दिल्ली

OPS : चुनावी साल में पुरानी पेंशन स्कीम को लेकर मचा हंगामा : सरकार को लगेगा झटका

Paliwalwani
OPS : चुनावी साल में पुरानी पेंशन स्कीम को लेकर मचा हंगामा : सरकार को लगेगा झटका
OPS : चुनावी साल में पुरानी पेंशन स्कीम को लेकर मचा हंगामा : सरकार को लगेगा झटका

नई दिल्ली :

ओल्ड पेंशन स्कीम की में वेतन से कोई कटौती नहीं की जाती थी. अब विपक्ष को लग रहा है कि 2024 से पहले वो OPS को बड़ा मुद्दा बनाने में कामयाब रहेगा, जिसके जरिए केंद्र की सत्ता में पहुंचने की उम्मीद बन सकती है. इस स्कीम को बीजेपी सरकार के दौरान ही वर्ष 2003 में बंद कर दिया गया था.

पुरानी पेंशन स्कीम की मांग को लेकर दिल्ली के रामलीला मैदान में महारैली की गई. बहुत बड़ी संख्या में शिक्षकों और कर्मचारियों का सैलाब उमड़ा था. सबकी जुबान पर एक ही मांग थी. हाथ में एक ही बैनर पोस्टर और तख्तियां थीं कि ‘पुरानी पेंशन स्कीम’ को केंद्र सरकार बहाल करे. ये वो मांग है, जिसमें सत्ता की लड़ाई में विपक्ष को 2024 के लिए कई मौके नजर आ रहे हैं इसलिए आज हम आपको इस पेंशन शंखनाद रैली के सियासी मायने भी समझाएंगे.

रामलीला मैदान में पुरानी पेंशन स्कीम के लिए आवाज बुलंद की गई. इस दौरान एक दिलचस्प नारा ये भी लगाया गया कि जो OPS (पुरानी पेंशन स्कीम) बहाल करेगा वही देश पर राज करेगा. इसीलिए कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मोदी सरकार के खिलाफ आंदोलनकारी शिक्षकों और कर्मचारियों को समर्थन देने के लिए पहुंच गए. वैसे आपको याद होगा कि कांग्रेस ने हिमाचल में इस ओल्ड पेंशन स्कीम को ना सिर्फ बड़ा मुद्दा बनाया बल्कि इसे दोबारा लागू भी किया. इसका फायदा भी कांग्रेस को हिमाचल में हुआ.

OPS में पेंशन की रकम सरकारी खजाने से दी जाती थी

अब विपक्ष को लग रहा है कि अगर 2024 से पहले वो OPS को बड़ा मुद्दा बनाने में कामयाब रहा, तो ये उसके लिए सत्ता की सीढ़ी तक पहुंचने का एक बड़ा हथियार हो सकता है. बड़ी संख्या में ये मांग उठाई जा रही है कि उस ओल्ड पेंशन स्कीम को केंद्र सरकार दोबारा लागू करे, जिसे बीजेपी सरकार के दौरान ही वर्ष 2003 में बंद कर दिया गया था. उसके बदले में वर्ष 2004 में नेशनल पेंशन सिस्टम को लागू किया गया था, लेकिन सवाल ये है कि आखिर इन दोनों में अंतर क्या है. कर्मचारियों को फायदा किसमें है?

ओल्ड पेंशन स्कीम की पहली बात ये है कि इसमें वेतन से कोई कटौती नहीं की जाती थी, जबकि नेशनल पेंशन स्कीम में सैलरी से 10 फीसदी हिस्सा काटा जाता है. OPS में रिटायरमेंट के बाद जो भी आखिरी वेतन होता था, उसका 50 फीसदी हिस्सा पेंशन के तौर पर मिलता था, लेकिन NPS में पेंशन की रकम तय नहीं होती है और इसकी वजह ये है कि OPS में जो पेंशन मिलती थी वो सरकारी खजाने से दी जाती थी, जबकि NPS में पेंशन का हिस्सा शेयर बाजार पर निर्भर करता है.

ओल्ड पेंशन स्कीम में महंगाई भत्ते का मिलता था फायदा

OPS में GPF की सुविधा भी मिलती थी, लेकिन नेशनल पेंशन सिस्टम में GPF की भी कोई सुविधा नहीं है. इसके अलावा ओल्ड पेंशन स्कीम में रिटायरमेंट के बाद भी अगर महंगाई भत्ता बढ़ता है, तो इसका फायदा रिटायर्ड कर्मचारियों को भी मिलता था, लेकिन NPS में ऐसा सिस्टम नहीं है.

हालांकि केंद्र फिलहाल तो जल्द पुरानी पेंशन योजना बहाल करने के मूड में नहीं है, लेकिन कई अहम संस्थान ओल्ड पेंशन स्कीम को लेकर अपना रेड सिग्नल दिखाते रहे हैं. जैसे नीति आयोग का कहना है कि अगर पुरानी स्कीम को लागू किया गया तो इससे टैक्सपेयर्स पर बोझ बढ़ जाएगा. वित्त आयोग का मानना है कि ओल्ड पेंशन स्कीम अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक है, जबकि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का कहना है कि इसके दोबारा लागू होने से राजकोषीय संसाधनों पर दबाव बढ़ जाएगा, पेंशन का खर्च करीब साढ़े चार गुना बढ़ जाएगा.

ओल्ड पेंशन स्कीम से किन राज्यों पर बोझ बढ़ा

अब हम आपको बताते हैं कि जिन राज्यों में ओल्ड पेंशन स्कीम को दोबारा से बहाल किया गया उससे उन राज्यों पर कितनी बोझ बढ़ा? पहले राजस्थान की बात करें, जहां सबसे पहले इस स्कीम को दोबारा से लागू किया है. राजस्थान में पुरानी पेंशन स्कीम के लागू होने से सरकारी खर्च में करीब करीब 16 गुना का इजाफा हो गया. इसी तरह छत्तीसगढ़ में भी इस योजना को दोबारा से बहाल किया और ऐसा करने से छत्तीसगढ़ के राजस्व पर 13 गुना का बोझ बढ़ गया.

 

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की इस स्टडी रिपोर्ट में बताया गया कि OPS को अपनाने के बाद पेंशन पर होने वाला खर्च नई पेंशन स्कीम के तहत अनुमानित पेंशन खर्च का करीब 4.5 गुना बढ़ जाएगा. इसके कारण सरकारी खजाने पर पड़ने वाला बोझ भी बढ़कर 2060 तक जीडीपी का 0.9 फीसदी तक पहुंच सकता है. केंद्रीय बैंक के मुताबिक, ओपीएस को बहाल करने से राज्यों की वित्तीय हालत पर भी असर होगा और ये खराब हो सकती है.

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