नाथद्वारा
नाथद्वारा : श्रीजी को प्राचीन सेला के पतंगी धोती-पटका और श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर सेहरा का श्रृंगार धराया जायेगा
Paliwalwaniनाथद्वारा : व्रज - आषाढ़ शुक्ल नवमी : जिन तिथियों के लिए प्रभु की सेवा प्रणालिका में कोई वस्त्र, श्रृंगार निर्धारित नहीं होते उन तिथियों में प्रभु को ऐच्छिक वस्त्र व श्रृंगार धराये जाते हैं. ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार प्रभु श्री गोवर्धनधरण की इच्छा, ऋतु की अनुकूलता, ऐच्छिक श्रृंगारों की उपलब्धता, पूज्य श्री तिलकायत महाराजश्री की आज्ञा एवं प्रभु के तत्सुख की भावना से मुखियाजी के स्व-विवेक के आधार पर धराये जाते हैं. ऐच्छिक वस्त्र, श्रृंगार के रूप में आज श्रीजी को प्राचीन सेला के पतंगी धोती-पटका और श्रीमस्तक पर छज्जेदार पाग पर सेहरा का श्रृंगार धराया जायेगा.
राजभोग दर्शन
कीर्तन – (राग : मल्हार)
आज बने गिरिधारी दूलहे,
चंदन की तन खोर करें ।।
सकल सिंगार बने मोतीनके,
बिविध कुसुम की माला गरें ।।१।।
खासा को कटि बन्यो पिछोरा,
मोतीन सहेरो शीश धरें ।।
राते नयन बंक अनियारे,
चंचल खंजन मान हरें ।।२।।
ठाडे कमल फिराजत,
गावत कुंडल श्रमकण बिंदु परें ।।
सूरदास मदन मोहन मिल,
राधासों रति केलि करें ।।३।।
साज : श्रीजी में आज श्री गिरिराजजी के निकुंज में विवाह खेल की निकुंज-लीला, सेहरे के श्रृंगार में दर्शन देते श्री स्वामिनी जी एवं श्री यमुना जी के सुन्दर चित्रांकन से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी, तकिया और चरणचौकी के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है.
वस्त्र : श्रीजी को आज प्राचीन सेला के पतंगी धोती एवं राजशाही पटका धराये जाते हैं.
श्रृंगार : प्रभु को आज मध्य (घुटने तक) का उष्णकालीन हल्का श्रृंगार धराया जाता है.
सर्वआभरण मोती के धराये जाते हैं. श्रीमस्तक पर पतंगी रंग की छज्जेदार पाग के ऊपर लालफोंदना वाला मोती का सेहरा, बायीं ओर शीशफूल एवं दायीं ओर मोती की चोटी धरायी जाती है. आज श्रीमस्तक पर तुर्री धराई जाती हैं. श्रीकर्ण में मोती के मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं. तुलसी एवं श्वेत पुष्पों वाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है. कली आदि माला धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में तीन कमल की कमलछड़ी, झिने लहरिया के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराये जाते हैं. पट राग रंग का एवं गोटी पतंगी रंग की आती हैं.