दिल्ली

आर्टिकल 370 हटाने की मंशा नहीं, केवल संवैधानिक वैधता को जाँच की जाएगी : सुप्रीम कोर्ट

Paliwalwani
आर्टिकल 370 हटाने की मंशा नहीं, केवल संवैधानिक वैधता को जाँच की जाएगी : सुप्रीम कोर्ट
आर्टिकल 370 हटाने की मंशा नहीं, केवल संवैधानिक वैधता को जाँच की जाएगी : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली. आर्टिकल 370 (Article 370) को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने स्पष्ट किया है कि विचार किया जाएगा कि क्या सरकार ने आर्टिकल 370 को हटाने के लिए उचित संवैधानिक प्रक्रिया का पालन किया है या नहीं। इस सुनवाई के दौरान मामले की यह जाँच नहीं की जाएगी कि इस निर्णय का पालन सही था या नहीं। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ जो संविधान पीठ के प्रमुख हैं, ने याचिकाकर्ता दुष्यंत दवे के द्वारा प्रस्तुत याचिका के दौरान इस बारे में कहा कि हम आर्टिकल 370 को हटाने के पीछे सरकार के उद्देश्य या विवेक की जांच नहीं करेंगे। हम सिर्फ संवैधानिक पहलुओं तक ही सीमित रहेंगे। अगर संवैधानिक प्रक्रिया में कोई उल्लंघन हुआ है तो हम इस पर विचार करेंगे।

केवल जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा के पास है यह अधिकार - दवे

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता दुष्यंत दवे ने बताया कि आर्टिकल 370 को बरकरार रखने या हटाने पर निर्णय सिर्फ जम्मू और कश्मीर (Jammu and Kashmir) की संविधान सभा (Constituent Assembly) के पास ही हो सकता है। संविधान सभा ने आर्टिकल 370 को बरकरार रखने का निर्णय लिया था। हालांकि संविधान सभा 1957 में समाप्त हो गई है और अब उसमें कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है।

1957 के बाद भी संविधान में जम्मू और कश्मीर से संबंधित बदलाव हुए - SC

सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक चीफ जस्टिस ने दवे की बात पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर अनुच्छेद 370 को हटाने या इसमें बदलाव करने का अधिकार साल 1957 में जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा के समापन के साथ ही समाप्त हो गया तो फिर जम्मू और कश्मीर से संबंधित संविधानिक निर्णय कैसे लिए गए? उन्होंने इन निर्णयों के माध्यम से जम्मू और कश्मीर के प्रति संविधान में आवश्यक बदलाव की दिशा में साबित हो गए।

आर्टिकल 370 - भाजपा के चुनावी एजेंडे का हिस्सा था - दवे

दुष्यंत दवे ने कहा कि आर्टिकल 370 को हटाने का निर्णय उस समय नहीं लिया गया था जब राज्य के प्रशासन में कोई कठिनाई आ रही थी। केन्द्र सरकार (Central Government) ने इस निर्णय के पीछे कोई स्पष्ट कारण प्रस्तुत नहीं किए थे। उन्होंने कुछ हिंसा और राष्ट्रीय सुरक्षा की घटनाओं का उल्लेख करते हुए निर्णय का यह मान्यता दिलाया है। वास्तव में, भाजपा (BJP) ने चुनावी प्रमिसेज में वादा किया था कि अगर उन्हें वोट मिलेंगे तो वे आर्टिकल 370 को हटाएंगे। इसलिए सरकार ने चुनावी वादों को पूरा करने के लिए विफलता का सामना किया, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसलों में स्पष्ट किया है कि चुनावी प्रमिसेज संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ नहीं हो सकते।

सुप्रीम कोर्ट ने पुराने निर्णयों का भी संदर्भ दिया

दवे ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने निर्णयों का भी संदर्भ दिया, जिनसे स्पष्ट होता है कि आर्टिकल 370 को हटाने का निर्णय सिर्फ और सिर्फ जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा के माध्यम से हो सकता है। दवे ने बताया कि संविधान सभा की चर्चा से स्पष्ट होता है कि आर्टिकल 370 को लागू करने के पीछे की मुख्य मनसा क्या थी। जम्मू और कश्मीर के लोगों के लिए आर्टिकल 370 संविधान का अभिन्न हिस्सा बना हुआ है। आज की सरकार के पास इसे हटाने का न कोई नैतिक अधिकार था और न ही संवैधानिक। इस निर्णय को लेने का अधिकार राष्ट्रपति को था, लेकिन उन्हें ऐसा निर्णय लेने का अधिकार नहीं था। यह सरकार द्वारा अपनी शक्तियों का अनुचित उपयोग है।

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