इंदौर
पैसा लेना हराम नहीं है पर देना सुदखोरी-ठग राजेंद्र गोयल
Sunil Paliwalइंदौर। तमाम विरोधी लोग दावा करते फिर रहो हो...कि हम पंड़ित जयप्रकाश वैष्णव को मजा चखा देगे...अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे...जैसे तीखे बाणों से...आरोपों की बौंछारें होती गई वैसे-वैसे...गुरू देव की छवि में ओर निखार आता गया...लोग सोच रहे थे...कि पंडित जयप्रकाश वैष्णव जी वास्तव में गुनाहगार है...तभी मीडिया में तरफा-तरहा की अनगर्ल खबरों पर...अपना ध्यान नहीं दे रहे है...पर खामोशी में भी राज छिपा होता है...पंड़ित जी देख रहे थे...मंद...मंद मुस्कुरा रहे थे...ओर कह रहे थे...जिसकी जितनी औकात उतनी ताकात लगना हो लगा लो...सत्य परेशान नहीं हो सकता...जब उनकी बातों से उनके विरोधी...जोर-जोर से हंस रहे थे...यह तक कि...जिनकी औकात नहीं थी...उनको उनकी जीना सिखाया...भुखे मर रहे थे...उनके घर में राषन पहुंचाया...पर उसके बदले...पंड़ित जी को क्या...क्या देखना पड़ रहा है...पंड़ित जी आज भी अपने मुकाम पर खडे़ है पर तुम बताओं तुम्हारे घर वाले ही तुम्हारा पता पूछ रहे कि भैया घर कब तक आओगे...बिना सोचे समझे कोई भी ऐसा कदम मत उठाना कि...तुम्हारे घर परिवार वाले...तुम्हारे करमों की सजा पाएं...तुम्हारे कर्मों की सजा है...जो आज इस मुकाम पर आ गए...दुश्मनी कितनी भी कर लो...पर आना पडे़गा...सदगुरूवर के दरबार में...चाहे पंड़ित के घर जावों या...!!! राजेंद्र गोयल लोग तुम्हारे करमों की सजा पा रहे है...आये थे मदद मांगने पर...तुम्हारी नियत में ही खोट थी...लाख मना करा था...औकात से ज्यादा मत उड़ों पर तुमने वो सलाह नहीं मानी...रद्वी की तरहा चेक बांटे...जब देने की बारी आई...तो हरामी पर उतार आए...कुछ तो शर्म करते गुरू दीक्षा का...पर तुम तो पहले से ही शतीर ठग...बनकर रद्वी की तरहा...फर्जी चेक बांटकर...ईमानदार लोगों की नींद हराम करने की साजिश रच चुके थे...तुम्हारे कर्मों की सजा दुसरा नहीं तुम्हें ही जेल मे ंभुगतना पडे़गी...अब बच के कहां जाएगा...बहुत कर ली...धोखाघडी...भक्त लोग कहा रहे...आदेश दो...पर पंड़ित जी ने कहा...शांत रहो...कानुन अपना काम रहा है...तुम सही मार्ग चुनो...अपना काम करो...तमाम लोग...तरहा...तरहा की बातें करेगे...जिनकी औकात नहंी है...तुम्हारी औकात है...सेवा करो...गरीबों की मदद करों...पर दिखावा मत करों...जिसको चिल्लाना है...चिल्लाये...दिन...रात...मेरे घर चिल्लाये...सड़क पर चिल्लाये...वो उनकी अदाद है...पर तुम मेरे शिष्य हो...मैनें शांति का संदेश दिया...लोगों को निःशुल्क सेवाएं दी...वो शरारती तत्वों का हजाम नहीं हो रही...पैसा लेना हराम नहीं है...पर देने की बारी आए तो सूदखोरी का इल्लाम लगा दो...मेरा पैसा मेरी मेहनत का है...जब लेना आया था...तो चराणों में पड़ा रहा था...देने की बारी आई तो मीडिया में जा-जाकर मेरे विरूध अनगर्ल प्रचार-प्रसार करवा रहा है...फकीर राजेंद्र गोयल बताये...कितनें लोगों को टोपी पिनाई...कितने लोगो के साथ धोखाघड़ी करी...कितनों का पैसा हजम कर गया...चारों तरफ राजेंद्र गोयल तुमने कितने चेक ऐसे बांटेे जिसकी गिनती करने में भी शर्म आ रही है...पंड़ित के दरबार में तुम्हारी कारगुजारियों की तदाद दिनों-दिन बढ़ रही है...हर कोई आता है...ओर कहता है कि पंड़ित जी फकीर टोपी बाज से हमें भी बचाओं...हम लड़ नहीं सकते पर...आपके साथ...कंधे से कंधा मिला सकते है...ऐसे महाठग टोपी बाज को जेल की हवा खिला सकते है...आप लोगों की जीना सिखाते है...गरीबों का दर्द बांटते रहेना...राजेंद्र गोयल जैसे कई फर्जी लोग आपको बदनाम करेगें पर...अपने मार्ग पर सतत् आगे बढ़ते रहेना...मुश्बित उसे ही आती है जो कुछ करने का जब्बा रखते है...फर्जी ठग कितना भी शतीर हो...एक दिन अपने करमों की सजा जरूर पाएगा...जिनकी औकात नहीं होती है वो सद्गुरूवर के घर पत्थर फेंकते है...उन्हें नहीं मालूल कि जब नीचे गिराते है तो जख्म तुम्हारे ही नजर आते है...इतना ज्यादा ईमानदार है तो पंड़ित के पैसे लौटा दे...माना पंडित जी गलत है तो फिर जिन...जिन को चेक दिए उनके पैसे लौटा कर गुरू से ली गई दीक्षा वापस लौटा दे...बिना मतलब किसी के घर पत्थर नहीं फेंका करते...अंधेरा करने की राजेंद्र गोयल तुने बहुत कोशिश कर ली...पर देख सुबह पंड़ित जयप्रकाश वैष्णव के घर से ही रोशनी ओर सुगंधित खुशबु रोज की तरहा आज भी महक रही है... आज भी चिड़िया का चहकना...ये सिद्व करता है कि सत्य परेशान हो सकता पर पराजित नहीं...
अगली कड़ी में पढ़े ओर देखे-पंड़ित जयप्रकाश वैष्णव जी के घर लगी चेको की झड़ी एवं फकीर के फोटो
प्रधान संपादक-सुनील पालीवाल
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