स्वास्थ्य
आयुर्वेद में प्राकृतिक चिकित्सा का महत्व : खुजली, एक आम समस्या-इसे समझिये...
Paliwalwani
खुजली एक प्रकार का संक्रामक रोग है और यह रोग त्वचा के किसी भी भाग में हो सकता है। यह रोग अधिकतर हाथों और पैरों की उंगुलियों के जोड़ों में होता है।
खुजली के प्रकार
खुजली दो प्रकार की होती है सूखी खुजली तथा तर या गीली खुजली।
खुजली होने का लक्षण :
जब खुजली का रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उस व्यक्ति की शरीर की त्वचा पर छोटे-छोटे दाने (फुंसियां) निकलने लगते हैं।
इन दानों के कारण व्यक्ति की त्वचा पर बहुत अधिक जलन तथा खुजली होती है।
जब रोगी व्यक्ति फुंसियों को खुजलाने लगता है तो वे फूटती हैं और उनमें से तरल दूषित द्रव निकलता है।
खुजली होने के कारण :
खुजली होने का सबसे प्रमुख कारण शरीर में दूषित द्रव्य का जमा हो जाना है।
जब रक्त में दूषित द्रव्य मिल जाते हैं तो दूषित द्रव शरीर की त्वचा पर छोटे-छोटे दानों के रूप में निकलने लगते हैं।
शरीर की ठीक प्रकार से सफाई न करने के कारण भी खुजली हो जाती है।
पाचन तंत्र खराब होने के कारण भी खुजली रोग हो सकता है क्योंकि पाचनतंत्र सही से न काम करने के कारण शरीर के खून में दूषित द्रव्य फैलने लगते हैं जिसके कारण खुजली हो सकती है।
अधिक औषधियों का सेवन करने के कारण भी खुजली हो सकती है।
खुजली होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार :
खुजली का उपचार करने के लिए कभी भी पारा तथा गन्धक आदि विषैली औषधियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इनके प्रयोग से शरीर में और भी अनेक बीमारियां हो सकती हैं।
खुजली रोग का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को 2-3 दिनों तक फलों और साग, सब्जियों का रस पीकर उपवास रखना चाहिए।
उपवास रखने के समय रोगी व्यक्ति को गर्म पानी से एनिमा क्रिया करनी चाहिए ताकि पेट साफ हो सके।
इसके बाद रोगी को कम से कम 7 दिनों तक फलों का रस तथा साग सब्जियों का सेवन करना चाहिए और रोगी व्यक्ति को सप्ताह में 1 बार भापस्नान लेना चाहिए और उसके बाद कटिस्नान करना चाहिये।





