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समान नागरिक संहिता पर हलचल तेज : “गुमराह करने और भड़काने” का आरोप

Paliwalwani
समान नागरिक संहिता पर हलचल तेज : “गुमराह करने और भड़काने” का आरोप
समान नागरिक संहिता पर हलचल तेज : “गुमराह करने और भड़काने” का आरोप

नई दिल्ली :

  • लॉ एंड जस्टिस के संसदीय पैनल ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के मुद्दे पर विधि आयोग को 3 जुलाई 2023 को उसके सामने पेश होने के लिए बुलाया है. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सप्ताह की शुरुआत में UCC काे लागू करने पर जोर दिया और पूछा कि देश में दो तरह के कानून कैसे चल सकते हैं. साथ ही पीएम ने विपक्ष पर यूसीसी (यूनिफॉर्म सिविल कोड) के मुद्दे का इस्तेमाल मुस्लिम समुदाय को “गुमराह करने और भड़काने” का आरोप लगाया.

अब तक आम आदमी पार्टी (आप), शिवसेना, एआईएडीएमके और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने समान नागरिक संहिता को समर्थन दिया है. इससे पहले आज, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने कहा कि उनकी पार्टी सरकार द्वारा कुछ चीजें स्पष्ट करने के बाद यूसीसी पर अपना रुख तय करेगी. इसके साथ एनसीपी ने संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण की वकालत भी की.

यूनिफॉर्म सिविल कोड या यूसीसी है क्‍या?

यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है कि हर धर्म, जाति, संप्रदाय, वर्ग के लिए पूरे देश में एक ही नियम. दूसरे शब्‍दों में कहें तो समान नागरिक संहिता का मतलब है कि पूरे देश के लिए एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने के नियम एक ही होंगे. संविधान के अनुच्छेद-44 में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करने की बात कही गई है. अनुच्छेद-44 संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है. इस अनुच्छेद का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ के सिद्धांत का पालन करना है. बता दें कि भारत में सभी नागरिकों के लिए एक समान ‘आपराधिक संहिता’ है, लेकिन समान नागरिक कानून नहीं है.

समान नागरिक कानून का जिक्र 1835 में ब्रिटिश सरकार की एक रिपोर्ट में भी किया गया था. इसमें कहा गया था कि अपराधों, सबूतों और ठेके जैसे मुद्दों पर समान कानून लागू करने की जरूरत है. इस रिपोर्ट में हिंदू-मुसलमानों के धार्मिक कानूनों से छेड़छाड़ की बात नहीं की गई है. हालांकि, 1941 में हिंदू कानून पर संहिता बनाने के लिए बीएन राव समिति का गठन किया गया. राव समिति की सिफारिश पर 1956 में हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के उत्तराधिकार मामलों को सुलझाने के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम विधेयक को अपनाया गया. हालांकि, मुस्लिम, ईसाई और पारसियों लोगों के लिये अलग कानून रखे गए थे.

डॉ. आंबेडकर ने यूसीसी पर क्‍या कहा था

भारतीय संविधान की मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि हमारे पास पूरे देश में एक समान और पूर्ण आपराधिक संहिता है. ये दंड संहिता और आपराधिक प्रक्रिया संहिता में शामिल है. साथ ही हमारे पास संपत्ति के हस्तांतरण का कानून है, जो संपत्ति और उससे जुड़े मामलों से संबंधित है. ये पूरे देश में समान रूप से लागू है. इसके अलावा नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट हैं. उन्‍होंने संविधान सभा में कहा कि मैं ऐसे कई कानूनों का हवाला दे सकता हूं, जिनसे साबित होगा कि देश में व्यावहारिक रूप से समान नागरिक संहिता है. इनके मूल तत्व समान हैं और पूरे देश में लागू हैं. डॉ. आंबेडकर ने कहा कि सिविल कानून विवाह और उत्तराधिकार कानून का उल्लंघन करने में सक्षम नहीं हैं.

क्या है समान नागरिक संहिता का हाल

भारतीय अनुबंध अधिनियम-1872, नागरिक प्रक्रिया संहिता, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम-1882, भागीदारी अधिनियम-1932, साक्ष्य अधिनियम-1872 में सभी नागरिकों के लिए समान नियम लागू हैं. वहीं, धार्मिक मामलों में सभी के लिए कानून अलग हैं. इनमें बहुत ज्‍यादा अंतर है. हालांकि, भारत जैसे विविधता वाले देश में इसको लागू करना इतना आसान नहीं है. देश का संविधान सभी को अपने-अपने धर्म के मुताबिक जीने की पूरी आजादी देता है. संविधान के अनुच्छेद-25 में कहा गया है कि कोई भी अपने हिसाब धर्म मानने और उसके प्रचार की स्वतंत्रता रखता है.

भारत का सामाजिक ढांचा विविधता से भरा हुआ है. हालात ये हैं कि एक ही घर के सदस्‍य अलग-अलग रीति-रिवाजों को मानते हैं. अगर आबादी के आधार पर देखें तो देश में हिंदू बहुसंख्‍यक हैं. लेकिन, अलग राज्‍यों के हिंदुओं में ही धार्मिक मान्‍यताएं और रीति-रिवाजों में काफी अंतर देखने को मिल जाएगा. इसी तरह मुसलमानों में शिया, सुन्‍नी, वहावी, अहमदिया समाज में रीति रिवाज और नियम अलग हैं. ईसाइयों के भी अलग धार्मिक कानून हैं. वहीं, किसी समुदाय में पुरुष कई शादी कर सकते हैं. कहीं विवाहित महिला को पिता की संपत्ति में हिस्सा ननहंी मिल सकता तो कहीं बेटियों को भी संपत्ति में बराबर का अधिकार दिया गया है. समान नागरिक संहिता लागू होते ही ये सभी नियम खत्म हो जाएंगे. हालांकि, संविधान में नगालैंड, मेघालय और मिजोरम के स्‍थानीय रीति-रिवाजों को मान्यता व सुरक्षा देने की बात कही गई है.

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