित गोप सब, नंदरानी  व्रजनारी ।

जलसों घोर केसर कस्तुरी, सुभग  सीसतें  ढारी ॥2॥

बहोर करत शृंगार सबे मिल, सब मिल रहत निहारी ।

चंद्रावलि  व्रजमंगल रस भर, श्रीवृषभान दुलारी ॥3॥

मनभाये पकवान जिमावत, जात सबें  बलहारी ।

श्रीविठ्ठलगिरिधरन सकल व्रज, सुख मानत छोटी दिवारी ॥4॥

सेवाक्रम : उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.

दिन भर सभी समय झारीजी में यमुनाजल भरा जाता है. चारों समय (मंगला, राजभोग, संध्या व शयन) की आरती थाली में की जाती है. आज प्रभु के चरणचौकी, तकिया, शैयाजी, कुंजा, बंटा आदि सभी साज जड़ाव के होते हैं. दोनों खण्ड चांदी के साजे जाते हैं.गेंद, दिवाला, चौगान सभी सोने के आते हैं.मंगला दर्शन उपरांत प्रभु को फुलेल समर्पित कर तिलक किया जाता है. तत्पश्चात बीड़ा पधराकर चन्दन, आवंला एवं उपटना से अभ्यंग (स्नान) कराया जाता है.

आज सुनहरी ज़री के आधारवस्त्र पर भीम पक्षी के पंख के भरतकाम से सुसज्जित पिछवाई आती है. आज श्रीजी को सुनहरी फुलकशाही ज़री के वस्त्र एवं मोरपंख की चंद्रिका का वनमाला का श्रृंगार धराया जाता है. कार्तिक कृष्ण दशमी से कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा (अन्नकूट उत्सव) तक सात दिवस श्रीजी को अन्नकूट के लिए सिद्ध की जा रही विशेष सामग्रियां गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में अरोगायी जाती हैं. 

  • ये सामग्रियां अन्नकूट उत्सव पर भी अरोगायी जाएँगी

इस श्रृंखला में आज विशेष रूप से श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में कटपूवा अरोगाये जाते हैं. उत्सव होने के कारण विशेष रूप से दूधघर में सिद्ध की गयी केसरयुक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है. राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है. सखड़ी में केसरयुक्त पेठा, मीठी सेव, आधे नेग की श्याम-खटाई आदि अरोगाये जाते हैं. अदकी में संजाब (गेहूं के रवा) की खीर अरोगायी जाती है.

प्रभु के सम्मुख चार बीड़ा की सिकोरी (स्वर्ण का जालीदार पात्र) धरी जाती है. भोग समय फीका के स्थान पर बीज-चालनी (घी में तले नमकयुक्त सूखे मेवे व बीज) अरोगाये जाते हैं. आरती समय अरोगाये जाने वाले ठोड के स्थान पर गेहूं के पाटिया के बड़े लड्डू अरोगाये जाते हैं.

  • राजभोग दर्शन  :

कीर्तन – (राग : सारंग)

बड़ड़ेन को आगें दे गिरिधर श्री गोवर्धन पूजन आवत l

मानसी गंगा जल न्हवायके पाछें दूध धोरी को नावत ll1ll

बहोरि पखार अरगजा चरचित धुप दीप बहु भोग धरावत l

दे बीरा आरती करत है ब्रज भामिन मिल मंगल गावत ll2ll

टेर ग्वाल भाजन भर दे के पीठ थापे शिरपेच बंधावत l

‘चत्रभुज’ प्रभु गिरिधर अब यह व्रज युग युग राज करो मनभावत ll3ll

वस्त्र : श्रीजी को आज लाल एवं सुनहरी फुलक शाही ज़री का सूथन, चोली एवं घेरदार वागा धराये जाते हैं. पटका सुनहरी ज़री का व ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराये जाते हैं.

श्रृंगार : प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. हीरे की प्रधानता सहित, मोती, माणक, पन्ना एवं जड़ाव स्वर्ण के सर्व आभरण धराये जाते हैं. 

श्रीमस्तक पर सुनहरी ज़री के चीरा (ज़री की पाग) के ऊपर पन्ना के थेगडा वाला सिरपैंच, केरी घाट की लटकन वाला लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं. श्रीकर्ण में हीरा के दो जोड़ी कर्णफूल धराये जाते हैं. श्रीकंठ में हीरा, पन्ना, मोती के हार, दुलड़ा माला, कस्तूरी, कली आदि की माला धरायी जाती हैं. 

गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की विविध पुष्पों की थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. श्रीहस्त में कमलछड़ी, हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. पट उत्सव का गोटी जडाऊ, आरसी शृंगार में चार झाड की एवं राजभोग में सोन की डांडी की आती है. प्रातः धराये श्रीकंठ के श्रृगार संध्या-आरती उपरांत बड़े (हटा) कर शयन समय छोटे (छेड़ान के) श्रृंगार धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर चीरा पर हीरा की किलंगी व मोती की लूम धरायी जाती है. आज श्रीमस्तक पर लूम तुर्रा नहीं धराये जाते.शयन समय निज मन्दिर के बाहर दीपमाला सजायी जाती है. मणिकोठा में रंगोली का पाट व दीपक सजाये जाते हैं.

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